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खुलासा – सफेद कोट का काला साम्राज्य,हाईकोर्ट का आदेश भी नही रखता माने डीसीआइ के अध्यक्ष डॉक्टर पर

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पटना Live डेस्क। अमूमन डाक्टरों को हमारा समाज बेहद शालीन और सभ्यता का उदाहरण मानता है। लेकिन सफेद लबादे में ये भी तो इंसान ही है। जिनमे सभी मानवीय गुण भी है। आप सोच रहे होंगे आख़िर हम ऐसा क्यों कह रहे है ? हमारे ऐसा कहने का हमारे पास पुख्ता आधार भी है। जी हां हम बात कर रहे एक डॉक्टर साहब की जो वर्त्तमान में जबरिया डीसीआइ यानी डेंटल कॉउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बने बैठे है। जनाब इतने तिकड़मी और दबंग है कि इनके ऊपर माननीय हाई कोर्ट का निर्णय भी लागू नही होता है।आप भी सोच रहे होंगे आख़िर वो कौन से डॉक्टर है जो हाई कोर्ट के आदेश को भी धत्ता बात कर आराम से अपनी कारगुजारियों को अंजाम दे रहे है।


डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद पर जबरिया काबिज इस उजले कोट वाले शख्स का नाम है – डॉ दिब्यऐन्दु मजूमदार। अब आप को थोड़ा इन डॉक्टर साहब की कारगुजारियों से अवगत करा दे। डॉ मजूमदार पश्चिम बंगाल के सरकारी डॉक्टर के ओहदे पर तैनात है। पहली बार ये जनाब वेस्ट बंगाल से डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया में  प्रतिनिधि बनकर शामिल हुए। फिर इनके तिकडमी दिमाग ने एक चाल चली और झारखंड के पलामू स्थित नीलाम्बर पिरताम्बर विश्विद्यालय पलामू से खुद को प्रतिनिधि घोषित कर ये डीसीआई पर बतौर अध्यक्ष काबिज हो गए।


अब जरा नीलाम्बर पीताम्बर का सच जान लीजिए इस युनिवेर्सिटी मे डेंटल विभाग ही नही है जिसका ये खुद को फैकल्टी बताते है। अब जरा सोचिए जिस नीलाम्बर पीताम्बर के पास डेंटल फैकल्टी ही नही है। उससे ये साहब डीसीआई के प्रतिनिधि कैसे बन गए? ये एक बड़ा सवाल है? इसी की बिना पर डॉ मजूमदार डीसीआई के अध्यक्ष बन बैठे। अब जरा एक और खुलासा पढिये।
डॉ मजूमदार पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारी है। यानी एक सरकारी सेवक है। लेकिन अपने शातिरपने को सही साबित करने खातिर इस डॉक्टर द्वारा नीलाम्बर पीताम्बर में ऑनररी फ़ैक्टली का तथाकथित रूप से मानद पद स्वीकार कर लिया गया। जो सरकारी सेवा अधिनियम का खुला उल्लघन है।

खैर इस तिकडमी डॉक्टर का बतौर अध्यक्ष डिसीआई बनाने की जो नींव है वही फ़र्ज़ी है।यानी जिस नीलाम्बर और पीताम्बर के जरिये डीसीएनएस के मेम्बर बने फिर अध्यक्ष पद तक पहुचे वही जब गलत है तो इनका अध्यक्ष बनना ही गलत साबित होता है। उसके बाबत कोर्ट ने भी डिसिजन देते हुए अपना आदेश जारी करते हुए अध्यक्ष पद से तत्काल प्रभाव से छोड़ने को बोला है। जिस बिना पर ये अध्यक्ष बने है वही गलत है तो अध्यक्ष कैसे रह सकते है? यह एक बड़ा सवाल है?
डॉ मजूमदार डीसीआई के अपने अध्यक्ष पद पर जबरिया मौजूद है ताकि इनके काले करतूतों का खुलासा न हो सके। इसी प्रक्रिया में इस शख्स ने यूपी के एक कॉलेज तीर्थंकर से खुद को प्रतिनिधि बनवाने का कुचक्र भी चला है। तमाम साज़िशों तिकड़मों का लब्बोलुआब यही है कि डॉ मजूमदार डीसीआई के अध्यक्ष पद को कब्जाए रखे ताकि इनके घपलों घोटालों और काले कारनामो पर से पर्दा न उठ सके।

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