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Super Exclusive – शूटआउट के 22 साल बाद भी ज़िंदा है श्रीप्रकाश शुक्ला ! कहाँ और कैसे ?

22 साल आज ही के दिन 22 सितम्बर 1998 के दिन यूपी STF द्वारा इनकाउंटर में ढेर दुर्दांत माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला अब भी है जिंदा

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पटना Live डेस्क। ये कहानी है 20 साल के उस पहलवान लड़के की है जो महज 5 साल में 90 के दशक में जरायम की दुनिया का अबतक का सबसे खूंखार बेताज बादशाह बन गया। बादशाहत कायम करने वाले इस दुर्दांत का नाम है श्रीप्रकाश शुक्ला था। महज 5 साल में पूर्वांचल के अबतक के सबसे खूंखार और दुःसाहसी डॉन ने देखते ही देखते इतनी तेजी से क्रूरता और अपराध की सीढ़ियों को लांघ दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार के हाथ पांव फूल गए थे। और फिर 4 मई 1998 को राज्य के तत्‍कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने यूपी पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को चयनित कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) गठन किया। इस फोर्स का पहला टारगेट था महज पच्चीस बसंत देख चुके माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला। जानकार दावा करते है कि दुर्दांत श्रीप्रकाश शुक्ला ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ली थी। इसलिए सरकार को उसके खात्मे के लिए एसटीएफ का गठन करना पड़ा।

महज 5 साल में ममखोर से मोकामा फिर मौत 

अपनी पहलवानी के दम पर अखाड़े में अच्छा नाम कमाया था। नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला। गोरखपुर के मामखोर गांव में पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक थे। जनपद के आसपास के अखाड़ों में उसने अच्छा नाम कमाया। लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में पहली बार आया महज 20 साल की उमर में। साल था 1993। उसकी बहन से गांव के एक दबंग लफंगे ने छेड़खानी कर दी थी। दरअसल, राकेश तिवारी ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजा दी थी शुक्ला ने गोली चला दी और फिर पुलिस से बचने ख़ातिर बैंकॉक निकल लिया।

लौटा तो उसके मुंह में खून लग चुका था। जरायम की दुनिया मे टुटपुंजिया नही दुर्दान्त से ज्यादा नाम कमाने का जुनून सर चढ़कर बोल रहा था। गांव ममखोर छोटा व कुआँ लग रहा था। हसरतें उफान मार रही थी। सामने खुल्ला जंगल रूपी पाताललोक था। दो चार और दुःसाहसिक काण्ड को अंज़ाम दिया तो मोकामा का माफिया सरगना सूरजभान में उसे गॉडफादर मिल गया। फिर तो ताबड़तोड उसने अपना खूनी पंजा फैलाया और एके-47 का जमकर इस्तेमाल शुरू किया।

यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और नेपाल में सारे गैरकानूनी धंधे करने लगा। उसने फिरौती के लिए किडनैपिंग, रंगदारी, रेलवे टेंडर और सियासी की तिकड़म से लेकर सुपारी किलिंग तक में हाथ डाल दिया। एक अंदाजे के मुताबिक शुक्ला ने अपने हाथों से उसने करीब 20 लोगो को टपकाया जिनमे उस दौर के बेहद दमदार दबंग समेत यहा तक के मंत्री, विधायक रहे तक शामिल रहे। फलाफ़ल यह हुआ कि उस दौर में श्रीप्रकाश शुक्ला पाताललोक(अंडरवर्ल्ड) का सबसे दुःसाहसी दुर्दान्त शार्प शूटर व सुपारी किलर बन गया। दहशत ऐसी की श्रीप्रकाश से अपराधियों तो खौफ़जदा थे ही पुलिसवाले भी सहमे और खौफजदा रहते थे। महज 20 साल की उम्र में जुर्म के अंतहीन दलदल में उतरा और 25 साल में उसकी जिंदगी का दुःखद अंत हो गया। लेकिन कत्लोंगारत और रंगबाजी की ऐसी कहानी छोड़ गया की आज भी श्रीप्रकाश शुक्ला किसी परिचय का मोहताज नही है। 

