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बडी खबर – बिहार में सबसे कम वोट पानेवाला,नाही कोई प्रचंड जनाधार फिर भी घाघ सरदार यानी नीतीश कुमार

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# पिछले एक दशक में बिहार की जनता ने सबसे कम वोट नीतीश को ही दिए

पटना Live डेस्क। बिहार की सियासत में सबसे सफ्फाक चेहरा जिसके बाबत उसके दल का मानना है कि उसके चेहरे की वजह से वोट मिलते है। दावा बिहार में नीतीश का सबसे लोकप्रिय और जनाधार वाले नेता होने का हैं। लेकिन हक़ीक़त और आंकड़े इस बात की तस्दीक तो बिल्कुल नही करते है।


कम से कम आंकड़े तो ऐसा इशारा नहीं करते हैं। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट की माने तो पिछले दशक में बिहार के मतदाताओं ने छह चुनावों में मतदान किया है-2004 लोकसभा,2005 विधानसभा,2009 लोकसभा, 2010 विधानसभा,2014 लोकसभा और 2015 विधानसभा। इस अवधि में हर 100 बिहारी मतदाताओं में से लगभग 37 ने भाजपा को वोट दिया है तो 30 मतदाताओं ने लालू प्रसाद यादव के राजद के लिए वोट किया है। 17 से अधिक ने जद (यू) के लिए वोट नहीं दिया है और केवल 10 ने राष्ट्रीय कांग्रेस को वोट दिया है।
कब इस आंकड़े के सच को सरल शब्दों में समझे। बिहार में नीतीश कुमार की प्रचंड लोकप्रियता चुनावी संख्या में दिखाई नहीं देती है। सवाल यह है कि 2005 से अब तक,यानी 13 सालों से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री कैसे रहे हैं? इसका जवाब नीतीश कुमार के चुनावी गठबंधनों की पैंतरेबाजी और ‘फर्स्ट-पास्ट-द – पोस्ट सिस्टम’ में है।
वर्ष 2004 के बाद से बिहार में छह चुनावों के दौरान, चार मुख्य सियासी दल जद(यू),भाजपा,राजद और कांग्रेस के बीच चुनाव गठबंधन सहयोगी हमेशा बदलते रहे हैं। इसलिए इनमें से प्रत्येक दलों के लिए मतदाता समर्थन को सही ढंग से प्रस्तुत करना मुश्किल है। लेकिन इन छह चुनावों में कम से कम एक उदाहरण ऐसा सामने आया है,जब इनमें से सभी पार्टियों ने अकेले चलने का निर्णय लिया और इससे हमें पार्टी और इसके नेता के लिए साफ समर्थन करने का एक रास्ता मिल जाता है।
वर्ष 2009 और 2010 में  आरजेडी और कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़ा था। 2014 में जद (यू) और भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा, जबकि 2015 में भाजपा चुनावी मैदान में अकेले उतरी थी। नीचे छह चुनावों का चुनावी नक्शा दिया गया है।

गठबंधन की सियासत में भाजपा लूटी है अबतक

बिहार में भाजपा सबसे लोकप्रिय और जनाधार वाली पार्टी है। जैसा कि हमने बताया बिना किसी गठबंधन के हर 100 मतदाताओं में से 37 मतदाताओं ने भाजपा को ही वोट दिया है। बिहार में भाजपा का समर्थन सबसे स्थिर (37-39 फीसदी) रहा है और किसी भी गठबंधन से इसे सबसे कम लाभ मिलने की संभावना है। बिहार में भाजपा की लोकप्रियता से नरेंद्र मोदी के लिए 2014 के आम चुनाव में जीत की पहले ही भविष्यवाणी हो चुकी थी। जनाधार के आधार पर, 100 में से 30 मतदाताओं के साथ लालू यादव की राजद दूसरी सबसे लोकप्रिय पार्टी है।

                      इसके अलावा, बिहार में 55 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां 2009 और 2015 के बीच हुए प्रत्येक चार चुनाव में जद (यू) के उम्मीदवार रहे हैं। इन 55 विधानसभा क्षेत्रों में जद (यू) के अकेले चुनाव लड़ने पर केवल 22 फीसदी मतदाताओं ने इसे चुना है। लेकिन जब इसने भाजपा या आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, तब 43 फीसदी ने जद (यू) को चुना है।

100 में महज 17 लोगो का वोट

धारणा के विपरीत, इन तीनों में नीतीश कुमार सबसे कम लोकप्रिय हैं। जैसा कि हमने पहले बताया, बिहार के 100 मतदाताओं में से केवल 17 ने नीतीश कुमार की पार्टी को वोट दिया है। दूसरे शब्दों में, बिहार के मतदाताओं ने बड़ी संख्या में जद (यू) को तभी वोट दिया है,जब यह पार्टी किसी के साथ गठबंधन में रहा है। इसके विपरीत, हमने चार चुनावों में आरजेडी उम्मीदवार के साथ 58 निर्वाचन क्षेत्रों का उल्लेख किया था। 33 फीसदी मतदाताओं ने राजद को तब चुना, जब पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा और किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन करने पर 45 फीसदी वोट हासिल किए । जद(यू) की तुलना में आरजेडी के पास अपना खुद का मजबूत जनाधार है।

         इस गठबंधन का सीधा लाभार्थी जद(यू)था। जिसने अपना वोट शेयर 2014 में 17 फीसदी से बढ़ाकर 2015 में 41 फीसदी किया था। आंकड़ों से स्पष्ट है कि आज नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नहीं होते, अगर आरजेडी के मूल समर्थक वफादार नहीं होते और गठबंधन छोड़ दिया होता।

             वर्ष 2014 में जब नीतीश कुमार को अकेले के दम पर चुनाव लड़ने छोड़ दिया गया था,तभी यह स्पष्ट हो गया था कि उनके समर्थन का आधार उतना बड़ा नहीं था, और समर्थक उतने वफादार नहीं थे,जैसा माना जाता था। आज भी नीतीश कुमार को भाजपा या राजद की ज्यादा जरुरत है। जैसा कि प्रसिद्ध निवेशक वॉरेन बुफे ने कहा था: “केवल जब ज्वार निकल जाता है, तो आप जानते हैं कि कौन बिना कपड़ों के तैर रहा है।”

साभार – इंडिया स्पेंड

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