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वेंटीलेटर पर है महागठबंधन सरकार, क्या अब भी जरूरी है बाईपास सर्जरी ?

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अभय पांडेय, विशेष संवाददाता, पटना

पटना Live डेस्क। लगभग ढाई साल पहले बिहार में भाजपा के विरुद्ध कुछ ख़ास बिन्दुओं और शर्तों  पर समझौते के बाद राजनीति के दो धुरंधरों ने अलग-अलग विचारधारा के बावजूद जब हाथ मिलाया तो विरोधि दलों को पसीना आ गया।सरकार बनी समझौते पर अमलहुआ। एक को मिला फिर से ताज तो दुसरे को ठीक उसके निचे की कुर्सी और खोया हुआ राज।सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक ऐसी हवा चली कि तिनका-तिनका बिखरने लगा,समझौते की नीव कमजोर पड़ने लगी दरअसल ये समझौता अमूमन सियासत के दो विरोधी विचारधाराओं के बीच समय और परिस्थिजन्य मौक़ा परस्ती पर आधारित था।एक को अपना ताज बचाना था तो दुसरे को सियासत में वापसी करनी थी। जनाधार ने साथ दिया तो दोनों की मनसा भी पूर्ण हुई।

 

नीतीश को तीसरी बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ तो लालू को फिर से बिहार की सता में दमदार तरीके से लौटने का मौक़ा। कानूनन सजायाफ्ता लालू सीधे कोई रोल अदा नहीं कर सकते थे,लिहाजा उन्होंने अपने राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए अपने उत्तराधिकारियों तेज प्रताप और तेजस्वी को मैदान में उतारा.अब मौजूदा सरकार में लालू के दोनो बेटे कैबिनेट मंत्री हैं. बड़ा बेटा सूबे का स्वास्थ्यमंत्री है जबकि छोटा बेटा उप मुख्यमंत्री। चुकी ये सियासत है इसकी तासीर कब गर्म और कब ठंडी पड़ जाए कोई नहीं जानता फिर भी कभी गर्म कभी शीतल पड़ते राजनैतिक तेवरों के बीच साझा सरकार लगभग ठीक-ठाक चलती रही,लेकिन हार से बौखलाई भाजपा ने हार नहीं मानी और लग गया जड़ें खोदने।

अब लगभग ढाई वर्ष बाद खुदाई से जो कुछ भी सामने आया उसने साझा सरकार की बुनियाद को हीं झकझोर दिया।भाजपा ने सबसे पहले लालू के छोटे बेटे स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप को निशाना बनाया। तेज प्रताप पर 90 लाख रुपये के मिट्टी घोटाले का आरोप लगा कर सरकार को घेरना चाहा, लेकिन दाल नहीं गली। फिर तो जैसे भाजपा ने मोर्चा हीं खोल दिया। लगभग हर दिन लालू के राजनीतिक उतराधिकारियों को केंद्र में रख कर भाजपा नितीश सरकार पर निशाना साधने लगी, लेकिन हर बार निशाना चुकता गया।

