बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

बड़ी खबर – राजद सुप्रीमो लालु यादव का जन्मदिन दियारा वासियों के लिए अभिशाप न बन जाये ? विरोध में लहराई मुट्ठियां आत्मदाह की धमकी

511

# 11 जून को उद्घाटन के पूर्व ही चर्चा में आया छपरा-आरा पुल

# दियारा के लोगों ने लगाया बगैर भौगोलिक स्थिति जाने निर्माण का आरोप

# छपरा-आरा पुल को लोककवि भिखारी ठाकुर के नाम पर करने की उठ रही है मांग

सत्येंद्र नारायण सिंह,वरिष्ठ संवाददाता,डोरीगंज

पटना Live डेस्क। राजद सुप्रीमो लालु यादव की सियासी कर्मभूमि सारण जिले के इतिहास में 11 जून 2017 स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। बहुप्रतीक्षित छपरा-आरा पुल का उद्घाटन विकास की नई परिभाषा गढ़ेगा साथ ही छपरा से आरा की दूरी महज आधे घंटे में तय की जा सकेगी। वहीं सुबे के दो बेहद गौरवशाली व  ऐतिहासिक जिलों का परस्पर सम्बन्ध और प्रगाढ़ होगा। हालांकि उद्घाटन के पूर्व ही यह पुल कतिपय कारणों से चर्चा के केंद्रबिंदु के तौर पर चर्चित होता दिख रहा है। एक तरफ सूबे के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी इस पुल को जनता को समर्पित करने के बजाय अपने पिता व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के जन्मदिन का खास तोहफा मानकर इसे उन्हें 11 जून को उपहार स्वरूप भेंट करने की घोषण कर खासे उत्साहित है। वहीं दूसरी तरफ विपक्ष खासकर भाजपा इसे मुद्दा बनाकर पुल का सारा क्रेडिट पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन केंद्र सरकार को दे रहा है। वैसे राजनीति के इस शह-मात और क्रेडिट लेने की होड़ की कवायद में सबसे ज्यादा नुकसान पूल के आसपास दियारा क्षेत्र में रहने वाले एक बड़ी आबादी को उठाना पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि बाढ़ के समय मे नाव के सहारे दियरा क्षेत्र की लड़कियां आती थी चिरांद हाई स्कूल में 10 वी की पढ़ाई करने।

छपरा-आरा पुल भले ही दोनों जिलो के तमाम लोगों के राह को सुगम बनायेगा पर जिस सरयू नदी पर यह पुल बना है उसके तटीय क्षेत्र में बसे गांव खासकर भोजपुरी भाषा के ख्यात लोक कवि भिखारी ठाकुर का पैतृक गांव कुतबपुर दियारा को पुल निर्माण के बाद भी कोई खास राहत मिलता नही प्रतीत हो रहा है। यह सेतु दियारा क्षेत्र में बसे लगभग सत्तर हजार लोगों के लिए कोई विशेष फायदा लेकर नही आया है। बल्कि जिसे बिहार सरकार दो जिलों खातिर वरदान और न जाने क्या-क्या संज्ञा दे रही है। वही पुल वर्त्तमान और निकट भविष्य में दियारा के लोगों के लिए अभिशाप भी बन सकता है।इस बात से चिंतित और परेशान दियारे के लोगो ने संघर्ष का मार्ग अपना लिया हैं।

पुल में उद्घाटन के पूर्व कोटवा दियारा संघर्ष समिति ने आंदोलन शुरू कर दिया है। तय तारीख यानी 11 जून को उद्घाटन के तीन दिन पहले गुरुवार को दियारा क्षेत्र के सैकड़ो ग्रामीणों ने पुल पर धरना दिया।इन लोगों का कहना है कि यह पुल बिना इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को समझे ही बनाया गया है। जिससे बाढ़ के दौरान दियारा में रहने वाले लोगों को और ज्यादा नुकसान होने की संभावना है। ग्रामीणों की मांग है की है गाइड बांध-1 की जगह 20 और 21 का प्रयोग किया जाना चाहिए। ऐसा नही करने से ग्रामीणों को बाढ़ के दौरान काफी ज्यादा खामिआजा भुगतना पड़ सकता। वहीं कुतुबपुर दियरा और आसपास के गांवों में पुल पर चढ़ने के लिए एप्रोच रोड भी नही बनाया गया है। जिस कारण गांव के लोगों को सीधे-सीधे बरसात और बाढ़ के दौरान इस पुल का उपयोग कर पाना अत्यंत कठिनाई भरा होगा। साथ ही आमदिनों में भी कभी लंबी दूरी तय कर पुल पर पहुचने की कवायद करनी पड़ेगी।
कोटवा दियारा संघर्ष समिति के लोगों की एक और मांग भी है जो जायज भी लगती है। यहां के ग्रामीणों का कहना है कि यह पुल ख्यातिनाम लोककवि भिखारी ठाकुर के नाम पर होना चाहिए क्योंकि भिखारी ठाकुर के वजह से ही कहीं न कहीं इस दियारा का वजूद आज भी बचा हुआ है। अन्यथा यहां सिर्फ सियासी जुलेबाजी के अलावे कुछ खास विकास आज तक हुआ नही है। हालांकि पक्ष और विपक्ष भले ही दियारा के लोगों को हमेशा वोट बैंक के बातौर अपने पाले में करता रहा है। लेकिन लालू के जन्मदिन के खास मौके पर पुल का उद्घाटन कर तेजस्वी यादव एक तीर से कई निशाना साधने की फ़िराक में लगे हैं। वही दियारे के लोगो का स्पष्ट कहना है कि आत्मदाह कर भी अपना हक़ लेंगे हम लोग .. सुने दियारे के लोगो की बात

Comments are closed.