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बीजेेपी ने नहीं, जेडीयू नेे ही साल 2008 में ठोकी थी लालू की बर्बादी की कील!

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राजनीति की कहानी बड़ी रोचक होती है. यहां विचारधारा कोई मायने नहीं रखती. मायने रखती है तो बस सत्ता. बस किसी तरह से सत्ता हासिल करें साथ ही राजनीतिक गठजोड़ ऐसा बनाएं जिससे सालों तक कुर्सी की तरफ कोई उंगली उठाने वाला न हो. मतलब साफ है सत्ता का केंद्र मजबूत करने के लिए जातिगत गठबंधन बनाओ. समीकरण ऐसा जिससे कि सालों साल तक कोई प्रतिस्पर्धी न हो. नीतीश कुमार के मामले में भी शायद ऐसा ही है. बीजेपी के साथ उऩ्होंने बिना किसी झमेले के सालों तक सत्ता चलायी. लेकिन साल 2014 में नीतीश कुमार की विचारधारा उफान मारने लगी. जिस बीजेपी के साथ उन्होंने सत्रह साल तक गठबंधन किया वो बीजेपी अचानक साल 2014 में घोर सांप्रदायिक नजर आने लगी. राजनीत के माहिर खिलाड़ी नीतीश ने उस समय लालू का साथ दिया इसके पीछे शायद ये तर्क था कि जातिगत आधार पर बना ये गठबंधन बीजेपी से ज्यादा मजबूत होगा और उऩ्हें इस गठबंधन में कोई चैलेंज करने वाला नहीं होगा. सो उऩ्होंने जातियों को जोड़कर एक मजबूत गठबंधन बनाया जो फिलहाल बिहार की सत्ता में आसीन है. लेकिन कहते हैं कि राजनीत रंग बदलती है वो किस समय किसके साथ जुड़ेगी और टूटेगी इसका अंदाजा पार्टियां भी नहीं लगा सकती हैं. सालों तक सत्ता से बेदखल लालू भी नीतीश से गठबंधन को आतुर थे और इसी इंतजार में थे कि कब नीतीश का बीजेपी से साथ छूटे और वो उनके पाले में आ जाएं. हुआ भी वही, नीतीश ने बीजेपी का साथ छोड़ा और लालू के साथ गठबंधन किया. राजनीतिक रणनीतिकार हतप्रभ थे कि कभी धुर विरोधी और लालू विरोध के नाम पर सत्ता पाने वाले नीतीश आज उनके इतने करीब कैसे आ गए?

लेकिन करीब दो साल पूरा करने जा रहा ये गठबंधन आज मझधार में है. प्रदेश बीजेपी के नेता सुशील मोदी ने लालू और उनके परिवार पर बेनामी संपत्ति अर्जित करने के कई बड़े आरोप लगाए हैं. अब लालू प्रसाद पर धोखाधड़ी और साजिश का आरोप लगा सीबीआई ने उनके आवास सहित कुल बारह ठिकानों पर छापेमारी की है. इस मामले में राबड़ी और तेजस्वी यादव पर एफआईआर भी दर्ज हुए हैं. चूंकि बीजेपी केंद्र में है सो लालू परिवार का सारा निशाना पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर है. लालू दंभ भर रहे हैं कि चाहे वो मिट जाएं लेकिन बीजेपी को मिटा कर दम लेंगे. उऩका कहना भी लाजिमी है, कारण है कि उऩका राजनीतिक आस्तित्व दांव पर लगा है.

