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शिक्षक दिवस विशेष: गरीब छात्रों का मसीहा गणितज्ञ आनंद,जिसने गरीबों के लिए जिंदगी को जिया,मेहनत की और हर दिल में मुकाम बना गए……..

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पटना Live डेस्क. एक ऐसा गुरु जिसका अपना कुछ भी नहीं..सबकुछ उस गरीब बच्चों के लिए जो पढ़ना चाहता है…लेकिन आर्थिक अभाव में पढ नहीं पाता..आज के इस युग में जहां लोग अपने लिए मरते हैं..अपने परिवार के लिए मरते हैं..वहां एक ऐसा गुरु भी है जो अपना सबकुछ होनहार छात्रों पर लगा देता है..यह विश्वास करना मुश्किल है…लेकिन इस दुनिया में भी एक उदाहरण है..और वो है गणितज्ञ आनंद कुमार..जिसने गरीबी को जिया..उसे देखा..और महसूस किया कि एक छात्र के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना कर लेना तो आसान है लेकिन उसे पूरा करना बेहद मुश्किल…इस सोच को सामने रख गणितज्ञ आनंद ने यह तय कर लिया कि वो वैसे बच्चों को आगे बढ़ाने का काम करेंगे जो गरीब हैं और जो पढ़ाई में आगे पढ़ना चाहते हैं..आज आनंद कुमार का एक ही मकसद है अपने बल पर गरीब छात्रों को पढ़ाना और उसे आईआईटीयन बनाना…

