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विशेष खुलासा – मनमोहन सरकार के “थोरियम घोटाले से थर्राया देश” कम से कम 48 लाख करोड़ रुपये का है घोटाला

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पटना Live डेस्क। आजादी के बाद से ही मुल्क में घोटालों का लंबा चौड़ा इतिहास रहा है। हर घोटाले के बाद जांच का नाटक और आगे सावधान रहने के वायदे और इरादे सरकार ने जाहिर किये पर सच्चाई देश के सामने है। हर घोटाला पुराने घोटाले से बड़ा ही हुआ अब तो हालात ये है कि नए खुलासे ने तो पुराने सभी घोटालों को बौना साबित करते हुए देश की GDP को भी पीछे छोड़ दिया है। यानी भारत की जितनी जीडीपी नही है उससे कई गुणा बड़ा घोटाला पिछली यूपीए नीत मनमोहन सरकार के कार्यकाल में अंजाम दिया गया है।

जीप से शुरू करते हुए थोरियम तक 

घोटालों का इतिहास भारत की आज़ादी के महज कुछ महिनो बाद से शुरू हो गया था। अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का बेहद लंबा चौड़ा इतिहास रहा है। सभी घोटाले एक से एक प्रलयकारी रहे है। देश मे घोटालों की शुरुआत तो देश की आज़ाद यानी 15अगस्त 1947 के महज 2 महिनो के अंदर शुरू हो गया था।

देश का पहला घोटाला

देश में पहले घोटाले की शुरुआत जीप घोटाले के तौर पर अंकित है। उस दौरान तात्कालिक नेहरू सरकार ने  लंदन की एक कंपनी से 2000 जीपों को सौदा किया। सौदा 90 लाख रुपये का था। लेकिन केवल 155 ज़िपें ही देश को मिल पाई। बाक़ी का क्या हुआ किसी को नही मालूम। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के. कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई थी। लेकिन 1955 में केस ही बंद कर दिया गया और हद तो ये की सज़ा की बात कौन करे उल्टा आरोपी कृष्ण मेनन को नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।1953 में कृष्ण मेनन राज्य सभा के सदस्य बने। 3 फ़रवरी 1956 को,उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिना विभाग के मंत्री के रूप में शामिल किया गया। फिर 1957 में वे मुंबई से लोक सभा के लिए चुने गए और उसी वर्ष अप्रैल में उन्हें प्रधानमंत्री नेहरू के अधीन रक्षामंत्री बना दिया गया।

                खैर,भारत मे ये पहला घोटाला जरूर साबित हुआ पर आखरी नही। अब उस घोटाले की बात जिसने अब तक के सभी घोटालों को शर्मिंदा करते हुए देश की जीडीपी भी पीछे छोड़ दिया है।यह घोटाला मनमोहन सरकार के राज में हुआ है जो लगभग 48 लाख करोड़ का घोटाला बताया जा रहा है।भारत मे 26 लाख करोड़ रुपये के कोयला घोटाले का पर्दाफाश हुआ था, तब किसी को यह यकीन भी नहीं हुआ कि देश में इतने बड़े घोटाले को भी अंजाम दिया जा सकता है। लेकिन, अब क्या कहा जाए?

थोरियम की लूट से थर्राया मुल्क

कई लोग सोच रहे होंगे कोयला तो ठीक है घोटाला हुआ समझा जा सकता है पर ये थोरियम क्या है? तो आइए
समझते हैं कि यह थोरियम क्या है? थोरियम एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है,जिसका इस्तेमाल न्यूक्लियर रिएक्टर में बातौर ईंधन की तरह होता है। यह घोटाला न केवल अबतक देश मे हुई सबसे बड़ी लूट है बल्कि देश के सुरक्षा के लिए भी बेहद खतरनाक है। इसमें न स़िर्फ देश के बहुमूल्य खनिज की जबरदस्त लूट हुई है बल्कि ये ऐसा डाका साबित होगा जो हिंदुस्तान के भविष्य पर भी भारी पड़ेगा।


