मुँह सूंघ कर शराबी पकड़ने व दुल्हन के कमरे व कपड़े में शराब ढूढने वाली सुशासन पुलिस पूरे देश में सबसे फिसड्डी
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कानपुर तथा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुंबई के द्वारा तैयार आईपीएफ (IPF) स्मार्ट पुलिसिंग इंडेक्स 2021 में अन्य राज्यों की पुलिस के मुकाबले बिहार पुलिस सबसे फिसड्डी हुई है साबित
पटना Live डेस्क। नीतीश कुमार सबसे पहले 3 मार्च, 2000 को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, हालांकि, बहुमत नहीं होने के कारण महज 7 दिन बाद ही उनकी सरकार गिर गई थी। फिर 24 नवंबर 2005 में दूसरी बार बातौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की कमान संभाली फिर 26 नवंबर 2010 को नीतीश कुमार ने तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बाद में कार्यकाल के पूरा होने के पहले ही 2014 के लोकसभा चुनाव में हुई पार्टी की करारी हार का जिम्मा लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। उस समय जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद का कार्यभार दिया था। लेकिन 22 फरवरी 2015 को चौथी बार नीतीश कुमार ने बिहार की कमान संभाली। उन्होंने सीएम के तौर पर शपथ ग्रहण किया।तब से लेकर आजतक बिहार में भले ही राजद नीत महागठबंधन हो या भाजपा नीत NDA मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे और है। समय के साथ विकास पुरुष और सूबे में सुशासन के दावे के साथ सुशासन बाबु इत्यादि से अंलकृत हुए और बिहार में कानून का राज़ यानी सुशासन के दावे है।
7वीं बार बिहार के CM के तौर पर शपथ लेकर नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर काबिज है। नीतीश कुमार के सियासी रणनीतिकार भले ही ‘सुशासन की सरकार’ के लाख दावे कर लें, लेकिन हकीक़त को ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता है। बेतहाशा बढ़ते अपराध और बेक़ाबू अपराधियों की हनक ने बिहार की सुशासन पुलिस की कार्यशैली पर बेहद गंभीर सवालिया निशान लगा दिया है।सूबे की ज़मीनी हकीकत और बिगड़ते हालात के सच को पुख़्ता किया हैइंडियन पुलिस फाउंडेशन (Indian Police Foundation) द्वारा बीते 18नवंबर 2021 को आईपीएफ सिटीज़नशिप सैटिस्फैक्शन सर्वे ऑन स्मार्ट पुलिसिंग, 2021’ के नाम से जारी रिपोर्ट ने। नीतीश कुमार की सुशासन पुलिस यानी बिहार पुलिस ने नीचे से पहला स्थान स्थान प्राप्त किया है या यूं कहें कि देश के तमाम राज्यों की पुलिस के मुकाबले बिहार पुलिस सबसे फिसड्डी साबित हुई है।
इंडियन पुलिस फाउंडेशन ने जारी की रिपोर्ट
IPF SMART POLICING SURVEY 2021 : The survey report has been released today. You can download the report from the IPF website at https://t.co/zZTxz4C1Q5
— Indian Police Foundation (@IPF_ORG) November 18, 2021
दरअसल 18 नवंबर को इंडियन पुलिस फाउंडेशन (Indian Police Foundation) द्वारा ‘आई. पी.एफ. सिटीज़नशिप सैटिस्फैक्शन सर्वे ऑन स्मार्ट पुलिसिंग, 2021’ के नाम से एक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट में देश के सभी राज्यों की पुलिस के गुणवत्तापूर्ण व्यवहार को शामिल किया गया था। दूसरे मायने में आम लोगों के प्रति स्मार्ट पुलिसिंग का तरीका संतोषजनक है अथवा नहीं ? इसी तर्ज पर तमाम राज्यों की पुलिस को वर्गीकृत किया गया था।
इस रिपोर्ट में जहां एक ओर आंध्र प्रदेश पुलिस (8.11) अंकों के साथ शीर्ष पर रही। वहीं दूसरी ओर बिहार पुलिस (Bihar Police) (5.74) अंकों के साथ सबसे फिसड्डी रही। ये रिपोर्ट इसलिए भी खास है क्योंकि खुद इंडियन पुलिस फाउंडेशन ने इस रिपोर्ट को जारी किया है।
आईपीएफ(IPF) ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इस सर्वेक्षण का उद्देश्य भारत में पुलिस की गुणवत्ता और जनता के विश्वास के स्तर के बारे में जनता की धारणा क्या है? इसका आकलन करना है। ताकि खाकी यानी पुलिस आवाम के विश्वास को और अधिक मजबूत और प्रभावशाली बनाया जा सके।
IIT कानपुर और TISS ने तैयार की रिपोर्ट
