बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

बड़ा खुलासा – कुछ दाग अच्छे होते है …बिहार का डीजीपी बना देते है।

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कुलदीप भारद्वाज, मैनेजिंग एडीटर, पटना Live
पटना Live डेस्क।बिहार के वर्त्तमान डीजीपी  आईपीएस पी के ठाकुर अब से कुछ घंटों बाद यानी 28 फरवरी को रिटायर्ड हो जाएगे। बिहार पुलिस के नए मुखिया का चुनाव भी कर लिया गया है नोटिफिकेशन भी जारी हो गया है। एक मार्च से प्रभावी हो जाएगा। बधाई बिहार पुलिस को बधाई के एस द्वीवेदी को।बिहार कैडर के 37 RR बैच के आईपीएस अधिकारी Dr कृष्ण स्वरूप द्वीवेदी मूलतः उत्तर प्रदेश के मूल निवासी है। वे मौजूदा डीजीपी पीके ठाकुर से 28 फरवरी को पदभार ग्रहण करेंगे। द्विवेदी अभी बिहार में पुलिस महानिदेशक (ट्रेनिंग) के पद पर हैं। डीजीपी के रूप में उनका कार्यकाल 31 जनवरी 2019 तक रहेगा।
व्यक्ति परिचय और अबतक का सफरनामा
नवनियुक्त बिहार पुलिस के मुखिया डॉ कृष्ण स्वरूप द्वीवेदी के नाम की घोषणा होने के बाद अब यह साफ हो गया है कि प्रदेश का अगला डीजीपी कौन होगा। 1984 बैच के बिहार कैडर के आईपीएस ऑफिसर द्विवेदी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के औरैया रहने वाले हैं। फिलॉसफी में मास्टर डिग्री ले रखी है। वह अभी वर्तमान में डीजी ट्रेनिंग और केंद्रीय चयन पर्षद (सिपाही भर्ती) के अध्यक्ष हैं।इससे पहले वह कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं।अब तक उनकी पदस्थापना और पोस्टिंग कुछ इस तरह रही है।

अबतक की पदस्थापना और पोस्टिंग

वो दाग जो अच्छे साबित हुए
बिहार के डीजीपी के तौर पर कुछ घंटों बाद कमान संभालने वाले Dr कृष्ण स्वरूप द्वीवेदी का कैरियर रिकॉर्ड तो अपने ऊपर देख लिया है। पर अब थोड़ा भागलपुर दंगे के काले इतिहास पर नजर डालते हैं। दंगे की शुरुआत 25 अक्टूबर 1989 को हुई थी। उस समय आरएसएस पूरे देश में अयोध्या विवाद को हवा देने के इरादे से रामशिला पूजन करवा रही थी।भागलपुर में आरएसएस पहले से मजबूत स्थिति में था। इसकी कई वजहें रही थीं।
तनाव पूरे देश में था और भागलपुर भी अपवाद नहीं था।अक्टूबर महीने में शिलापूजन का जुलूस निकाला जाना था और उसके पहले अगस्त में ही जोर-शोर से तैयारी शुरू हो गईं थीं। इसी दरम्यान मुहर्रम और विषहरी पूजा का आयोजन होना था। यह आरएसएस की खतरनाक रणनीति का हिस्सा थी कि पारंपरिक विषहरी पूजा व्यापक बन चुकी थी। जब भागलपुर में विषहरी पूजा शुरू हुई तब संघ समर्थकों ने मुसलमानों के इलाके खासकर नाथनगर और चंपानगर में तनाव बढ़ाने का भरसक प्रयास किया। परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन एसपी के एस द्विवेदी के नेतृत्व में जिला प्रशासन ने स्थिति को संभाल लिया। शांति समिति की बैठक कराई गई और मुहर्रम के जुलूस को स्थगित करा दिया गया।
लेकिन ….8 शूटरो का इनकाउंटर

