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फेरीवालों के गाल की हिफ़ाज़त कीजिए सीएम साहब , मार खाकर कब तक गांधीवादी बने रहेंगे?

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श्री अजीत अंजुम, वरिष्ठ पत्रकार

पटना Live डेस्क। आपमें से कितने लोग इस कदर गांधीवादी हैं कि कोई आपको एक गाल पर तमाचा मारे तो आप दूसरा गाल बढ़ा देंगे ? मुझे जवाब दीजिए या न दीजिए,अपने भीतर इसका जवाब जरुर खोजिए। मुझे संदेह है कि आप तमाचा खाकर चुपचाप दूसरा गाल बढ़ा देंगे।वो भी तब जब तमाचा मारने वाला आपको कमजोर समझकर आए दिन हाथउठाने आ जाए।आप अगर मरने -मारने से डरेंगे तो तमाचा मारने वालेके खिलाफ पुलिस में शिकायत करेंगे। केस दर्ज करेंगे।उसके बाद भीपुलिस कुछ न करे और तमाचा मारने वाला आपके गालों पर अपनेहाथ का प्रयोग करने आता रहे तो ? गांधीवाद में चाहे जितना यकीन करें,एक दिन रिएक्ट जरुर कर जाएंगे।मुंबई में फेरीवालों ने यही किया है।रिएक्ट किया है।राज ठाकरे की उत्पाती ब्रिगेड बीते पंद्रहदिनों से अलग -अलग इलाकों से फेरीवालों को जबरन हटा रही है।उनका कहना है कि ये सब गैरकानूनी ढंग से धंधा कर रहे हैं।उन्होंने सरकार और बीएमसी को पहले पंद्रह दिन के भीतर ऐसे फेरीवालों कोहटाने का अल्टीमेटम दिया।सरकार ने कुछ नहीं किया तो खुद सरकार बन गए।लाठी-डंडे लेकर सुबह -शाम फेरीवालों का शिकार करनेनिकल पड़े।कई दिनों तक ये सब होता रहा। हैरत की बात ये है किराज्य सरकार की तरफ से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई . कई दिनों तक फेरीवालों को भगाते-मारते रहे।ऐसा लगा जैसे बीएमसीऔर सरकार ने राज ठाकरे एंड कंपनी को फेरीवालों का मार-पीटकर भगाने का सरकारी ठेका दे रखा हो।                                                                                मैंने कल मुंबई के फेरीवालों की तरफ से राज ठाकरे के उत्पाती गुंडों के‘घरेलू इलाज’ को सही ठहराते हुए एक पोस्ट लिखी थी।उस पोस्ट केबाद कई लोगों की प्रतिक्रिया मुझे मिली।देश के अलग -अलग हिस्सो के ज्यादातर हिन्दी भाषी लोगों को मेरे लिखे से कलेजे को ठंढ़क मिली। जैसे को तैसा मानकर उन्हें लगा कि हां ,फेरीवालों ने राज ठाकरे केगुंडों का अपने ढंग से ‘इलाज’ करके ठीक किया है। आत्मरक्षार्थ उठाया गया कदम था।मुंबई या ठाणे में सालों से पिटते ही तो आरहे हैं। मुंबई को अपनी जागीर समझने वाले राज ठाकरे और उनकी गुंडावाहिनी जब-तब लाठी-डंडो से लैश होकर उनके ठीहों-ठिकानों पर हमला बोलने आ जाती है।उन्हें भी मारती है और उनके रोजी -रोजगार पर भी लात मारती है। इस बार उनके सब्र का पैमाना छलक गया। डरे को जब बहुत डराओ को कई बार आदमी निडर हो जाता है। वो कहते हैं न कि डर के आगे जीत है, तो इस बार मलाड इलाके में जब राजठाकरे का उत्पाती दस्ता फेरीवालों से उलझने आया तो भिड़ंत हो गई।दोनों तरफ से मारपीट में जिसका ज्यादा जोर चला, उसने ज्यादा पीट दिया।जाहिर है तादाद में फेरीवाले ज्यादा थे। तो एमएनएस वाले ज्यादा पिट गए।दोनों तरफ से कुछ लोग थाने और अस्पताल में हैं।मैंने कल भी कहा था ,आज फिर दोहरा रहा हूं कि कानून किसी भीसूरत में हाथ नहीं लेना चाहिए।यही हमारा नागरिक कर्तव्य भी है।लेकिन कानून हाथ में लेकर सड़क पर उतरे ठाकरे के गुर्गों को कोई कंट्रोल न करे तो फेरीवाले कब तक पिटते रहते,तो यो तो किसी न किसी दिन होना ही था।न होता तो बेहतर होता।अब अगर ये हुआ है तो भी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। मुख्यमंत्री फडनवीस की है।ये हुआ क्यों ?दोबारा ऐसी घटना न हो इसके लिए अब तक उन्होंने क्या किया है ?

