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इस वजह से नीतीश नहीं छोड़ेंगे लालू का साथ

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कभी बिहार की राजनीति के ‘राजा’ कहे जाने वाले लालू प्रसाद का राजनीतिक भविष्य फिलहाल दांव पर है. सीबीआई रेड और उनके परिवार के खिलाफ एफआईआर के बाद उनके उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव का दामन भी दागदार नजर आ रहा है. बडी बेटी मीसा भारती भी बेनामी संपत्ति के मामले में घिरती नजर आ रही हैं. ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर लालू का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? उनकी राजनीतिक विरासत का क्या होगा जिसके लिए उन्होंने महागठबंधन किया. अब सबकी नजर सूबे के मुखिया नीतीश कुमार की तरफ है कि वो आखिर क्या फैसला लेते हैं. नीतीश कुमार के लिए भी आरजेडी के खिलाफ फैसला लेना आसान नहीं होगा. राजनीति को करीब से जानने वाले लोग कहते हैं कि नीतीश उसूलों वाले नेता हैं और वो भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस वाली नीति और अपनी छवि को दागदार नहीं होने देंगे. सियासी गणित पर अगर नजर डालें तो फिलहाल गठबंधन टूटने की संभावना बहुत कम ही दिखती है.
1. जातिगत गणित गड़बड़ा सकता है
किसी भी फैसले से पहले नीतीश कुमार को जातिगत समीकरणों का ज्यादा ख्याल रखना होगा. उनके सामने साल 2019 का लोकसभा चुनाव है. नीतीश कुमार बार-बार कह रहे हैं कि वो 2019 में पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं लेकिन ये महज सामने कही हुई बातें हैं अंदरखाने ये बात सभी जानते हैं कि नीतीश कुमार आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष के सर्वमान्य नेता के तौर पर उभर सकते हैं. ऐसे में उन्हें खासकर बिहार में अपनी पार्टी की लोकसभा सांसदों की स्थिति बेहतर करनी होगी. उन्हें बेहतर प्रदर्शन करना होगा तभी वो अपनी उम्मीदवारी पर सभी दलों की मुहर लगवा सकते हैं. सच्चाई ये भी है कि अगर ये गठबंधन टूटा तो जातियों का परंपरागत वोट नीतीश से छिटक जाएगा जिसका सीधा फायदा आरजेडी को मिल सकता है. सूबे में यादव और मुस्लिमों के वोट बैंक पर लालू की अच्छी पकड़ है ऐसे में अगर नीतीश गठबंधन तोड़ने का फैसला लेते हैं तो यादवों के 14 फीसदी और मुस्लिमों के 16.8 फीसदी वोटों से हाथ धोना पड़ सकता है. जो नीतीश कुमार शायद ही चाहेंगे.
2. बिहार में सत्ता पर पकड़
राज्य में आरजेडी के बड़ा दल होने के बाद भी सत्ता नीतीश कुमार के हाथों में है. 224 सदस्यों वाली विधानसभा में राजद के पास 80 सीटें हैं जबकि नीतीश के पास 71 सीटें हैं. अगर गठबंधन टूटता है तो सरकार बच सकती है लेकिन नीतीश ऐसा नहीं चाहेंगे कारण है कि बीजीपी के साथ उनका सत्रह सालों तक का गठबंधन रहा है. नीतीश कुमार जानते हैं कि अगर बीजेपी के पाले में दोबारा गए तो उनकी स्थिति पुराने गठबंधन वाली नहीं रहेगी जबकि वर्तमान में लालू प्रसाद और उनके परिवार पर लग रहे आरोपों के बाद नीतीश कुमार की स्थिति गठबंधन में मजबूत होगी और वो शायद ही लालू के गठबंधन तोड़ बीजेपी के साथ जाएंगे.
3. मोदी से समीकरण मुश्किल
साल 2014 में जिस तरह नीतीश ने मोदी के नाम पर एक झटके से बीजेपी के साथ सत्रह सालों का नाता तोड़ दिया था उससे वो दोबारा बीजेपी में जाने को लेकर सहज नहीं हो पाएंगे. मोदी के आगे पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर उनका बीजेपी में कोई चांस नहीं है. दूसरी तरफ विपक्ष में कांग्रेस भी कमजोर हुई है और यहीं नीतीश कुमार के लिए विपक्ष में  संभावनाएं ज्यादा बनती दिखाई देतीं हैं. सबसे खास बात पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर ही है. नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि को मोदी के खिलाफ आगे करने में विपक्ष को भी कोई परेशानी नहीं होगी.
4. वेट एंड वॉच
राष्ट्रीय राजनीति में अपनी दमदार पहचान बनाने को आतुर नीतीश कुमार निश्चित तौर पर साल 2019 तक वेट करना चाहेंगे. उनके समर्थक उन्हें विपक्ष का सबसे विश्वसनीय चेहरा मानते हैं. हालांकि वो पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर ना-ना कर रहे हैं लेकिन जानकार बताते हैं कि विपक्ष की तरफ से वो सर्वमान्य चेहरा बन सकते हैं और कई लोग उन्हें पीएम पद के चेहरे के तौर पर देखते हैं. वहीं नीतीश कुमार भी बीजेपी में मोदी के आगे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी संभावनाएं ज्यादा नहीं देखते. इसलिए वो साल 2019 तक इंतजार करना ज्यादा पसंद करेंगे.

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