एक और बेहद अहम खुलासा किया था भागलपुर के मूल निवासी और वरीय पत्रकार डॉ ओमप्रकाश सामबे
ने बकौल उनके लिखे लेख के अनुसार भागलपुर में एसपी केएस द्विवेदी आए और शहर में बढ़ते अपराध को रोकने के मकसद से आउट ऑफ बॉक्स जाकर शहर के अपराध जगत पर लंबे अरसे तक दबदबा रखने वाले अपराधी अंसारी के आठ शूटरों को एक मुठभेड़ में ढेर कर दिए। सभी शूटर मुस्लिम थे। फिर क्या था? एसपी केएस द्विवेदी से बदला लेने के लिए अपराधी अंसारी ने कट्टरपंथी मुल्लाओं का सहारा लिया और विद्वेष का वातावरण बनाने लग गया। मुस्लिम समाज को भड़काने में लग गया। वैसे,अपराध जगत में अंसारी ‘मौलवी’ के नाम से मशहूर था।अपनी इस छवि का उसने खूब फायदा उठाया। उसका मनोबल काफी बढ़ा हुआ था। भागलपुर को पता था कि उसकी पीठ पर दिग्गज कांग्रेसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद का हाथ था और वह चुनानी मैदान में खड़ा था। अंसारी की मदद के बिना उसकी चुनावी दाल गलने वाली नहीं थी, यह वह जानता था। आपको बता दें कि वह अंतकाल में भाजपा में शामिल होकर रघुवरपुर के लिए प्रस्थान कर गए।खैर शहर का माहौल कुछ ऐसा बन गया था कि एक तरफ अपराधी अंसारी अपने आठ शूटरों की लाश लेकर मुस्लिमों के बीच घूम रहे थे और दूसरी तरफ चरमपंथी हिंदू संगठन वाले रामशिला लेकर। प्रशासन था बेखबर। विद्वेष था चरम पर।अफवाहों और दंगाइयों को रोकने की कोई ठोस तैयारी प्रशासन की नहीं थी। जबकि शहर विषहरी पूजा के दौरान दंगे का ट्रेलर देख चुका था। फिर भी प्रशासन को यह समझ में नहीं आया था कि पिक्चर अभी बाकी है और अक्टूबर 24,1989 को उस पिक्चर का मुर्हूत निकाल लिया गया था। स्थानीय प्रशासन को छोड़कर सभी स्थानीय निवासी को इसका इल्म था। शहर के पश्चिमी छोर से रामशिला पूजन यात्रा का जुलूस निकल चुका था। दिन ढल रहा था। यह जुलूस मुस्लिम मुहल्ला तातारपुर होकर गुजरने वाला था। यहीं मुस्लिम हाई स्कूल है। यहीं अपराधी अंसारी अपने गिरोह के साथ मोर्चा संभाले हुए था। डीएम-एसपी गश्त कर रहे थे। तभी बम विस्फोट की आवाज सुनाई पड़ने लगी। जान बचा कर डीएम-एसपी भागे और फिर चादर तान कर सो गए। हमलोग स्टेशन पर खड़े थे। सबके मुँह से निकला दंगा शुरू हो गया।
अपराधी अंसारी गिरोह का एसपी केएस द्विवेदी पर हमला रामशिला यात्रा जुलूस पर मुसलमानों के हमले के रूप में प्रचारित हो गया और हिंसा और विद्वेष को पराकाष्ठा पर पहुँचाने के उद्देश्य से यह अफवाह संगठित ढंग से उड़ाई गई कि परबत्ती मुहल्ले के मुस्लिम लॉजों में रहनेवाले करीब पाँच हजार हिन्दू विद्यार्थियों को मुस्लिमों ने मार डाला। फिर क्या था, दंगा। हिंसा और नफरत की आग चरम पर पहुँच गई। प्रशासन इस अफवाह को रोकने में विफल रहा। पुलिस प्रशासन उदासीन बना रहा। जबकि सच्चाई यह थी तमाम हिन्दू विद्यार्थियों को मुस्लिमों लॉज के संवेदनशील मुस्लिम मालिकों ने सुरक्षित उनके घरों तक पहुँचवाया था। मगर इस सच से किसको मतलब था?प्रशासन सो रहा था। दंगाई जाग रहे थे। बेगुनाहों के घर उजड़ रहे थे। शहर से दंगे की आग देश में पहली बार गाँव-गाँव तक फैल चुकी थी। करीब सप्ताह भर बाद सेना बुलाई गई। मगर स्थिति काबू से बाहर थी। आज उन दिनों को याद करते हैं, कि दंगे के बाद किसको लाभ और किसको हानि हुई।यह वह दौर था जब कांग्रेस अंतर्कलह से टूटने के कगार पर थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बीच छत्तीस का आंकड़ा था। इसके अलावा तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष शिवचंद्र झा जो भागलपुर के ही थे, उनका संबंध भी तत्कालीन मुख्यमंत्री से मधुर नहीं था। आपसी राजनीतिक गुटबंदी और अंतर्कलह के बीच जब रामशिला पूजा की तैयारी की खबर तत्कालीन मुख्यमंत्री तक पहुंची तब विचार-विमर्श के बाद उन्होंने इसकी इजाजत इस हिदायत के साथ दी कि जुलूस में किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा और किसी प्रकार का नारा नहीं लगाया जाएगा। लेकिन स्थानीय राजनीति और आरएसएस के उन्मादी रवैये के कारण ऐसा न हो सका।