आज शिक्षा जगत का हर शख्स उऩ्हें सुपर 30 के संस्थापक के तौर पर जानता है..उनका आदर करता है..उनका सम्मान करता है..लेकिन इस सुपर 30 के संस्थापक बनने की कहानी के पीछे भी कम संघर्ष नहीं है..आनंद के पिता एक छोटी सरकारी नौकरी में थे..जिनके लिए परिवार के खर्च के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना संभव नहीं था..शुरु से ही पढ़ाई में अव्वल रहे आनंद को खासकर विज्ञान और उसमें भी गणित में अत्यधिक रुचि थी…सबों की सलाह पर आनंद ने पटना विश्वविद्यालय में नामांकन कराया…आनंद ने इस दौरान गणित के कुछ अद्भुत सूत्र ढूंढे..जिससे उनका विश्वविद्यालय और शिक्षकों में खास स्थान बन गया…एक दिन उनके शिक्षक ने उन्हें खुद के इजाद किए हुए हिसाब के सूत्रों को इंग्लैंड भेजने की नसीहत दी..बस क्या था आनंद ने उन मैथ के सूत्रों को इंग्लैंड भेजी दिया जो कि वहां प्रकाशित भी हो गया..इस सफलता के बाद इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से आनंद को आगे की पढ़ाई के लिए बुलावा आ गया…पटना विश्वविद्यालय शिक्षकों ने कहा कि वहां जाओ और अपना नाम रौशन करो…लेकिन आनंद को कैंब्रिज जाने में सबसे बड़ी बाधा रुपयों की थी..पिताजी के पास इतना पैसा नहीं था कि वो उन्हें वहां भेज पाते..इस बीच कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने यह साफ कर दिया कि वो केवल ट्यूशन फी ही माफ कर सकता है..जबकि बाकी के रुपयों का इंतजाम उन्हें खुद करना होगा..आखिरकार उनके पिता ने अपने विभाग से इस संबंध में पत्राचार किया और विभाग ने आनंद की पढाई के लिए बाकी के रुपयों के इंतजाम करने का भरोसा दिया…लेकिन यहां होनी को तो कछ और ही मंजूर था…यह साल 1994 की बात है जब 1 अक्टूबर को आनंद को इंग्लैंड की फ्लाइट पकड़नी थी..लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था जाने से महज एक हफ्ते पहले ही आनंद के पिता की मौत हो गई….इस घटना ने आनंद के भविष्य को अंधकारमय बना दिया..पिता की मौत के बाद परिवार गंभीर रुप से आर्थिक संकट से घिर गया..आखिरकार आऩंद को इंग्लैंड जाने का कार्यक्रम छोड़ देना पड़ा..लेकिन यहां रहने के बाद भी जीना आसान नहीं था..खुद की पढ़ाई और उसपर से माता की देखभाल की जिम्मेदारी…आनंद ने कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए ट्यूशन पढ़ाना शुरु कर दिया..जो छात्र जो दे देता था..वही आनंद के लिए बहुत था..किसी से आजतक रुपयों के लिए उनकी बहस नहीं हुई..जिम्मेदारी बढ़ते ही ट्यूशन से जरुरतों की भरपाई मुश्किल होने लगी..इन सबको देख आनंद की मां ने घर से ही पापड़ बनाने का काम करना शुरु कर दिया…आनंद घर-घर पापड़ बेचते और छात्रों को ट्यूशन पढ़ाते..यही दिनचर्या हो गई..समय बीतता गया..एक दिन उसी ट्यूशन के छात्र ने आनंद से कहा कि वो ट्यूशन के पांच सौ रुपए देने में फिलहाल असमर्थ है..और वो किस्तों में पांच सौ रुपए चुका पाएगा…आनंद ने छात्र की बात मान ली..और उसे पढ़ाने लगे..एक दिन आनंद उस छात्र से मिलने उसके कमरे पर गए..कमरे पर जाने के बाद उन्होंने देखा कि वो छात्र एक निजी मकान में सीढ़ी के नीचे वाले घर में रहता है और भीषण गर्मी में पसीने से लथपथ होकर गणित की पढ़ाई कर रहा है…उस छात्र को इस हालत में देख आनंद ने यह ठान लिया कि अब चाहे कुछ हो जाए..वो अब केवल गरीब बच्चों को पढ़ाएंगे और उन्हें वो मुकाम हासिल करने में मदद करेंगे..लेकिन यह सब आसान नहीं था..सबसे बड़ा सवाल था कि आखिर इतने रुपए कहां से आते..जिनमें उन गरीब बच्चों की पढ़ाई और उनके खाने-पीने का इंतजाम हो पाता…उस समय आनंद की मां ने घर में ही बच्चों के खाने का बीड़ा उठा लिया..कुछ लोगों ने भी आर्थिक मदद की..और बस शुरु हो गया गणितज्ञ आनंद का सफर…शुरु हो गया सुपर 30 का अनमोल सफर…आनंद की मेहनत और बच्चों की मेहनत ने रंग दिखाना शुरु कर दिया..साल 2002 में आनंद ने सुपर 30 की शुरुआत की..शुरुआती साल में ही 30 बच्चों में से कुल 18 ने आईआईटी की परीक्षा पास की…साल 2004 में 30 में से 24 बच्चे..और साल 2005 में 30 में से26 बच्चों ने सफलता हासिल की….साल दर साल सफलता का ग्राफ बढ़ता चला गया..आनंद की प्रसिद्धि से परेशान निजी कोचिंग मालिक उऩकी जान के दुश्मन बन गए..कई बार उनके उपर जानलेवा हमला किया गया..लेकिन आनंद खिलते सूरज की तरह आसमान में चमकते चले गए…आनंद की सफलता को देख कई लोग सहयोग के लिए आगे आए..आर्थिक मदद की पेशकश की..लेकिन आनंद ने किसी तरह की आर्थिक मदद लेने से इंकार कर दिया…क्योंकि यह काम वो बिना किसी की मदद से चलाना चाहते हैं..सुपर 30 का खर्च उनके कोचिंग सेंटर रामानुजम स्टडी सेंटर से चलता है…

आज आनंद देश और विदेश में विख्यात हैं..कई जगहों पर वो भाषण दे चुके हैं..फिल्मकार उनकी जीवनी पर फिल्म बना रहे हैं…कई विदेशी लोग उऩका इंस्टीच्युट देखने आते हैं और उनकी कार्यशैली को समझने की कोशिश करते हैं..

आनंद कहते हैं कि आज जो भी है वो सब छात्रों की मेहनत की बदौलत है और इस बात का सारा श्रेय छात्रों को जाता है..जबकि छात्र अपनी सफलता का सारा श्रेय आनंद और सुपर 30 को देते हैं जिसने उऩ्हें आज शिखर तक पहुंचाया है….

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