मनोज/ब्यूरो प्रमुख/मुजफ्फरपुर
पटना Live डेस्क. एसकेएमसीएच..राजधानी पटना के पीएमसीएच के बाद उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार..लेकिन जरा इस तस्वीर को देखकर इसकी हकीकत जानिए…आप अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगे..कि इस अस्पताल में इस तरह से मरीजों का इलाज होता है…कोई भी सामान्य आदमी इस तस्वीर को देखकर दहल जाएगा..जिस मरीज को अस्पताल के बिस्तर पर होना चाहिए और उचित देखभाल होनी चाहिए ..वो जमीन पर पड़ा तड़प रहा है…दवा की कौन पूछे..उसे तो बिस्तर भी मयस्सर नहीं है….यह मरीज इस अस्पताल में इलाज कराने आया है या फिर अपनी जान से हाथ धोने..इस तस्वीर को देखकर आप इस बात का फैसला कीजिए… हम तो महज इस बड़े अस्पताल की सच्चाई से आपको रुबरू करा रहे हैं… हो सकता है कि यह मरीज लावारिस होगा लेकिन मानवीय संवेदना क्या कहती हैं.. अस्पताल में लाखों-करोंड़ों का बजट बनाया जाता है ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके..उसकी अच्छे से देखभाल हो सके…लेकिन तस्वीर देखने के बाद यह साफ लगता है कि इस अस्पताल में न तो मरीजों को सही ढंग से इलाज मिलता है…और न ही उनकी उचित देखभाल…इस बड़े अस्पताल में हजारों की आबादी रोजाना इलाज कराने पहुंचती है…लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां मरीजों को मिलता है शिफर..यहां तक की किसी मरीज की मौत हो जाने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन परिजनों को एंबुलेंस मुहैया कराने में भी आनाकानी करता है..अगर आपने शिकायत की तो..आप सबसे पहले यहां काम कर रहे कर्मचारियों की नजरों में आ जाएंगे..दूसरे अस्पताल प्रबंधन जांच की बात कर अपना पल्ला झाड़ लेगा..यही सच्चाई है इस एसकेएमसीएच की..एक बार फिर इस मरीज की तस्वीर पर गौर फरमाइए..जिस जगह यह मरीज पड़ा हुआ है उस जगह की गंदगी देखकर तो शायद जानवर भी जाना पसंद ना करे…लेकिन गंभीर रुप से बीमार इस मरीज के लिए शायद अस्पताल प्रशासन की नजरों में यही जगह है…गंदगी का अंबार..पान की पीक..यानि अस्पताल में रहते हुए भी बस मौत का इंतजार..
नाली के उपर सोए इस मरीज को शायद अस्पातल ने भी जान बूझकर मरने के लिए ही छोड़ दिया है.. डॉक्टर की कौन पूछे…शायद नर्सों ने भी इस मरीज की हालत देखकर अपना मुंह मोड़ लिया है..यह सच्चाई है इस बड़े अस्तपताल की..हालांकि जब इस तस्वीर पर बहस शुरु हुई तो अस्पताल प्रशासन की नींद खुली..और फिर से वही बात…विभागीय अधिकारियों को तस्वीर दिखाने पर शायद उनकी अंतर्रात्मा जागी और इस बात की जांत कराए जाने की बात कही…लेकिन सवाल उठता है कि आखिर जांच से होगा क्या..जब जिम्मेदारी ही तय नहीं है तो फिर जांच कराने से क्या होगा..शायद अस्पताल प्रशासन भी यह बखूबी जानता है कि किसी भी विवादों वाले विषय की जांच की बात कहो..कुछ दिन टालो..जिससे लोगों का ध्यान उस विषय से हट जाए…और जो मन वो करो..शायद यही किस्मत है इस अस्पताल में आने वाले मरीजों की जो जान बच जाने की बात सोचकर तो आते हैं लेकिन बदले में उन्हें मिलती है केवल लापरवाही….लापरवाही और बस लापरवाही..
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