शाही को बीच लखनऊ भून दिया

गौरतलब है कि यूपी के महाराजगंज के लक्ष्मीपुर के विधायक वीरेंद्र शाही को साल 1997 की शुरुआत में श्रीप्रकाश ने लखनऊ शहर में वीरेंद्र शाही को गोलियों से भून दिया।

वीरेंद्र शाही पर श्री प्रकाश ने तीन हमले किये थे।पहला हमला शाही पर गोरखपुर में किया गया था। वही, श्रीप्रकाश शुक्ला ने दूसरी बार भी वीरेंद्र शाही पर हमला किया लेकिन इस बार भी उसकी किस्मत बुलंद निकली।

लेकिन तीसरी बार वीरेंद्र शाही लखनऊ स्थित इंदिरा नगर में अपनी तथाकथित प्रेमिका के लिए किराए का मकान देखने अकेले ही निकला था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि ड्राइवर या गनर को उसकी प्रेमिका के बारे में पता चले। तभी पहले से नजर रख रहे श्रीप्रकाश ने 1997 की शुरुआत में ही वीरेंद्र शाही को मौत के घाट उतार दिया।’ दरअसल, जहां पर टेंडर में सूरजभान को दिक्कत आती, उसे श्रीप्रकाश शुक्ला खत्म कर देता था।जिसके बाद श्रीप्रकाश ने अपनी हिट लिस्ट में दूसरा नाम रखा कल्याण सरकार में कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का जो चिल्लूपार विधानसभा सीट से 15 सालों से विधायक थे।

13 जून 1998 हुई ब्रिजबिहारी की  हत्या
फिर इसने बिहार की राजधानी पटना का रुख किया और आईजीआईएमएस, पटना में तत्कालीन विज्ञान प्रोद्यौगिकी मंत्री रहे बृज बिहारी प्रसाद की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उस समय वे वहां इलाज करा रहे थे। अपने सुरक्षा गार्ड और सहयोगियों के साथ संस्थान परिसर में शाम को टहल रहे थे। उसी समय एक गाड़ी पर सवार होकर श्रीप्रकाश एंड गैंग के लोग जा धमके और उन्हें अन्धाधुन्ध फ़ायरींग कर पुलिस अभिरक्षा में ही पूर्व मंत्री को एक पुलिस गार्ड के साथ भून डाला। मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी।

अब एसटीएफ के एक्कै मकसद था

यूपी एसटीएफ का अब एक्कै मकसद था श्रीप्रकाश शुक्ला जिंदा या मुर्दा। सारे घोड़े खोंल दिए गए। मकसद तय था इरादे मजबूत और शुक्ला का गेम ओवर। अगस्त 1998 के आखिरी हफ्ते में पुलिस को अहम सुराग मिला। पता चला कि दिल्ली के वसंत कुंज में श्रीप्रकाश ने एक फ्लैट लिया है। वही से ऑपरेट कर रहा है। शाम होते ही वह अपने मोबाइल फोन से कॉल करने लगता।

वो आखरी कॉल – का बे बहुते

श्रीप्रकाश ने लखनऊ में 105 फ्लैट बनाने वाले एक बिल्डर को अपनी जिंदगी की आखिरी धमकी दी थी। उसकी मांग सीधी थी, ‘हर फ्लैट पर 50 हजार रुपये की रंगदारी। लेकिन इस दौरान उससे एक बड़ी गलती हो गई। उसके पास 14 सिम कार्ड थे।लेकिन पता नहीं क्यों, जिंदगी के आखिरी हफ्ते में उसने एक ही कार्ड से बात की।इससे पुलिस को उसकी बातचीत सुनना और उस इलाके को खोजना आसान हो गया।

22 सितंबर को जाना था राँची पर …

21 सितंबर की शाम एक मुखबिर ने STF को बताया कि अगली सुबह 5:45 बजे शुक्ला रांची के लिए इंडियन एअरलाइंस की फ्लाइट लेगा।दिल्ली एयरपोर्ट पर घात लगाने का प्लान बना। तड़के 3 बजे पुलिस तैनात हो गई, पर वह नहीं आया।

