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विशेष खबर-पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह का खूनी सियासी सफरनामा- काका के कत्ल से शुरू अशोक के अंत पर आकर खत्म

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पटना Live डेस्क। बिहार के बाहुबली सियासतदानों में शुमार आरजेडी नेता एवं पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को हजारीबाग कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। उनके अलावा उनके भाई दीनानाथ सिंह और पूर्व मुखिया रितेश सिंह को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। आखिरकार 22 साल के बाद ही सही पर विधायक अशोक सिंह हत्याकांड में सजा का एलान हो ही गया। हजारीबाग कोर्ट के एडीजे 9 सुरेंद्र शर्मा की अदालत ने कोर्ट ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सजा का ऐलान किया। राजद के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को उम्रकैद सजा तजवीज़ की। साथ ही तीनों को 40 हजार का अर्थदंड भी लगाया गया है।

अशोक सिंह की हत्या 3 जुलाई 1995 को पटना में उनके सरकारी आवास 5 स्टैंड रोड में बम मार कर कर दी गई। उस समय वो आरजेडी के मशरख विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे।हत्या का मुख्य आरोपी प्रभुनाथ सिंह को बनाया गया।प्रभुनाथ सिंह को हराकर ही अशोक सिंह मशरख से विधायक बने थे। अशोक सिंह मामले में गिरफ्तार प्रभुनाथ सिंह के छपरा जेल में रहते कानून व्यवस्था बिगड़ रही थी, जिसके चलते उनको हजारीबाग जेल शिफ्ट किया गया। उस समय झारखंड नहीं बना था। प्रभुनाथ सिंह के आवेदन पर ही हजारीबाग में इस केस का ट्रायल चला और 22 साल के बाद बृहस्पतिवार को अदालत ने फैसला सुनाया।

प्रभुनाथ सिंह को बिहार की राजनीति में बाहुबली राजनेता के रूप में जाना जाता है। वह जेडीयू के टिकट से महाराजगंज से सांसद रह चुके हैं। प्रभुनाथ सिंह की बिहार की राजनीति में दबंग छवि है, जिसके चलते राजनीतिक दल उनको ज्यादा तवज्जो देते हैं। वह कई अधिकारियों को धमाके समेत कई विवादों में अक्सर रहे हैं।

तात्कालिक मशरख विधायक काका की हत्या के बाद :- अपराध की धाराएं बढ़ी, मुकदमो की संख्या और प्रभु का सियासी उरूज़ भी..

अशोक सिंह हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह का सियासी सफर या कहे की राजनैतिक करियर 1985 से शुरू हुआ था।विधायक बनने से पहले वह मशरक के तत्कालीन विधायक रामदेव सिंह काका की निर्मम हत्या के आरोप में नामित हुए । दिन दहाड़े हुए काका की हत्या का आरोप प्रभुनाथ सिंह पर भी लगा। हालांकि बाद में कोर्ट से वे बाइज्जत बरी हो गए थे, लेकिन उनके बड़े भाई दीना सिंह को सजा हुई।
तत्कालिक विधायक रामदेव सिंह काका  की हत्या के बाद 1980 में विधानसभा चुनाव हुआ था। इस उपचुनाव में काका के पुत्र डा.हरेंद्र किशोर सिंह चुने गए। इसके बाद 1985 में चुनाव हुआ जिसमें प्रभुनाथ सिंह निर्दलीय प्रत्याशी बने। प्रभुनाथ सिंह ने स्व. रामदेव सिंह उर्फ काका के पुत्र व कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र किशोर सिंह को हराकर मशरक सीट पर कब्जा जमाया। वर्ष 1990 में प्रभुनाथ सिंह जनता दल के टिकट पर दोबारा चुनाव जीत गए। यही वो वक़्क्त था जब प्रभुनाथ ने विधानसभा की दहलीज लांघने की बजाय संसद के दरवाजे को खटखटाने की पहली बार कोशिश की लेकिन उस दौर में उमाशंकर सिंह ने उनका रास्ता रोक दिया और अरमानों पर पानी फेर दिया।1995 के विधान सभा चुनाव में जनता दल का टिकट अशोक सिंह को मिल गया और प्रभुनाथ सिंह ने तब आनंद मोहन सिंह की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपा) से चुनाव लड़े। इसमें वह अशोक सिंह से चुनाव हार गए।


विधानसभा चुनाव हुए अभी 90 दिन भी नहीं हुए थे कि 3 जुलाई 1995 को शाम 7.20 बजे पटना के स्ट्रैंड रोड स्थित बंगलाे में अशोक सिंह की बम मारकर हत्या कर दी गई। हत्या में प्रभुनाथ सिंह, उनके भाई दीनानाथ सिंह तथा मशरक के रितेश सिंह को नामजद अभियुक्त बनाया गया। अशोक सिंह की हत्या के बाद जब 1995 में उपचुनाव हुआ। इसमें अशोक सिंह के भाई तारकेश्वर सिंह चुनाव जीते।तब से प्रभुनाथ सिंह विधानसभा का चुनाव लड़ना ही बंद कर दिया।

1998 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो प्रभुनाथ सिंह समता पार्टी के टिकट पर महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े। कांग्रेस के महाचंद्र प्रसाद सिंह को हराकर उन्होंने सीट पर कब्जा जमाया। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति में बढ़ते गए।

फिर 1999 में जदयू के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े और दोबारा महाराजगंज से सांसद बने। 2004 में जदयू के टिकट पर फिर सांसद चुने गए। नवंबर 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तब प्रभुनाथ सिंह जदयू संसदीय दल के नेता चुने गए।इस दरम्यान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर तीखे हमलों के कारण चर्चा में रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव में राजद के उमाशंकर सिंह ने इन्हें हरा दिया। तब तक नीतीश कुमार से दूरियां बढऩे लगीं। लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने जदयू को छोड़ दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह,अखिलेश सिंह और राजीव रंजन सिंह के साथ मिलकर उन्होंने पटना के गांधी मैदान में किसान महापंचायत की। 2012 में महाराजगंज सांसद उमाशंकर सिंह का निधन हो गया। नीतीश से नाराज चल रहे प्रभुनाथ राजद में चले गए। उपचुनाव हुआ जिसमें राजद प्रत्याशी प्रभुनाथ सिंह ने जदयू के प्रत्याशी पीके शाही को हराकर सीट पर कब्जा जमा लिया। लेकिन, 2014 में लोकसभा का चुनाव वह भाजपा प्रत्याशी जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने हार गए।
प्रभुनाथ सिंह अपनी दबंग हैसियत के चलते ही छोटे भाई केदारनाथ सिंह को मशरक व बनियापुर से तीन बार विजयी बनाने में सफल रहे। छपरा विधानसभा सीट से 2014 में हुए उपचुनाव में वह पुत्र रणधीर कुमार सिंह को भी चुनाव जिताने में सफल रहे। हालांकि 2015 के विधानसभा चुनाव में रणधीर कुमार सिंह हार गया। वही अब सज़ावार हो चुके प्रभुनाथ सिंह सक्रिय राजनीति से न केवल महरूम हो गए है बल्कि सक्रिय राजनीति में सिर्फ अपने मोहरों के जरिये करतब दिखाने को मजबूर है।

 

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