अब बात वैद्य और अवैद्य फेरीवालों की।कहा जा रहा है कि मुंबई में करीब 21000 लाइसेंसी फेरीवाले हैं।जबकि कुल फेरीवालों की तादाद तीन लाख के करीब है।1997 के बाद से बीएमसी ने फेरीवालों को लाइसेंस देना बंद कर रखा है।इस हिसाब से देखें तो करीब पौने तीन लाख फेरीवालों के पास ठीहा-ठेला लगाने का लाइसेंस नहीं है। मुंबई कांग्रेस के नेता संजय निरुपम बार -बार ये आरोप लगाते रहे हैं कि गैर लाइसेंसी फेरीवालों से हर महीने तीन सौ करोड़ से चार सौ करोड़ की उगाही होती।उगाही का ये आंकड़ा अगर इतना न भी हो तो भी ये सर्वविदित तथ्य है कि बिना उगाही के एक भी फेरीवाला अपनी दुकान नही सजा सकता है। तो फिर बीएमसी क्यों इतने सालों से चुप बैठी है ? क्यों नहीं नए सिरे से सर्वे करके इन्हें या वैद्य या अवैद्य घोषित करती है ? जो काम राज ठाकरे लाठी को जोर पर मराठी अस्मिता के नाम पर कर रहे हैं,वो बीएमसी करे।एक अनुमान के मुताबिक मुंबईके फेरीवालों में 30 फीसदी मराठी और करीब 70 फीसदी हिन्दी भाषी हैं यानी उत्तर भारतीय हैं।हमलों के निशानों पर ये उत्तर भारतीय हीज्यादा होते हैं।फेरीवाले अपनी लड़ाई के लिए हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट तक गए।कोर्ट ने बीएमसी को भारतीय संसद द्वारा 2014 में पारित फेरीवाला आजीविक संरक्षण कानून लागू करने के निर्देश भी दिए। मुंबई और ठाणे में आजतक ये कानून लागू नहीं हो सकता। न तो बीएमसी ने इस दिशा में कुछ किया,न राज्य सरकार ने।अब जो कर रहे हैं राज ठाकरे कर रहे हैं,जैसे बीएमसी भी उनकी,सरकार भी उनकी।

गूगल पर सर्च के दौरान मीडिया रिपोर्टस से ये भी पता चला कि 2 अगस्त, 2015 को आए मुंबई उच्च न्यायालय के एक और आदेश में कहा गया है कि जब तक सरकार फेरीवालों के लिए बना कानून लागूनहीं कर पाती,तब तक उन्हें हटाया न जाए।बावजूद इसके सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए हैं।ऐसा लगा रहा है जैसे मामला फेरीवालों और एमएनएस के बीच हो गया हो। बीएमसी और राज्यसरकार बीच में दिख ही नहीं रही है।यही चिंता की बात है।अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में फिर टकराव दिख सकता है।इस बार फेरीवालों ने ठान लिया है कि मार खाकर भागेंगे नहीं,हम भी मारेंगे अगर वो मारने आएंगे।

 

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