आईपीएफ।स्मार्ट पुलिसिंग इंडेक्स 2021 रिपोर्ट को को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी,कानपुर तथा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई ने तैयार किया है।इस सर्वेक्षण में 1 लाख 61 हज़ार 192 लोगों को शामिल किया गया था। जिसमें से 64% लोगों के जवाबों को ऑनलाइन माध्यम से तथा 34% लोगों के जवाबों को ऑफलाइन माध्यम से शामिल किया गया।
पहली बार में शराबनीति को किया उदार
नीतीश सरकार जब साल 2005 में सत्ता में आई तो उन्होंने सरकार की शराब नीति को उदार किया। इसके नतीजे में जहां सरकार के राजस्व में बेहताशा वद्धि दर्ज हुई क्या शहर क्या गाँव हर चौक चौराहे और हर पंचायत में शराब की दुकानों का सघन नेटवर्क भी तैयार हुआ।शराब की इस उपलब्धता और गांव के स्तर पर भी शराब की भठ्ठी खुलने के चलते राज्य में विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हुआ तो वर्ष 2016 में 1अप्रैल से देसी शराब पर रोक लगाई गई और 5 अप्रैल से विदेशी शराब और ताड़ी पर भी पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई यानी राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई।इससे जहां सरकार को सालाना 4 हजार करोड़ रूपए का नुकसान उठाना पड़ा,वहीं शराब की कुल 4771 दुकानों पर ताला लग गए।
सुशासन की पुलिस का फिसड्डी अवतार
बिहार में शराबबंदी को लागू कराने में पुलिस के पसीने छूट लगे।एक ओर जहां पुलिस को मुख्यमंत्री के गुस्से का शिकार होना पड़ा, वहीं दूसरी ओर ब्रेथ एनालाइजर की भारी कमी की वजह से पुलिस ‘मुंह सूंघवा’ बन गई। किसी के शराब पीने का शक होने पर पुलिस वाले उसका मुंह सूंघ कर पता करने की कोशिश करती कि उसने वाकई शराब पी रखी है या नहीं?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को हर हाल में कामयाब करने की मुहिम में लगे हुए हैं,जिससे पुलिसवालों को नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। शराब तस्करी पर लगाम व पियक्कड़ों की पहचान करने में उसकी भारी फजीहत हो रही है। एक पुलिस औफिसर तो गुस्से में कहते हैं कि पुलिस वालों को दारू सूंघने के काम में लगा दिया गया है और अपराधियों को सूंघने का काम कुत्ते कर रहे हैं।अपराधियों पर नकेल कसने का काम छुड़वा कर पुलिस को पियक्कड़ों की खोज में लगा दिया गया। समय के साथ पूर्ण शराबबंदी को लागू करने अत्यधिक दबाव, नौकरी बचाने की कवायद के तहत बिहार पुलिस की कार्यशैली पर पड़ी।
पुलिसवालों को कहना है कि शराबबंदी कानून की वजह से उनके कैरियर पर ही खतरा मंडराने लगा है।इस कानून से पुलिसवालों के बीच इतनी दहशत है कि एसएचओ बनते ही उसके गर्दन पर शराब रूपी तलवार लटक जाती है।
सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी सूरत में शराबबंदी को नाकाम नहीं होने देने की जिद पर अड़े हुए हैं। सियासी हालात भी उनके पाले में है। सलिए वह शराबबंदी के अपने वादे को सच में बदलने के कमर कस चुके हैं। जिससे पियक्कड़ों के साथ-साथ शराब कारोबारियों को भी काफी परेशानियों को सामना करना पड़ रहा है।उसके बाद इन सब को काबू में रखने के लिए पुलिसवालों को नाको चने चबाने पड़ रहे हैं। शराब के मुत्तलिक गलती और तुरंत एक्शन से बिहार पुलिस दहशत में है। नतीजतन कार्यशैली सिर्फ शराब और शराबियों के इर्द गिर्द घूम रही है।
दुल्हन के कमरे में घुसने वाली बिहार पुलिस
गौरतलब है कि बिहार पुलिस का व्यवहार किसी से भी छिपा नहीं हैं। बिहार में अपराध चरम पर हैं। पत्रकारों को कहीं जिंदा जलाया जा रहा है, तो कहीं गोली से छलनी किया जा रहा है। व्यापारियों से लाखों करोड़ों लूटे जा रहे हैं,रेप की वारदातें कम होने का नाम नहीं ले रहीं हैं, एडीजी को पुलिस वाले पीट देते हैं और जंगलराज के नाम पर सूबे की सियासत और पूर्ण शराबबन्दी के नाम पर विपक्ष सिर्फ राजनीति कर रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी सूरत में शराबबंदी को नाकाम नहीं होने देने की जिद पर अड़े है तो दूसरी तरफ बिहार पुलिस के अधिकारी ‘शराबबंदी’ के नाम पर दुल्हन के कपड़ों और उसके कमरे की तलाशी में मशगूल रहते हैं।पूछने पर हंस के कहते हैं कि ऊपर से आदेश है।
उनकी सरकार में बैठे लोग नीति आयोग की रिपोर्ट तक को झुठला देते हैं। ऐसे में इंडियन पुलिस फाउंडेशन की रिपोर्ट एक बार फिर से बिहार पुलिस पर सवाल खड़े करती है। देखना होगा कि बेशर्मी की सारी हदें पार करती ये सरकार आगे क्या नए गुल खिलाती है।
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