बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

पुराने दोस्त आए साथ,अब एक ही सवाल क्या बिहार में दोबारा दौड़ेगी विकास की रेल?

152

पटना Live डेस्क. बिहार में नई सत्ता आ गयी. फिर से दो पुराने मित्र करीब आ गए और बिहार की सत्ता में दोबारा से भागीदार बन गए. सरकार ने विधानसभा में आसानी से बहुमत भी हासिल कर लिया. अब सबों की जुबां पर एक ही सवाल है कि, क्या फिर से राज्य में विकास की गाड़ी पटरी पर दौड़ेगी. बीजेपी नेताओं का कहना है कि चूंकि केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होगी तो इससे राज्य में विकास की रफ्तार को बढ़ाने में मदद मिलेगी. दरअसल सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी बीजेपी की है जिसने जनता को सुंदर भविष्य दिखाया है. केंद्र सरकार ने भी राज्य को भरोसा दिलाया है कि अब बिहार की विकास की गति और भी रफ्तार पकड़ेगी. खैर ये देखना है कि ये रफ्तार कबतक तेज होती है. नीतीश कुमार के साथ पिछले एनडीए सरकार के कामकाज पर गौर करें तो इसपर विश्वास किया जा सकता है.साल 2005 में न्याय यात्रा कर नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के जंगलराज से मुक्ति का वोट मांगा था. जनता ने भी नीतीश कुमार पर भरोसा कर जेडीयू और बीजेपी को बहुमत दिया. सरकार गठन के बाद तत्कालीन एऩडीए सरकार ने मिलकर राज्य का विकास भी किया. कानून व्यवस्था अच्छी हो गई. कई अपराधी जेल के सलाखों के अंदर चले गए और सड़कों की किस्मत भी बदल गयी. चकाचक सड़कों के साथ राज्य में विकास की गति ने भी जोर पकड़ा और धीरे-धीरे राज्य विकास दर के मामले में देश में दूसरे नंबर पर आ गया.

जनवरी 2006 से मई 2010 के बीच 48,437 अपराधियों को फास्टट्रैक अदालत ने सजा सुनायी. नकारात्मक विकास के लिए बदनाम बिहार 2008-09 के बीच देश का दूसरा सबसे तेज विकासदर वाला राज्य बन गया. जहां पहले गड्ढ़ों में सड़क थी, अब वहां सड़क से भी गड्ढ़े दूर हो गये. गांव के अस्पतालों में डॉक्टर नजर आने लगे. नीतीश कुमार ने समाज के अंतिम पायदान के लोगों तक विकास पहुंचाने का काम किया. भाजपा के साथ रहते हुए भी मुसलमानों को अपनी तरफ लाने में कामयाब रहे. सोशल इंजीनियरिंग का वह फार्मूला विकसित किया, जिससे पिछड़ों और दलितों में अपनी पकड़ मजबूत की.

यूं कहें तो नीतीश कुमार का यह कार्यकाल बिना किसी बड़े विवाद के साथ पूरा हुआ. जनता को भी इनके प्रति विश्वास जगा. बिहार में सत्ता परिवर्तन का असर साफ तौर पर दिखा.

वहीं, 2013 से 2017 तक बीजेपी के साथ छोड़ने के दौरान बिहार में कानून-व्यवस्था भी काफी चरमरा गई. इस दौरान बिहार में शिक्षा के स्तर में भी काफी गिरावट आई. शिक्षा के क्षेत्र में नये-नये घोटाले उजागर हुए. विकास की राह पर चल रहे बिहार में अलग-अलग मुद्दों को लेकर चर्चा शुरू हो गई.

करीब 23 साल बाद ऐसा मौका आया है जब केंद्र और बिहार दोनों जगह एक ही गठबंधन की सरकार है. अब केंद्र में मोदी सरकार, तो प्रदेश में नीतीश सरकार. इससे राज्‍य के विकास की रफ्तार तेज होने की उम्‍मीद बढ़ गई है क्योंकि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के काम करने के तरीके और उनके कोर वोटर्स भी लगभग एक हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त बिहार के सवर्ण मतदाताओं के साथ-साथ पिछडे अति-पिछडे, दलित-महादलित मतदाताओं का बड़ा तबका मोदी के नाम पर बीजेपी के साथ जुड़ा था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के वक्त इस तबके का बड़ा हिस्सा नीतीश के साथ हो गया था.

अब जब दोनों इस वक्त एक साथ खड़े हैं तो अपेक्षा बढ़ना स्वाभाविक है. लोगों को विधानसभा चुनाव के वक्त किए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन वादों की भी याद आ रही है जिसमें बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की बात कही गई थी. बिहार के विकास के सपने दिखाए गए थे. अब नीतीश कुमार के सामने बिहार के लोगों की अपेक्षाओं पर खड़ा उतरना सबसे बड़ी चुनौती है.

 

Comments are closed.