बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

ये कैसा सुशासन? सच के पहरुआ को जिंदा फूका , महज 3 महीने में 2-2 पत्रकारों की नृशस हत्या

3 महीने में 2-2 पत्रकारों की नृशंस हत्या और बेलगाम अपराधियों का सूबे में तांडव मचा दिया है।हालात-ए-बिहार जंगलराज़ के मानिंद हो गया है। खाकी,खादी व अपराधी के नाजायज़ गठजोड़ ने बिहार में ख़ौफ़ तारी कर दिया है।

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पटना Live डेस्क। सूबे में पूरी तरह क्षत विक्षत हो चुके सुशासन यानी कानून के राज में अपराधियों का तांडव चरम पार कर चुका है यह बताने की आवश्यकता नही है। हालात इस कि मुनादी कर रहे है। सूबे में अपराधियों की बंदूके लगातार शोले उगल रही है जिन्दगियों को खाक में तब्दील कर रही है। सूबे की आवाम बेबस व लाचार होकर खून के आसूँ बहाते हुए महज टुकुर टुकुर निहार रही है। खाकी व खादी के गठजोड़ से सूबा कराहने लगा है

           सूबे में विशेषकर शिक्षा,शराब,लैंड व स्वास्थ्य माफिया ने पैरलल इकोनॉमी खड़ा कर लिया है। बेरोकटोक जारी अवैध कारोबारों से बरसते नोटों की असीमित आय से माफिया ने दरअसल सत्ता के अंतःपुर और पावर कॉरीडोर में बेरोकटोक किसी भी वक्त प्रवेश का एंट्री पास पा लिया है। इन माफिया सिंडिकेट्स ने खाकी व खादी को अपने पाले में कर इस कदर ताकतवर और बेलगाम हो चुके है की कानून के कथित पहरुआओं यानी पुलिस प्रशासन को जब मन करता है तब रगेद देते है और जब मन करता खदेड़ खदेड़ कर कूट देते है। फिर जब मन करता है थोड़ा पुचकार देते है। ऊपर से लेकर नीचे तक सब को सेट कर लेने के बाद पूरी तरह निरंकुश हो चुकें है। सूबे में हालात जंगल के मानिंद हो चुके है।।जंगल के कानून यानी जंगलराज़ जैसे इसकी आखरी गवाही दी है। माटी के लाल कलम के सिपाही व सच के पहरुआ मधुबनी जिले के बेनीपट्टी बाजार के लोहिया चौक निवासी दयानंद झा के बेटे 24 वर्षीय पुत्र बुद्धिनाथ झा उर्फ अविनाश ने। इस अदम्य साहसी पत्रकार ने कोविड महामारी की विभीषिका में आम आदमी की बेबसी व लाचारी व अपने स्वजनो व परिजनों को तिल तिलकर मरने को अभिशप्त और अस्पतालो में लूट खसोट को अपनी नंगी आंखों से तो देखा ही साथ ही सरकारी अस्पताल में जारी खेल को भी देखा।

नतीजतन बेहद संवेदनशील अविनाश झा ने जिले के सरकारी स्वास्थ्य सेवा में महाभ्रष्टाचार के दीमक रूपी “स्वास्थ्य माफिया” के खिलाफ बिगुल फूक दिया था। प्रयासों को सफलता भी मिलने लगी। उजागर तथ्यों पर मजबूरन ही सही पर अतिसंवेदनहीन सरकारी विभाग के अहलकार एक्शन में आए। नतीजतन आम आदमी के हकों हुकुक व बेहतर स्वास्थ्य सेवा दिलाने खातिर बिगुल फूंकने वाले अविनाश को “माफिया” ने जिंदा ही फूक दिया। 9 नवंबर की रात से लापता हुआ अविनाश 13 नवम्बर यानी शुक्रवार देर रात बेनीपट्टी-बसैठ राजमार्ग संख्या-52 के पास उरेन गांव में पेड़ के नीचे मिला तो सही पर उसका प्राणहीन अधजला मृत शरीर वो भी बोरे में बंधा हुआ। यानी सूबे में कथित सुशासन के दावे करने वाले नीतीश कुमार के शासन में सच का पहरुआ जिंदा फूंक दिया गया क्योंकि वो कानून को शराब बरामदगी जैसे अतिआवश्यक व अतिप्रयलंकारी काम की बजाय “स्थानीय अस्पताल संचालक माफिया सिंडिकेट की कारगुजारियों” का उद्भेदन कर डाइवर्ट जो कर रहा था। तभी तो स्थानिए बेनीपट्टी थाना में आवेदन दिए जाने के बाद भी पुलिस निष्क्रिय बनी रही नतीजतन अविनाश की अधजली लाश 4 दिन बाद मिली।

