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Super Exclusive – ओह ! फिर जबरिया हीरो पैदा किया गया गोरखपुर नरसंहार में – डॉ कफ़ील अहमद खान एक संदिग्ध किरदार

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पटना Live डेस्क। योगी के गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई दिल दहला देने वाली घटना में देश को झकझोर कर रख दिया है। शुक्रवार को गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी होने की वजह से 32 बच्चों की मौत हो गई। पिछले 7 दिनों में मौत का आंकड़ा 60 के पार पहुंच चुका है। सीएम योगी खुद तीन दिन पहले ही इस अस्पताल का दौरा कर चुके हैं, लेकिन फिर भी इतनी बड़ी घटना हो गई।

डॉ कफ़ील खान का सच

गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस वार्ड की जिम्मेदारी संभालने और खरीद-फरोख्त करने के इंचार्ज रहे डॉ कफिल खान अपनी निजी अस्पताल चलाते है। जिसका नाम Medispring Hospital है। कमाल की बात ये है कि इन्होंने इस हॉस्पिटल को अपने नाम पर “ट्रेडमार्क”  रजिस्टर्ड करने के लिए आवेदन भी दिया था। यहाँ एक बड़ा सवाल है कि एक सरकारी हॉस्पिटल के डॉक्टर को निजी अस्पताल चलाने की इजाजत सरकार देती है?


खैर, जब हमने इस सच को जानने ख़ातिर विभिन्न माध्यमो से जानकारी और गूगल की मदद ली तो हकीकत खुद ब खुद बाहर आ गई। बेहद करीने से मीडिया में खुद को हीरो,मसीहा फरिश्ता और न जाने क्या क्या प्लांट करने वाले डॉ कफ़ील अहमद खान ने वर्ष 2013 में गोरखपुर के एक सबसे बेहतरीन निजी अस्पताल की नींव रखी और इस अस्पताल के कर्ताधर्ता है। साथ मे इनकी पत्नी भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। पूर्वांचल के सबसे शानदार अस्पताल जो किसी 5 स्टार हॉस्पिटल से कम नही है। एक झलक तो देखिए …

चुकी  एक त्रासद घटना के बीच से एक जबरिया और तथाकथित मसीहा के तौर पर अवतार ले चुके डॉ कफ़ील को अपने गड़बड़ झाले और संदिग्ध आचरण के उजागर होने का खतरा भी महसूस हो रहा था। सच के बाहर आने का भी कफ़ील को डर था, तो इंटरनेट से  ताबड़तोड़ मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल उनका होने के तमाम सुबूत और आर्टिकल्स तो हटाने की कोशिश की ही गई बल्कि हॉस्पिटल का वेबसाइट ब्लॉक किया गया। ये है हॉस्पिटल का ऑफिसियल वेबसाइट एड्रेस http://medispringhospital.com जो लागतार 404 error दे रहा है।

लेकिन सच तो सच होता है वो छुपता कहा है। हमने जब इनके बाबत इन के बाबत लिखे गए आर्टिकल और व्यक्तिगत जीवन के बाबत खंगालना शुरू किया तो हम खुद हैरान और परेशान होने को मजबूर हो गैर। वही आर्टिकल और इनके ट्वीटर एकाउंट को गहनता से अध्ययन करने के बाद तो पूरा मामला कही ओर इशारे कर रहा था। निजी फायदे और रसूखदार परिवार का इस शख़्स किरदार का एक और पक्ष हमारे सामने आया एक महिला द्वारा इनपर और इनके भाई पर “बालात्कार” का किया गया मुकदमा भी जो इनके चरित्र पर उंगली उठा रहा था।

बलात्कार के आरोपी डॉ कफ़ील अहमद

दिल्ली पुलिस द्वारा एक मामले में नामित डॉ कफ़ील अहमद पर गोरखपुर में वर्ष 2015 में अपने नर्सिंग होम में उससे बलात्कार करने बेहद सनसनीखेज आरोप एक नर्स का काम करने वाली स्थानीय महिला ने लगाया था। लेकिन वर्षो बीत गए महिला ने मानवाधिकार आयोग से लेकर वरीय पुलिस अधिकारियों तक के दरवाजे खटखटाए पर अब तक डॉ कफ़ील और उनके बड़े भाई कि गिरफ्तारी तक इस बेहद संगीन मामले में न हो सकी।

