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सर्जिकल स्ट्राइक का सच – “इंडिया मोस्ट फियरलेस: ट्रू स्टोरिज ऑफ मॉडर्न मिलिट्री हिरोज” – अगुआई करने वाले मेजर ने कहा- सबसे मुश्किल था वापस लौटना

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पटना Live डेस्क। भारतीय सेना द्वारा पिछले साल सितंबर में पाकिस्तान की सीमा में घुसकर किए गए सर्जिकल स्ट्राइक की अगुवाई करने वाले मेजर ने कहा है कि यह ऑपरेशन बेहद कामयाब और योजना के मुताबिक था लेकिन कार्रवाई के बाद वापस लौटना सबसे मुश्किल था।मेजर के मुताबिक तब दुश्मन सेना की ओर से चलाई जा रही गोलियां कान के पास से सीटियां बजाती हुई निकल रही थीं। सर्जिकल स्ट्राइक के एक साल होने के मौके पर आई एक नई किताब ‘इंडिया मोस्ट फियरलेस: ट्रू स्टोरिज ऑफ मॉडर्न मिलिट्री हिरोज’ में सर्जिकल स्ट्राइक का नेतृत्व करने वाले ऑफिसर के हवाले से उस ऑपरेशन के बारे में कई जानकारियां साझा की गई हैं।

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक के एक वर्ष पूरा होने पर प्रकाशित किताब में सेना के मेजर ने उस महत्वपूर्ण और चौंका देने वाले मिशन से जुड़े अपने अनुभव को साझा किए हैं।इस किताब में उस ऑफिसर को मेजर माइक टैंगो का नाम दिया गया है।सेना ने सीमा पार स्थित आतंकियों के लॉन्च पैड्स को ध्वस्त करने के लिए पिछले साल 28-29 सितंबर को सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था।

रोमांचक और बेहद खतरनाक

सीमा पार स्थित आतंकियों के लॉन्चपैड्स को ध्वस्त करने के लिए भारतीय सेना ने पिछले साल 28-29 सितंबर को सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था।यह ऑपरेशन दुश्मन के घर में घुसकर उसको तबाह करने वाला था। यह कहानी जितनी रोमांचक है उतनी ही खतरनाक भी। एक गलती और एक पल में सबकुछ खत्म होने का ऐहसास का रोमांच अपने चरम पर था।।                                                सर्जिकल स्ट्राइक की अगुआई करने वाले मेजर के हवाले से इस ऑपरेशन के बारे में जो बातें सामने आईं हैं वह रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं।मेजर के मुताबिक हमला बेहद सटीक तरीके से और तेजी के साथ किया गया था, लेकिन अपने लक्ष्य को अंजाम देने के बाद वापस लौटना सबसे मुश्किल और जोखिम भरा था। दुश्मन सैनिकों की गोलियां कानों के पास से निकल रही थीं।

उड़ी हमले में नुकसान उठाने वाले यूनिट से चुने गए सैनिक

मेजर माइक टैंगो बताया कि सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक के लिए उड़ी हमले में नुकसान झेलने वाले दो यूनिटों के सैनिकों के इस्तेमाल का निर्णय किया। सेना ने ‘घटक टुकड़ी’ का गठन किया और उसमें उन दो यूनिटों के सैनिकों को शामिल किया गया, जिन्होंने अपने जवानों को गंवाया था। किताब में कहा गया है,रणनीतिक रूप से यह चालाकी से उठाया गया कदम था। अग्रिम भूमि की जानकारी उनसे बेहतर शायद ही किसी को थी, लेकिन कुछ और भी कारण थे।उसमें साथ ही कहा गया है, उनको मिशन में शामिल करने का मकसद उड़ी हमलों के दोषियों के खात्मे की शुरुआत भी था। मेजर टैंगो को मिशन की अगुआई के लिए चुना गया था।

मेजर माइक टैंगो ने चुनी अपनी टीम

किताब में कहा गया है, टीम लीडर के रूप में मेजर टैंगो ने सहायक भूमिका के लिए खुद से सभी अधिकारियों और कर्मियों का चयन किया। उन्हें इस बात की अच्छी तरीके से जानकारी थी कि 19 लोगों की जान बहुत हद तक उनके हाथों में थी। इन सबके बावजूद अधिकारियों और कर्मियों की सकुशल वापसी को लेकर मेजर टैंगो थोड़े चिंतित थे। किताब में उनको यह याद करते हुए कोट किया गया है,मुझे लगता था कि मैं जवानों को खो सकता हूँ।