आखिरकार वो दिन भी आया जब भाजपा सफलता की दहलीज तक पहुँच गई।कुछ दिनों पहले तेजस्वी का नाम लारा मामले से जुड़ गया और सीबीआई ने उनके ऊपर एफ़आईआर  दर्ज कर लिया। उस एफआईआर  के बाद सियासत का एक ऐसा खेल शुरू हुआ जिसने प्रदेश की राजनीति को तो स्तब्ध कर हीं दिया पुरे देश की नजरें अपनी तरफ खीच ली,क्योंकि इस खेल में एक छत के नीचे रह रहे राजनीति के दो धुरंधर के बीच था,जिसमे एक तरफ अपने राजनीतिक मूल्यों और सिद्धांत पर अडिग विकास की प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो दूसरी ओर अपने जिद पर अड़े परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे सजायाफ्ता लालू।तेजस्वी पर एफआईआर के बाद भाजपा लगातार नीतीश की नियत पर उंगली उठाने लगी, लिहाजा नीतीश की छवि को बनाए रखने के लिए जदयू में तेजस्वी के स्तीफे मांग तेज हो गई ,लेकिन इससे विपरीत अपनी जिद पर अड़े लालू इससे साफ़ इनकार करते रहे हैं। लालू के मुताबिक़ जदयू और राजद का गठबंधन कोई गुड्डे-गुड़ियों का विवाह नहीं जो खेल ख़त्म होते हीं अलग हो जाएँ, इसके पीछे कुछ शर्तें भी थी जिस पर विचार करते हुए अमल करना दोनों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है।हालंकि इस पुरे मुद्दे पर नीतीश खुद तो कुछ भी बोलने से परहेज करते रहे, लेकिन उनके प्रवक्ताओं के बयान ये साफ़ होता रहा कि नीतीश समझौते पर विचार के मूड में नहीं। दोनों दलों के बीच मनमुटाव को लेकर कभी नीतीश के सहयोगी लालू पर जुबानी तीर बरसाते रहे तो कभी लालू के झंडाबरदार जुबानी गोले दागते रहे।
दोनों के बीच तनाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सीबीआई की एफआईआर के बाद नीतीश और तेजस्वी लगभग 11 दिनों तक एक दुसरे से नहीं मिले। जिस सरकारी कार्यक्रम में नीतीश ने शिरकत कि तेजस्वी ने वहाँ जाना तक मुनासिब नहीं समझा। यहाँ तक की कैबिनेट की एक बैठक के बाद सामने पड़ने के बावजूद भी दोनों ने कोई बात नहीं की। ऐसे में पलीते में आग लगा चुकी भाजपा उस बम के फटने का इन्तेजार करती रही,जिससे लालू-नीतीश के समझौते पर चल रही साझा सरकार के चिथड़े उड़ने वाले थे। आलम ये रहा कि पिछले कुछ दिनों से लोग जागते-सोते खबरों की भीड़ में एक हीं खबर तलाशते रहे कि दोनों की जंग में क्या हुआ और आगे क्या होने वाला है।राजनीतिक पंडित अपने हिसाब से तर्क गढ़ने में मशगुल रहे,तो मीडिया अपने हिसाब से आकलन करती रही। पर कई लोगों ने तो यहाँ तक मान लिया कि बिहार सरकार लगभग अंतिम साँसे गिन रही है जिसकी डोर कभी भी टूट सकती है। इधर मौके की ताक में बैठा बीजेपी भी मन हीं मन खुश होता रहा क्योकि इस झगड़े का असर अगर नीतीश और लालू दोनों के राजनीतिक भविष्य पर पड़ रहा था तो फायदा कहीं नहीं कहीं भाजापा के हक़ में हीं हक़ में होता।लेकिन तमाम अटकलों के बाद अब लगभग सब कुछ साफ़ हो चला है। सरकार के ऊपापोह पर तत्काल विराम लग चुका है। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से राजद और जदयू में जो दूरियाँ बढ़ी थी वो अब कम हो गई हैं।।                                                कांग्रेस की पहल के बाद मंगलवार को नीतीश और तेजस्वी एक दुसरे की आमने-सामने आये। दोनों के बीच बंद कमरे में लगभग एक घंटे तक बातचित चलती रही जिसकी रणनीति कांग्रेस के कुछ शीर्ष नेताओं ने तय कि थी। हालांकि नीतीश से मुलाक़ात के मुद्दे पर तेजस्वी ने पहले तो कांग्रेस को चलता कर दिया, लेकिन फिर शीर्ष नेताओं ने लालू यादव से बात की और किसी तरह से तेजस्वी को तैयार कर पाए। फिर भी अभी ये बात स्पष्ट नहीं है कि दोनों के बीच किस बिंदु पर और क्या बात हुई।लेकिन ताजा हालात और सूत्रों के मुताबिक मुलाक़ात सुलह की एक प्रक्रिया के तहत थी जिसमे तेजस्वी ने नीतीश के सामने अपना पक्ष रखते हुए खुद पर लगे आरोपों का खंडन किया।