पटना Live – एफआईआर जो 15 मार्च 2015 को की गईं की कॉपी मौजूद है।

गड़बड़झाले का आरोप

इस तथाकथित मसीहा का हाल देखिये पिछले 6 महीने से अस्पताल से छुट्टी पर थे। पर्चेज कमिटी के सदस्य भी है। डॉ कफ़ील अहमद का पर और कई गभीर आरोप लगे है।दिल्ली पुलिस ने 2009 में किसी और महिला डॉक्टर की जगह पर किसी और लेडी डॉक्टर को बिठाकर परीक्षा दिलाने के लिए दिल्ली पुलिस ने डॉ कफ़ील को गिरफ्तार किया था। वही कर्नाटक में भी कफ़ील पर कानूनी मामला दर्ज है।

अस्पताल में मनमर्जी करना सरकार अस्पताल से मरिजों को अपने निजी नर्सिंग होम में बेहतर इलाज का वायदा कर शिफ्ट करना ऐसे तो तमाम आरोप है ही साथ ही निज़ाम बदलने के बाद वित्तीय गड़बड़ियों और एक बेहद गंभीर यानी रेप के मामले जिसमे डॉ कफ़ील
अपने भाई संग नामज़द आरोपी है जैसे इनके कारनामों की जब पोल खुलने लगी तो अचानक डॉ कफ़ील कार्डियक अरेस्ट का बहाना बनाकर छुट्टी पर चले गए।

सुपरमैन की कहानी मीडिया की जुबानी

गोरखपुर के बेहद रसूखदार परिवार से संबंध रखने वाले डॉ खान सिलेंडर लाने और सुपरमैन का खिताब पाने के लिए मीडिया में गये और हर बार की तरह इस बार भी ब्रेकिंग न्यूज़ और सबसे पहले हम की अंधी दौड़ में
बिना जांचे परखे सच को जाने फिर जबरिया हीरो पैदा किया गया गोरखपुर नरसंहार के बीच जबकि डॉ कफ़ील अहमद खान एक संदिग्ध किरदार के मालिक है। अपने सियासी रसूख और बदन पर सफेद गाउन डालकर भी उनके ऊपर की दाग है।

जांच में उलझता डॉ कफ़ील का झूठ

लेकिन दो दिन पहले सीएम साथ में थे तो क्यों नही हक़ीक़त बताया। अस्पताल सह मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। वही प्रिंसिपल की कमिटी जो वित्तीय लेखा जोखा देखती है उसमें बातौर वार्ड प्रमुख डॉ खान की भूमिका बेहद संदिग्ध है। खैर, जांच में सब दूध का दूध पानी का पानी होगा पर भारतीय मीडिया की हड़बड़ी में गबबड़ी फिर उजागर हो गई है।

Fact – SSB ने भी अपने ट्रक में अपने कोटे के ऑक्ससीजन सिलिंडर्स भेजे जिसकी चर्चा ही नही

वही आज जब योगी आदित्यनाथ जब मेडिकल कॉलेज पहुंचे तो उन्हें चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं। बंद कमरे में पूछताछ के दौरान स्टाफ ने बताया कि प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा ने डॉ. काफिल को परचेज कमेटी का मेंबर बनाकर दवा और उपकरणों की खरीदारी की जिम्मेदारी सौंप रखी है। दवाओं की खरीद में कई बार अनियमितता के मामले सामने आ चुके हैं। शिकायत हो चुकी है। जांच से बचने के लिए जब तब  डॉ. काफिल बीमारी का बहाना बनाकर गायब हो जाते हैं। जबकि वे निजी हास्पिटल में इलाज करते मिलते हैं। मेडिकल कॉलेज में अगर बैठते भी हैं तो अपने निजी हास्पिटल का मरीजों के बीच प्रमोशन करने के लिए।

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