जबकि बताया जाता है कि चंद्रशेखर झा ने बेनीपट्टी थाना में आवेदन देकर अपने छोटे भाई बुद्धिनाथ झा के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उक्त आवेदन में जानकारी दी थी कि अविनाश के 9 नवंबर की रात से गायब है। साथ ही शक जताया था कि किसी बेहद गहरी साजिश के तहत बेनीपट्टी के स्थानीय निजी अस्पताल संचालकों ने भाई को लापता कर दिया था।

आवेदन में कारण बताते हुए उन्होंने कहा है कि बुद्धिनाथ ने विगत कई वर्षों से बेनीपट्टी में फर्जी तरीके से चलाए जाने वाले स्थानीय अस्पताल के खिलाफ मुहिम चला रहा था। इससे वे लोग नाखुश थे। मकतूल के भाई का स्पष्ट आरोप हैकि अस्पताल संचालक ने खबर लिखने पर मर्डर करवाया है।

अविनाश की फेसबूक पर आखरी गवाही

अविनाश फेसबुक के माध्यम से भी अपनी बातों को कहते रहे हैं। अविनाश ने अपने सोशल मीडिया के वाल पर 18 अक्टूबर को लिखे पोस्ट में जिंदा रहने तक लड़ने की बात कही थी। देखिए वो पोस्ट

चार दिन पुराना शव

मिली जानकारी के अनुसार, अविनाश के पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 4 दिन पहले मौत होने की बात सामने आई है। यानी प्रतीत होता हैं कि अविनाश को अपराधियों ने कब्जे में कर 9 नवम्बर की देर रात ही जलाकर मारने के कुकृत्य को अंजाम दिया होगा। वही बेनीपट्टी थानाध्यक्ष अरविंद कुमार ने कहा कि आवेदन मिलने के साथ ही पुलिस जांच-पड़ताल में जुटी हुई थी। अब शव मिलने पर प्राथमिकी दर्ज कर सभी बिंदुओं की जांच-पड़ताल की जा रही है। पुलिस हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लेगी।

अस्पतालों की कमियों को उजागर करते थे

बता दें, बेनीपट्‌टी में 19 प्राइवेट अस्पताल हैं। उन सभी की कमियों को अविनाश समय-समय पर उजागर करते रहे थे। अविनाश झा पत्रकारिता के साथ-साथ अपनी सोशल रिस्पॉसिबिलटीज़ को निभाने वाले एक बेहद सक्रिय सोशल एक्टिविस्ट भी थे।

शहर के निजी नर्सिंग होम्स की कारगुजारियों के बाबत अविनाश ने लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत तमाम अवैध व फर्जी क्लीनिक की शिकायत की थी, जिन पर कार्रवाई हुई थी। परिवार ने इन्हीं फर्जी क्लीनिक के संचालकों पर अविनाश की हत्या के आरोप लगाए हैं।

महज़ 3 महीने में हुई दो पत्रकारों की  हत्या

बिहार में महज 3 महीने के अंदर यह दूसरी बार है जब बेखौफ अपराधियों ने किसी पत्रकार की नृशस हत्या कर दी है। 10 अगस्त को पूर्वी चंपारण में एक पत्रकार मनीष कुमार सिंह की हत्‍या कर दी गई थी। अपने बेटे मनीष के लापता होने पर पिता संजय सिंह ने मामले में अनहोनी की आशंका को लेकर स्थानीय पुलिस के पास शिकायत की थी, जिसमें 12 लोगों को आरोपी बनाते हुए घटना के पीछे संपत्ति विवाद की आशंका जताई थी।अपराधियों ने युवा पत्रकार अगवा कर यातनाएं दीं, फिर गला रेत दिया था। तीन दिनों से लापता पत्रकार मनीष कुमार सिंह का शव जिले के हरसिद्धि थाना क्षेत्र से बरामद किया गया था।मृतक के पिता संजय सिंह भी पत्रकार हैं। घटना के सिलसिले में 17 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है।

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