बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

बड़ा खुलासा — भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उठाई आवाज तो दारोग़ा ही हो गया सस्पेंड ताकि खुद को “सुल्तान” कहने वाले थानेदार की नाजायज सल्तनत “गंज” में जारी रहे

199

पटना Live डेस्क। पुलिस विभाग में जारी भ्रष्ट आचरण के खिलाफ पारदर्शिता की बात बिहार पुलिस के मुखिया समेत तमाम वरीय अधिकारी करते है। लेकिन जब बात आती है स्वच्छता और पारदर्शिता की तो “सच का सामना” करने की बजाय उसकी आवाज को ही दबाने में पूरा सिस्टम उठ खड़ा होता है। इसी की बानगी दिखी है। राजधानी पटना में जहां भ्रष्टाचार में संलिप्त अपने ही थाने के इंस्पेक्टर के खिलाफ सिटी एसपी व अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के सामने एक दारोगा ने आवाज उठाई तो उसे निलंबित कर दिया गया। यानी सच की आवाज को ही सज़ा दे दी गई। वही इस पूरी साज़िश के पीछे खुद को “सुल्तान” समझने वाले थानेदार ने बेहद नकारात्मक भूमिका निभाई है ताकि उसके नाजायज करतूतों का प्रवाह “गंज” बेखटक जारी रह सके।
अमूमन व्हिसिल ब्लोअर की तारीफ सभी करते है पर भुगतता तो बेचारे उस निडर को ही भुगतान पड़ता है। ठीक ऐसा ही हुया है एक खाकी वाले के साथ जिसने वर्षो से जमे एक थानेदार की करतूतों को उसने अपने एसपी के सामने ही सिलसिले वार ढंग से खोल दी। अपनी पोल पट्टी खोले जाने से सकपकाए थानेदार ने एसपी के सामाने ही दारोग़ा को धमकाने की कोशिश की। लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था। उल्लेखनीय है वर्त्तमान एसपी उसी जिले से राजधानी आये है जहा के वर्त्तमान एसपी के बाबत “सुल्तान” थानेदार का दावा है कि उनकी मुछो से ही आईपीएस महोदय डर जाया करते है। खैर, वो डरते है या नही ये तो नही कहा जा सकता पर इंस्पेक्टर साहब का दावा करते है कि एसपी डीएसपी को चराने में उनको महारत हासिल है।
खैर, कहते है न सच परेशान हो सकता हैपराजित नही। खुद को “गंज” का “सुल्तान” समझने वाले थानेदार साहब की रिपोर्ट पर नए नवेले सिटी एसपी ने दारोग़ा को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया। यानी व्हीसिल ब्लोअर बन इंस्पेक्टर की पोल खोलने वाले दारोग़ा को उसी इंस्पेक्टर के रिपोर्ट पर निलंबित कर दिया गया।

सच परेशान हो सकता है पराजित नही

लेकिन, सच बताने से कुपित इंस्पेक्टर साहब दारोग़ा के खिलाफ ल रिपोर्ट देकर खुद फंस गए है। बक़ौल रिपोर्ट के इंस्पेक्टर ने दारोगा को भगोड़ा करार दिया है। जब कि हकीकत यह है कि रिपोर्ट में अंकित अवधि के दौरान दारोग़ा न केवल थाने में ड्यूटी कर रहा था, बल्कि बजाप्ता स्टेशन डायरी भी मेंटेन करता रहा है साथ ही उक्त अवधि में दारोगा ने 2 गिरफ्तारियां भी की है साथ ही 2 छापेमारी को भी अंजाम दिया है। कहते है ज्यादा चालाक और शांतिर तीन जगह उलझता है। ठीक कुछ ऐसा ही हुआ है थानेदार के साथ भी। अपने ही बने जाल में उलझ गये है जनाब अब इंस्पेक्टर चाह कर भी स्टेशन डायरी और रोज़नामचे को तो बदल नही सकते साथ ही दारोग़ा दोनों गिरफ्तारी पर कोर्ट में सुपुर्द दस्तावेजों के साथ हेरफेर करने की कूबत तो कम से कम एक इंस्पेक्टर में तो नहीं है।भले ही वो स्टेशन डायरी में हेरफेर की साज़िश कर सकता है।

कानूनी लड़ाई की तैयारी

पुलिस विभाग में यह बेहद मामूली वाक्या है। थानेदार और दारोग़ा निलंबन और स्पष्टीकरण लागतार झेलते है। पर यह प्रकरण तब बड़ा स्वरूप लेगा जब सच की लड़ाई में दरोगा कार्रवाई के खिलाफ हाई कोर्ट की शरण में जाएगा। उसने न्याय पाने का संकल्प करते हुए इंस्पेक्टर के खिलाफ मोर्चा खोलने की पूरी कागजी तैयारी शुरू कर दी गई है।

उठेंगे सवाल लपेटे होंगे वरीय अधिकारी

मामले के हाईकोर्ट में पहुचते ही सर्वप्रथम सवाल उठेगा की सिटी एसपी और एडिशनल एसपी ने दरोगा की बात पर इंस्पेक्टर के कार्यकलापों की जांच क्यों नहीं कराई? इंस्पेक्टर ने जो रिपोर्ट दी,उसकी जांच क्यों नहीं हुई? साथ ही यह एक यक्ष प्रश्न बनेगा की रिपोर्ट की जानकारी क्या पटना एसएसपी को दी गई? इसका जवाब ना के तौर पर होगा तब यह प्रश्न उठेगा की आखिर बिना एसएसपी को अवगत कराएं क्यो सिटी एसपी ने जिलादेश निकाल दिया? क्या सिटी एसपी को इंस्पेक्टर की हरकतों के बारे में पता है? अगर हाँ, तो उन्होंने कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या वो भी लाभान्वित होते हैं?

 

Comments are closed.