बक़ौल भारतीय न्यूक्लियर साइंटिस्टों के थोरियम के जरिए देश की ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं। दुनिया मे भारत के पास थोरियम का सबसे बड़ा भंडार है। देश के दक्षिण के समुद्री किनारों पर थोरियम का भंडार बहुतायत में फैला हुआ है,जिसे हम कई सौ सालों तक इस्तेमाल कर सकेंगे। दुनिया के अन्य देशों में थोरियम पत्थरों में पाया जाता है। स़िर्फ हमारे भारत में यह साधारण बालू में भी मिलता है। इसे खनन करना एवं जमा करना आसान है और यह सस्ता है।यह घोटाला कम से कम 48 लाख करोड़ रुपये का है। यही है थोरियम महाघोटाला है।

कैसे दिया जा रहा है महालूट को अंजाम

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने थोरियम के महत्व को समझते हुए इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो आज भी जारी है। पर उसी कॉन्ग्रेस के प्रधानमंत्री के शासन में यह महाघोटाला चरम पर रहा। भारत के दक्षिण के समुद्र तटों से निजी कंपनियों द्वारा थोरियम का डाका हो रही है और सरकार इस बात से अनजान है। पहले यह समझते हैं कि कैसे देश को 48 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और कैसे देश के  बहुमूल्य खनिजों को गैरक़ानूनी तरीके से विदेश भेजा गया। 30 नवंबर, 2011 को कोडीकुनेल सुरेश ने लोकसभा में प्रधानमंत्री से सवाल पूछा। सवाल यह था कि देश से जो मोनाजाइट निर्यात किया जा रहा है, क्या उसमें किसी क़ानून का कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं? इस पर पीएमओ के मिनिस्टर ऑफ स्टेट वी नारायणसामी ने जवाब दिया कि मोनाजाइट को छोड़कर समुद्र तट की बालू, जिसमें कुछ खनिज हैं, का निर्यात किया जा रहा है, क्योंकि मोनाजाइट और थोरियम के निर्यात के लिए लाइसेंस दिया जाता है और अब तक किसी कंपनी को इसे निर्यात करने के लिए लाइसेंस नहीं दिया गया है।

                        डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी ने 6 जनवरी, 2006 को कई दूसरे खनिजों को अपनी लिस्ट (एसओ-61-ई) से हटा दिया और निजी कंपनियों को उन्हें निर्यात करने की छूट दे दी। लेकिन क्या सरकार को यह पता है कि देश से मोनाजाइट का निर्यात हो रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी, तबसे अब तक 2।1 मिलियन टन मोनाजाइट भारत से गायब कर दिया गया है।मोनाजाइट उड़ीसा, तमिलनाडु और केरल के समुद्र तटों पर मौजूद बालू में पाया जाता है।

मोनाजाइट में करीब दस फीसदी थोरियम होता है। इसका मतलब यह कि करीब 1,95,000 टन थोरियम गायब कर दिया गया।माइंस एंड मिनरल एक्ट 1957 के तहत उड़ीसा सैंड कॉम्प्लेक्स, तमिलनाडु में कन्याकुमारी के पास मानवालाकुरिची और केरल में अलूवा-चावरा बेल्ट को मोनाजाइट के लिए चिन्हित किया गया था। मोनाजाइट से थोरियम निकालने का अधिकार स़िर्फ इंडिया रेयर अर्थ लिमिटेड को है। यह एक पब्लिक सेक्टर कंपनी है।                          अमूमन यह समझा जाता है कि अगर सीएजी यानी कॉम्पट्रोलर एंड आडिटर जनरल इंडिया रेयर अर्थ लिमिटेड और डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के एकाउंट की जांच करे तो कोयला घोटाला काफी छोटा पड़ जाएगा। देश से जो थोरियम गायब है,अगर उसकी कीमत सौ डालर प्रति टन भी लगाई जाए तो यह 48 लाख करोड़ रुपये का घोटाला होगा। वैसे मोनाजाइट और थोरियम के निर्यात का लाइसेंस देने का अधिकार नागपुर में चीफ कंट्रोलर ऑफ माइंस के पास है, जो सीधे केंद्रीय खान मंत्रालय के तहत आता है।

                   वरिष्ठ पत्रकार सैम राजप्पा के मुताबिक, सी पी एम्ब्रोस के 2008 में रिटायर होने के बाद सरकार ने जानबूझ कर किसी रंजन सहाय को काम करने दिया, क्योंकि उनके रिश्ते निजी कंपनियों और उद्योगपतियों के साथ हैं। वैसे भी इतने महत्वपूर्ण पद को चार सालों तक खाली रखना कई सवाल खड़ा करता है।

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