4 लॉन्चिंग पैड किए ध्वस्त

मेजर ने कहा, ‘वास्तविक हमले से कमांडोज घबराए नहीं थे, लेकिन एलओसी पर चढ़ाई वाले रास्ते को पार करते हुए लौटना बहुत कठिन था। जिस ओर सैनिकों की पीठ थी वहां से पाकिस्तानी सैनिक लागतार गोलीबारी कर रहे थे। सैनिक उनके टारगेट पर थे।’ सर्जिकल स्ट्राइक के लिए आईएसआई द्वारा संचालित और पाकिस्तानी सेना से संरक्षित प्राप्त आंतकियों के 4 लॉन्चिंग पैड्स को चुना गया था।

सीमा पार थे सूत्र

किताब में बताया गया है कि मेजर के साथियों ने मास्क्ड कम्यूनिकेशन्ज के जरिए सीमा पार 4 लोगों से संपर्क साधा, जिसमें पीओके के 2 स्थानीय ग्रामीण और 2 उस इलाके में सक्रिय पाकिस्तानी नागरिक थे। दोनों गुप्तचर खूंखार आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से थे, जिन्हें कुछ साल पहले भारतीय एजेंसियों ने वापस भेज दिया था।                          किताब में बताया गया है कि चारों सूत्रों ने उनको सौंपे गए टारगेट के बारे में अलग-अलग जानकारी की पुष्टि की। इंटेलिजेंस के रूप में एलओसी के इस तरफ आगे और कुछ नहीं था।

मिशन को इस तरह दिया गया अंजाम

मिशन संक्षिप्त था। सैनिकों को बताया गया था कि वे अपने टारगेट पर पहुंचने के बाद सेटेलाइट डिवासेज से प्राप्त नवीनतम सूचनाओं को देखें और उसके बाद दुश्मनों का सफाया कर दें। इसके लिए हथियारों और उपकरण भी तय कर लिए गए थे।

मेजर के लिए 2 टारगेट चिन्हित किए गए थे। टैंगो की टीम पीओके में काफी अंदर गई थी और एक-दूसरे से करीब 500 मीटर की दूरी पर थी। किताब में यह भी बताया गया है कि एलओसी पार भेजने से पहले लॉन्चिंगपैड आतंकियों के लिए ट्रांजिट स्टेज होता है। दोनों लॉन्च पैड पाकिस्तानी सेना के पोस्ट के बेहद करीब थे। मेजर के मुताबिक गोलीबारी शुरू और खत्म होने में महज एक घंटे का समय लगा।आतंकियों को तेजी से मारने के बाद दोनों टीमें एकत्रित हुईं। मारे गए तमाम आतंकियों को मोटे तौर पर गिनने के बाद सैनिक वापस लौटे।किताब में बताया गया है कि चारों टारगेट मिला कर करीब 38-40 आतंकी और 2 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। 3 टीमों ने एकसाथ 4 लॉन्चिंग पैड्स को ध्वस्त किया।

रास्ता बदलकर वापस लौटे

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मेजर ने उस रास्ते से नहीं लौटने का फैसला किया जिस रास्ते से भारतीय सेना पाक सीमा में दाखिल हुई थी। किताब के मुताबिक इसके बावजूद लौटते हुए उनके पीछे लगातार गोलियां चल रही थीं। पूरी टीम को जमीन पर अपने पेट के बल लेटकर लौटना पड़ा। आखिरकार मेजर टैंगो की टीम सुबह होने से पहले सुबह 4.30 के करीब एलओसी पार करने में कामयाब हो गई।

14 सच्ची कहानियां

किताब को शिव अरूर और राहुल सिंह ने लिखा है जिसे पेंग्विन इंडिया ने प्रकाशित किया है। इसमें सर्जिकल स्ट्राइक की 14 सच्ची कहानियों को शामिल किया गया है, जो भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और पराक्रम के बारे में बताती हैं।

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