और फिर 24 अक्‍टूबर 1989  को भागलपुर के परवती इलाके से रामशिला पूजन का एक जुलूस तातरपुर मोहल्ले की ओर बढ़ा। यह जुलूस किसी तरह गुजर गया, लेकिन, तभी एक विशाल जुलूस नाथनगर की ओर से आ गया। जुलूस मुस्लिम मोहल्ले के बीचो-बीच चौराहे पर पहुंचा था कि तभी भीड़ में शामिल लोगों ने मुसलमानों के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। जब यह सब हो रहा था, तब भागलपुर के तत्कालीन एसपी केएस द्विवेदी और जिलाधिकारी अरुण झा वहां मौजूद थे। जुलूस के नारे बढ़ते गए,आवाज भी तेज होती गई। इसकी प्रतिक्रिया में दूसरी ओर से पत्थरबाजी शुरू हो गई। अभी डीएम कुछ समझने या संभालने की कोशिश करते कि तभी वहां बम का धमाका हो गया। हालांकि इससे किसी की जान हानि नहीं हुई, लेकिन पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। बताया जाता है कि पुलिस के द्वारा इसी फ़ायरिंग ने दंगे की शुरुआत कर दी। इसकी वजह यह है कि इसमें मारे गए दोनों लोग मुसलमान थे।उधर, शिलापूजन का जुलूस उन्मादी भीड़ में बदल गया। जंगल में आग की तरह अफवाहें फैलने लगीं कि संस्कृत विद्यालय में 40 हिंदू छात्रों को मुसलमानों ने मार दिया है। ऐसी ही अफ़वाह शहर के हर कोने से आने लगीं। इन अफ़वाहों का परिणाम यह हुआ कि समूचा भागलपुर दंगे की चपेट में आ गया। एक ऐसा दंगा जो आजाद भारत में चलने वाला सबसे बड़ा दंगा था।
मुर्दो का शहर भागलपुर इसके बाद भागलपुर मुर्दों के शहर में बदल गया। अकेले परवती में 40 मुसलमानों की हत्या कर दी गई। फिर आसानंदपुर में भी दंगा जोर पकड़ चुका था। इस दंगे की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि यह केवल शहर तक ही सीमित नहीं रहा। गांवों तक दंगे की आग में जलने लग गए थे। हालांकि उस दौरान भी हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल गढ़ने वाले लोग थे। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक भागलपुर के जमुना कोठी में हिन्दुओं ने करीब चालीस मुसलमानों को शरण दे रखी थी। लेकिन दंगाइयों ने जमुना कोठी पर हमला बोलकर 18 मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया। इनमें 11 मासूम बच्चे थे।      भागलपुर के स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चलता है कि कामेश्वर यादव, महादेव सिंह, सल्लन मियां और अंसारी जैसे लोग राजनीतिक पार्टियों के मोहरे थे और वे ही पूरे दंगे को आगे बढ़ा रहे थे। इसके लंबा खिंचने के पीछे इन्हीं अपराधियों-राजनेताओं का गठजोड़ था। इसके अलावा तत्कालीन एसपी के एस द्विवेदी की भूमिका भी संदिग्ध थी। बताया जाता है कि वे आरएसएस के एजेंट के रूप में काम कर थे और उनके इशारे पर पूरी भागलपुर पुलिस भी हिन्दू-मुसलमान में बंट चुकी थी। इस क्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने केएस द्विवेदी को हटाने का निर्देश दिया। इसका प्रतिरोध भागलपुर में पुलिस के जवानों ने इस कदर किया कि जब राजीव गांधी दंगे का जायजा लेने पहुंचे तब उन्हें भागलपुर शहर में घुसने तक नहीं दिया गया।
6 महीने 180 दिन और ….एक शहर एक जिला बहरहाल, दंगे के शांत होने में करीब छह महीने लगे और इस छह महीने में पूरा भागलपुर तबाह हो चुका था। इसके बाद जब 1990 में लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने अपने स्तर से पूरे मामले की जांच कराने का निर्देश दिया और पीड़ितों को मुआवजा दिया गया। लेकिन यह बेहद दिलचस्प रहा कि दंगों के लिए जिम्मेवार एसपी के एस द्विवेदी को लालू प्रसाद ने सजा देने की बजाय विभागीय प्रोन्नति दे दी। बाद में जब लालू प्रसाद का राज खत्म हुआ और नीतीश कुमार सत्तासीन हुए तब उन्होंने लालू प्रसाद को सत्ता से उखाड़ फ़ेंकने के लिए भाजपा के साथ मिलकर ब्रह्मास्त्र चलाया। अब इसके असर की बारी है। अनुमान लगाया जाना चाहिए कि भागलपुर दंगे के लिए कौन असल में जिम्मेवार था, रिपोर्ट के सार्वजनिक होने पर इसका खुलासा होगा। साथ ही इसका भी खुलासा होगा कि इसके पीछे की राजनीति क्या थी। वैसे सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अतीत के काले दाग से बचेगा कोई नहीं। न आरएसएस न भाजपा और न जदयू, कांग्रेस और राजद। सबकी सच्चाई सामने आएगी। जांच पर जांच लेकिन इंसाफ नही मिला अबतक….क्यो?

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