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क्या होगा बिहार की राजनीति का? सप्ताह से ज्यादा दिन बीत गए लेकिन नतीजा सिफर!

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पटना Live डेस्क.  पिछले बारह दिनों से बिहार की राजनीति को देख और समझ रहे लोग भी अब कन्फ्यूज हैं. उन्हें समझ ये नहीं आ रहा कि आखिर होगा क्या? राजद से समझौता होगा या फिर सरकार जाएगी. अल्टीमेटम देने के बाद जेडीयू चुप है. चार दिनों की मोहलत भी खत्म हो चुकी है. इस बीच दोनों पार्टियों के नेताओं के बयान भी खूब आए लेकिन निष्कर्ष निकलता नहीं दिखता. सरकार की उहापोह के बीच इसका सीधा असर राज्य के विकास पर पड़ रहा है. काम अवरुद्ध हैं. राज्य में अपराध की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. मतलब है कि नीतीश कुमार की चुप्पी का असर दलीय राजनीति पर तो पड़ ही रहा है इसका असर बिहार के विकास पर भी पड़ रहा है. जेडीयू की चेतावनी या फिर उसे नसीहत कह लीजिए, उसका कोई असर राजद पर पड़ता नहीं दिख रहा है. राजद मुखिया लालू प्रसाद अपने स्टैंड पर कायम हैं कि तेजस्वी किसी भी कीमत पर इस्तीफा नहीं देंगे. तब सवाल ये उठता है कि आखिर जेडीयू किस बात का इंतजार कर रही है. क्या नीतीश कुमार राजद को और वक्त देना चाहते हैं या फिर वो अंदर ही अंदर कोई राजनीतिक समीकरण की तलाश में हैं. लेकिन लोग अब कह रहे हैं कि अब जो होना है वो हो जाए. आखिर राजनीति के इस खींचतान का अंत तो हो जाएगा. या तो नीतीश कुमार लालू प्रसाद के साथ सीधी बातचीत कर इस मामले को निबटाएं या फिर कोई वैकल्पिक ठिकाना ढूंढे. दोनों पार्टियों के प्रवक्ता अपनी-अपनी पार्टी के स्टैंड पर कायम हैं. गाहे-बगाहे किसी पार्टी का छोटा नेता कोई ब्रेकिंग वाला बयान देकर लोंगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है लेकिन ठोस कुछ भी होता फिलहाल नजर नहीं आ रहा. दिल्ली में बैठे जेडीयू के वरिष्ठ नेता के सी त्यागी जरुर कड़ा बयान देते हैं लेकिन वो भी जानते हैं कि करना तो आखिरकार नीतीश कुमार को ही है. इस बीच कांग्रेस खुद को महागठबंधन में मध्यस्थ की भूमिका में देख रही है. कभी सोनिया गांधी की बात नीतीश कुमार से होने की बात आती है तो कभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष लालू प्रसाद से मिलने उनके आवास पर पहुंचते हैं. लेकिन उनके बीच की गुफ्तगू का पता न तो मीडिया को है और न ही आम जनता को. वो तो बस इस इंतजार में है कि कुछ फैसला हो जाए. गठबंधन चाहने वाले लोग चाह रहे हैं कि सरकार पर किसी तरह का कोई खतरा न आए वहीं गठबंधन से खार खाए लोग नीतीश कुमार को अपने भ्रष्टाचार विरोध स्टैंड पर कायम रहने की नसीहत दे रहे हैं. कांग्रेस बेचैन है उसे लग रहा है कि काफी दिन बाद सत्ता हाथ लगी है सो सरकार बचाने के सारे प्रयास कर डालो. बिहार के नेताओं के बाद इस मसले को सुलझाने के लिए दूसरे प्रदेशों के नेता भी पटना का चक्कर लगा रहे हैं. लालू प्रसाद और नीतीश कुमार से जिस कांग्रेसी नेताओं के अच्छे संबंध है उन्हें इस काम में लगाया गया है. कोई लालू से गुफ्तगू कर रहा है तो कोई नीतीश को बीजेपी के पाले में नहीं जाने की नसीहत दे रहा है. लेकिन मामला सुलझता दिखाई नहीं दे रहा है. खबर ये आई कि नीतीश कुमार राष्ट्रपित चुनाव तक इंतजार में हैं इसके बाद वो तेजस्वी यादव के खिलाफ कोई बड़ा एक्शन ले सकते हैं. ऐसे में अब राष्ट्रपति चुनाव भी खत्म हो चुका है. राजनीति भी चरम पर है. लालू प्रसाद किसी भी तरह से खुद को बैकफुट पर आता नहीं दिखना चाह रहे हैं. उऩ्होंने भी शायद आर-पार के लिए मूड बना लिया है. लालू प्रसाद के उपर जनता का दबाव नहीं है. तेजस्वी आरोपी बनने के बाद भी चिंतामुक्त हैं और वो अपने इस्तीफे की बात को मीडिया की उपज बता रहे हैं. लेकिन राजद के बयानों और उसके स्टैंड से जेडीयू चिंतित है. जिसपर आरोप लगे वो खुलेआम अपनी बात दमदार तरीके से रख रहा है और जिसने उसे नैतिकता की नसीहत दी वो फिलहाल डिफेंसिव है. इक्का-दुक्का नेताओं के बयानों के अलावा जेडीयू की तरफ से कोई ठोस निकलकर नहीं आ रहा है. प्रवक्ता ये जरुर कह रहे हैं कि जेडीयू अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगी लेकिन इसका फैसला क्या होगा इसके उपर महज कयास लगाए जा सकते हैं. शायद इंतजार की घड़ियां अभी और लंबी हो, कारण है कि ये राजनीति है सभी पार्टियां अपने नफा-नुकसान को तौल रही होंगी,लेकिन इस आपसी खींचतान में तो नुकसान जनता का हो रहा है.

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