जेडीयू ने ही उजागर किए था लालू के काले कारनामे

लेकिन लालू के काले कारनामों को उजागर करने में अगर आप बीजेपी का हाथ मान रहें हैं तो आप गलत हैं. दरअसल लालू के कारनामों को सबसे पहले उजागर करने वालों में उनके आज के सहयोगी जेडीयू के कुछ नेता ही शामिल हैं. जिन्होंने दस्तावेजों के साथ साल 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लालू को मंत्रिमंडल से बाहर कर उऩके खिलाफ जांच करने की मांग की थी. दरअसल जब जेडीयू बीजेपी के साथ सत्ता में थी तो उसी समय तत्कालीन राज्य सरकार के मंत्री ललन सिंह और शिवानंद तिवारी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लालू के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे और छह सौ पन्नों का दस्तावेज मीडिया के सामने जारी किया था. जिसमें उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लालू प्रसाद के खिलाफ जांच कराने की मांग की थी. जरा उस समय के जेडीयू नेता शिवानंद तिवारी के बयानों पर गौर कीजिए. शिकायत जारी करते हुए उन्होंने कहा था कि अगर लालू का बस चले तो वो देश को बेच लें. लेकिन राजनीति का चरित्र देखिए आज वही शिवानंद तिवारी लालू के खासमखास बने हैं. सीबीआई छापेमारी करती है तो वो लालू का हाल चाल लेने सबसे पहले लालू के आवास पर पहुंचते हैं. दरअसल लालू आज जिस आग की लपटों से घिरे हैं उस आग की व्यवस्था तो वर्तमान सरकार की सहयोगी जेडीयू ने साल 2008 में ही लालू के खिलाफ कर दी थी. उस समय भी बिहार के सीएम नीतीश कुमार ही थे. फर्क बस इतना सा था कि तभी वो बीजेपी के साथ थे और आज वो आरजेडी के साथ मिलकर सत्ता का सुख भोग रहे हैं. मतलब तभी के विरोधी आज के शागीर्द हैं. लेकिन जेडीयू ने लालू के खिलाफ जो दस्तावेज जारी किया उसी से आज लालू का परिवार बेहाल हो रहा है. फर्क बस इतना है कि तभी मनमोहन सिंह की सरकार के सहयोगी रहे लालू को कोई उंगली दिखाने वाला नहीं था, लेकिन आज परिस्थितियां बदली हुई हैं. न मनमोहन हैं और न ही उनकी सत्ता.

12 अगस्त 2008 को मुहैया कराये थे दस्तावेज

घटना मंगलवार 12 अगस्त साल 2008 की है जब जेडीयू के तत्कालीन बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और उस समय जेडीयू के नेता शिवानंद तिवारी ने चीख-चीख कर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लालू के काले कारनामे को उजागर किया था. बड़ी ही सफाई से शिवानंद तिवारी ने लालू के छह सौ पन्नों का काला चिट्ठा मिडिया के सामने जारी किया था और केंद्र सरकार से जांच की मांग की थी. दोनों ने उस समय लालू प्रसाद को मंत्रिमंडल से बाहर कर सरकार से उच्चस्तरीय जांच की मांग की थी. तब राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने दस्तावेजों को सार्वजनिक करते हुए कहा था कि, “पिछले चार सालों में रेलवे में नौकरी देने के नाम पर राजद  प्रमुख लालू यादव ने 100 एकड़ जमीन अपने नाम करवायी है और वो जमींदार बन गये हैं”। पत्रकारों को दिये गये दस्तावेजों में कई जमीनों के डीड भी शामिल थे. मीडिया से बातचीत के दौरान ललन सिंह ने लालू और उऩके परिवार पर गंभीर आरोप लगाए थे और उन्हें आदतन अपराधी कहा था. ललन सिंह ने कहा था कि लालू ने चारा घोटाले से कोई सबक नही सीखा है. रेलवे का कायाकल्प करने के बजाय वो खुद जमींदार बन गये हैं.

इन नेताओं ने जो दस्तावेज जारी किया था उनमें साल 2004 से 2008 तक  के जमीन रजिस्ट्री के कागजात थे. ललन सिंह ने कहा था कि 2004 में रेलमंत्री बनने के बाद से लालू ने संपत्ति बनाने का नया तरीका ईजाद किया है.  प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जेडीयू नेताओं ने कहा था कि उन्हें लालू से किसी तरह के नैतिकता की उम्मीद नहीं है, लेकिन देश के नैतिक अभिभावक होने के नाते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जांच करवा कर यह तय करना चाहिए कि लालू जैसे लोग उनकी कैबिनेट में रहना चाहिए या नहीं. ललन सिंह ने तब केन्द्र सरकार को 15 दिनों की मोहलत दी थी.

 

राजनीति में सबकुछ माफ

लेकिन ये राजनीति है कब कौन किसको भा जाए कहना मुश्किल है. कल के राजनीतिक दुश्मन आज मिलकर बिहार की सत्ता पर काबिज हैं. अगर गलत हो भी रहा है तो खुलकर कोई बोलने वाला नहीं है. शायद आज जेडीयू ललन सिंह और शिवानंद तिवारी की प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की बात से भी मुकर जाए. लेकिन पब्लिक डोमेन में आ गयीं बातें भला कहां छुपतीं हैं. लालू और नीतीश दोनों ये समझ रहे हैं कि अगर उनका साथ चलता रहा तो उन्हें कम से कम बिहार से उखाड़ने वाला तो फिलहाल कोई नहीं है. ये दोनों ये भी जानते हैं कि इस राज्य में चुनाव विकास के नाम पर नहीं लड़े जाते बल्कि जाति के नाम पर ही चुनाव लड़े जाते हैं और जीते जाते हैं.

 

 

 

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