और फिर …..मोहन नगर के पास हुई मुठभेड़

लेकिन दोपहर बाद STF की किस्मत ने उनका साथ दिया दरअसल, शुक्ला अब भी अपना वही मोबाइल फोन और वही नम्बर इस्तेमाल कर रहा था। कॉल से पुलिस को पता चला कि वह वसंत कुंज के अपने ठिकाने से निकलकर अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने गाजियाबाद जाएगा। पुलिस ने उसकी वापसी के समय जाल बिछा दिया।दिल्ली गाजियाबाद स्टेट हाइवे पर फोर्स लग गई।

नीली सियोलों कार पर सवार

तदुरान्त आज से 22 साल पहले आज ही के दिन यानी 22 सितम्बर 1998 को दुर्दांत माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला STF को गाजियाबाद में दोपहर 1.50 बजे अपनी नीली सिएलो कार से मोहननगर फ्लाइओवर के पास दिखाई दिया। वहां पूर्व से पुलिस की 5 गाड़ियां तैनात थीं। शुक्ला की सियोलो कार का नंबर HR26 G 7305 फर्जी था, वह किसी स्कूटर को आवंटित था।

शुक्ला चला रहा था सियोलों

गाड़ी शुक्ला चला रहा था और अनुज प्रताप सिंह उसके साथ आगे और सुधीर त्रिपाठी पीछे बैठा था। उसे खतरा महसूस हुआ। उसने स्पीड बढ़ाई और पुलिस की पहली और दूसरी गाड़ी को चकमा दे दिया। तभी इंस्पेक्टर वीपीएस चौहान ने अपनी जिप्सी उसकी कार के आगे अड़ा दी। खतरे को सामने देख शुक्ला ने बाएं घूमकर गाड़ी तेजी से यूपी आवास विकास कालोनी की तरफ भगाई। पुलिस ने पीछा किया।

एनकाउंटर के बाद शुक्ला की लाश

स्टेट हाइवे से एक किलोमीटर हटकर उसे घेर लिया गया। उसने भी रिवॉल्वर निकाल ली। उसने 14 गोलियां दागीं तो पुलिस वालों ने 45। मिनटों में उसका और उसके साथियों का काम लग गया। तारीख थी 22 सितंबर 1998 वक्त सवा 2 बजे तक ऑपरेशन बजूका पूरा हो गया था। यूपी का सबसे कुख्यात दुर्दांत ढेर हो चुका था। यूपी पुलिस के सहयोग से एसटीएफ उसका खतमा कर अपनी पीठ थपथपाई थी।

शुक्ला का ऐसा अंत नहीं होता अगर वह बदमाशी और रंगबाजी के नशे में चूर न होता। वह राजनीति में उतरना चाहता था और मुमकिन है कि जल्दी ही कानून से पटरी बैठा लेता उसकी मौत से कुछ महीनों पहले लोग मजाक में कहने लगे थे कि कहीं वह यूपी का मुख्यमंत्री न बन जाए।

लेकिन पुराने हिस्ट्रीशीटर श्रीप्रकाश शुक्ला के इतिहास पर नजर डालें। तो आज भी सोशल मीडिया पर बेखौफ़ लोग श्रीप्रकाश शुक्ला की फोटो को शेयर कर उसे जिंदा रखें हुए हैं। जो पुलिस के संज्ञान से कोसों दूर हैं।श्रीप्रकाश की मौत के बाद उसका खौफ भले ही खत्म हो गया, लेकिन जयराम की दुनिया में उसके आज भी चर्चे होते हैं।

प्रोफाइल में दिखा रहा स्टाइल

दरअसल, लखनऊ समेत गोरखपुर, बस्ती, गाजियाबाद, गोंडा के युवाओं पर माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला की खुमारी इस कदर छाई हुई है। उन्होंने हिस्ट्रीशीटर को अपना आर्दश मानकर श्रीप्रकाश शुक्ला की किसी प्रोफाइल पिक्चर के साथ अवैध असलहों की फोटो लगा डाली है। वहीं फेसबुक पर सर्च करते ही लाइन से दर्जनों श्रीप्रकाश शुक्ला की फोटो लगी प्रोफाइल दिखाई देने लगती है। हालांकि बेखौफ़ लोग फेसबुक पर श्रीप्रकाश की स्टाइल को प्रोमोट कर रहे हैं।

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