चूकि ये राजनीति है कई बार इसकी दिशा हमारे सोच के विपरीत होती है लिहाजा तेजस्वी के मामले में कुछ दुविधाएं अभी भी बरकरार हैं।नीतीश तेज की मुलाक़ात के बाद जदयू प्रवक्ता अजय आलोक ने मीडिया के सवाल पर बताया की गठबंधन में सब कुछ सही है लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जदयू स्टैंड पर कायम है जिसका जवाब राजद और तेजस्वी दोनों को देना होगा। वहीं जदयू प्रवक्ता संजय सिंह के मुताबिक़ नीतीश को राजनीति से संन्यास मंजूर है लेकिन भ्रष्टाचार से समझौता नहीं। इधर नीतीश और तेजस्वी की मुलाक़ात से अपनी कोशिशों पर पानी फिरता देख भाजपा ने नीतीश को आड़े हाथो ले लिया है। क्योंकि इन दोनों के झगड़े और सम्बन्ध विक्षेद में सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हीं था।क्योंकि नीतीश अगर जबरन तेजस्वी को बर्खास्त कर दे रहे हैं तो ये मामला राजद के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन जाता जिसे राजद कभी बर्दाश्त नहीं करेगा और जदयू के साथ उसका सम्बन्ध विच्छेद हो जाता। जाहिर है ऐसे में सरकार अल्पमत में चली जाती। जिसके बाद दोनों को बगले झाकने पड़ते। नीतीश अगर खुद भी स्तीफा देते तो शायद सरकार गिर जाती लिहाजा फायदा यहाँ भी भाजपा को हीं था, क्योंकि सरकार का जाना मतलब राष्ट्रपति शासन का लगना और राष्ट्रपति शासन का मतलब सत्ता का अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र के हांथो में चले जाना। फिर एक बार ये सत्ता हांथो से गई तो मौजूदा समीकरण और हालात के मद्देनजर ये कहा जा सकता है की दोनों का अकेले सत्ता में लौट पाना लगभग नामुमकिन जैसा होगा।जाहिर है ये बात भाजपा के गले नहीं उतर रही होगी और वो अगले कदम की तरफ बढ़ चुका होगा। फिलहाल तो इस असहज स्थिति से उबरने के लिए भाजपा ताने मारकर ही काम चला रही है।
सुशिल मोदी ने ट्वीटर के जरिये तंज कसते हुए लिखा है की “उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने करोड़ों रुपये की बेनामी सम्पति मामले में सीबीआई छापे और एफआईआर दर्ज होने के 11 दिन बाद सीएम  से मुलाक़ात की।जिनसे 10 घंटे की पूछताछ में जांच एजेंसी संतुष्ट नहीं हुई,उन्हें क्या नीतीश कुमार से 35 मिनट में क्लीन चिट मिल गई ?” बहरहाल बिहार में सियासत को लेकर अब भी थोड़ी-बहुत कश्मकश जरूर है। क्योंकि विपक्ष हाथ में आये इस मौके को किसी भी किम्मत बाहर नहीं जाने देगा,लिहाजा वो इस मुद्दे के जरिये नीतीश को घेरने की हर संभव कोशिश करेगा और नीतीश उस छवि को कतई धूमिल नहीं होने देना चाहेंगे जिसे लेकर उनका नाम सुशासन बाबू पडा है।
नीतीश-तेजस्वी मुलाक़ात के बाद विपक्षी भाजपा का नितीश की नियत ताना और जदयू नेता संजय सिंह या अजय आलोक के बयान पर गौर करें तो अब भी कई सवाल जस क तस हैं जो लगभल इसी बात की ओर इशारा कर रहे हैं की बातचित अपनी जगह है भ्रष्टाचार का मामला अपनी जगह। कुल मिलाकर हालात अब भी बहुत अच्छे नहीं है। किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है। लिहाजा बिहार सरकार अब भी वेंटीलेटर पर है जिसे कभी भी बाईपास सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।

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