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अब बिहार के बच्चों को भी मिलेगा बंपर मार्क्स,योजना तैयार कर रही सरकार

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पटना Live डेस्क. पिछले दो सालों से टॉपर घोटाले के नाम पर फजीहत झेल रही राज्य सरकार ने सूबे की शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन करने की ठानी है. गुरुवार को ही सरकार ने ये एलान किया कि तीन बार पात्रता परीक्षा में फेल होने वाले नियोजित शिक्षकों को हटाया जाएगा साथ ही पचास साल के उपर के शिक्षकों को भी वीआरएस देने की बात कही गई है. वहीं अब सरकार ने बिहार बोर्ड के प्रश्नपत्रों को सीबीएसई के तर्ज पर तैयार कराने की बात कही है. मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि सरकारी स्कूलों के बच्चे भी शत-प्रतिशत अंकर हासिल कर सकें इसके लिए प्रश्नों को अब सीबएसई के तर्ज पर तैयार कराया जाएगा.

उन्होंने आगे कहा बताया कि अब मात्र 1 प्रतिशत बच्चे स्कूलों के दायरे से बाहर रह गए हैं. इनमें अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक वर्ग और आर्थिक-सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़े वर्ग के बच्चे ज्यादा हैं. राज्य में 947 प्राथमिक विद्यालयों के लिए जमीन मिल गई है. वहां पर जल्द भवन का निर्माण शुरू कराया जाएगा. राज्य में तमाम कोशिशों के बावजूद गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और संस्कृत के शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं. इस समस्या से निबटने के लिए माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में ई-लर्निंग की व्यवस्था शुरू होगी.

दरअसल बिहार बोर्ड के बच्चों को सीबीएसई से अलग पैटर्न होने के चलते कम मार्क्स का खामियाजा भुगतना पड़ता है और वो चाहकर भी बिहार से बाहर दूसरे विश्वविद्यालयों में एडमिशन नहीं करवा पाते.

आपको बता दें कि बिहार बोर्ड की साइंस टॉपर खुशबू ने भी  शिकायती लहजे में कहा था कि साइंस टॉपर होने के बाद भी वो अपना दाखिला अच्छे जगह नहीं करवा सकी. उसने कहा कि मुझे उम्मीद थी मेरे 95 फीसदी से ज्यादा मार्क्स आएंगे लेकिन उन्हें 500 में से कुल 431 यानि 86.2 फीसदी अंक मिले हैं. इस नंबर में डीयू के अच्छे कॉलेज में दाखिला मिलना मुश्किल है. जबकि सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के स्टूडेंट्स के स्टूडेंट्स को 97 और 98 फीसदी तक अंक हासिल होते हैं.

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