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न आरू है,न घर है,न क्लिनिक,न पैसा,बस जेल में उस जुर्म की सज़ा काट रहे हैं जो हमने किया ही नहीं – डॉ राजेश तलवार

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पटना Live डेस्क। गुरुवार को इलाहबाद हाई कोर्ट ने आरुषि के मां-बाप को निर्दोष करार देते हुए उन्हें बरी कर दिया है।एनसीआर नोएडा के सेक्टर नंबर 25 (जलवायु विहार) में रहने वाली महज 14साल की नाबालिक लड़की , जिसकी बेहरहमी से हत्या कर दी गयी।इसके साथ ही उसी घर में काम कर रहे नौकर हेमराज (45 वर्ष) की भी हत्या कर दी गई।इस तरह से यह दोहरे हत्याकांड के रूप में सामने आया। देश के बेहद चर्चित दोहरे हत्याकाण्डों में शुमार आरुषि हत्या का रहस्य फिर एक बार फिर से बेहद नाटकीय मोड़ ले चुका है।

कत्ल की वो स्याह रात और घटनाक्रम

वर्ष 2008 में 15-16 मई की दरमियानी रात यह रहस्यमय हत्याकांड तब हुआ जब नोएडा के सेक्टर नंबर 25 के जलवायु विहार के लोग बाग नींद की आगोश में थे। इधर, डेंटिस्ट दम्पति के घर मे एक साथ दो लोगो को पूरी निर्ममता से कत्ल कर दिया गया। इस दौरान बगल के कमरे में एसी की ठंडक में आरुषि के डेंटिस्ट माता-पिता नींद की आग़ोश में थे। 16 मई की सुबह आरुषि अपने कमरे में मृत पाई गई। धारदार हथियार से उसका गला रेत दिया गया था।


आरुषि के पिता ने उसको मारने का आरोप अपने घर के नौकर हेमराज पर लगाते हुए,एक एफ.आई.आर (FIR) पुलिस थाने मे दर्ज कराई थी। जिसमे सारा शक उस नौकर हेमराज की तरफ था, जो तबतक फरार था। यह ख़बर मीडिया के ज़रिए से लोगो के सामने यह खबर तक सामने आयी,इस वारदात में हेमराज के साथ उसके 4 साथी के भी शामिल होने की शंका जताई जा रही थी। लेकिन यह कत्ल का मामला तब और पेचीदा हो जब एक दिन बाद यानी 17 मई को नौकर हेमराज का शव राजेश के पड़ोसी की छत से बरामद हुआ।

लेकिन डॉ राजेश ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया था। मामले में 23 मई 2008 को राजेश तलवार को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया. एक दिन बाद 24 मई को यूपी पुलिस ने राजेश तलवार को मुख्य अभियुक्त बताया।

सीबीआई जांच

14 साल की आरुषि तलवार और नौकर हेमराज की हत्या का मामला इतिहास के अब तक के सबसे पेचीदा मामलों में से एक है।उत्तर प्रदेश की एक कोर्ट ने साल 2013 में आरुषि के मां-बाप यानी कि राजेश और नुपुर तलवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।लडेंटिस्ट दंपति को अपनी 13 साल की बेटी आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या के लिए दोषी करार दिया गया था। नोएडा स्थित घर में दोनों की हत्या हुई थी।

आपको बता दें कि आरुषि की हत्या के बाद पत्रकार अविरूक सेन ने आरुषि के ऊपर एक किताब लिखी जिसका नाम ‘आरुषि’ है। उनके द्वारा लिखी गयी किताब के मुताबिक,अविरूक की जांच से भी तलवार दंपति बेक़सूर साबित हुए हैं।अविरूक ने अपनी किताब ‘आरुषि’ में कुछ अंश ऐसे भी डालें हैं जो खुद राजेश तलवार ने अपनी डायरी में लिखा है।दोषी करार देने के बाद राजेश तलवार ने यह डायरी 25 नवंबर, 2013 से जेल में ही लिखना शुरू कर दिया था।

पढ़िए राजेश तलवार की डायरी की कुछ बातें जो अविरूक की किताब ‘आरुषि’ का अहम हिस्सा हैं।

27 नवंबर, 2013- मेरी मुलाकात नुपुर से 1 बजे हुई। वह बहुत थकी हुई लग रही थी। शायद उसे किसी अपने से मिलना था।उसे अपने पिता की बेहद चिंता हो रही थी पर दूर होने की वजह से उनका आना मुश्किल था। मैं और नुपुर अगर वहां गए तो लोगों का आना कम हो जाएगा। शायद हफ्ते में एकाध बार कोई आ जाये। शायद हम कल किसी से एक साथ मिल पायें।बाहर कुछ बातों को ग्रांटेड ले लिया जाता है। मेरी इच्छा किसी अपने से मिलने की है,पर यह हो नहीं सकता। अभी तो केवल तीन दिन ही बीते हैं।

29 नवंबर, 2013- मैं जेल सुप्रीटेंडेंट से अपने और नुपुर के बारे में कुछ बात करना चाहता हूं। मीडिया जानना चाहती है कि हमें आगरा की जेल में क्यों नहीं भेजा जा रहा,यह सुनकर मुझे शॉक लगा।ऐसा होने पर हम क्या करेंगे।खैर, हमारी तरफ से अर्जी दे दी गयी है, उम्मीद है ऐसा कुछ नहीं होगा।

3 दिसंबर, 2013- हमारे साथ यह सब कुछ कैसे हो गया, कुछ पता ही नहीं चला उस वक़्त अगर मेरी नींद खुल जाती तो मैं अपनी आरू को ज़रूर बचा लेता। उसके बगैर अब मैं कैसे जी पाऊंगा?

8 दिसंबर, 2013- आज कोशिश करूंगा कि नुपुर से मिल पाऊं  पता नहीं,अपील का क्या हुआ। क्या हो रहा है कुछ खबर नहीं और यह सब कब तक चलेगा, कुछ भी नहीं पता।आरू के साथ बिताये गए हमारे अच्छे दिनों की बहुत याद आती है।लोग अपने बच्चों की बातें करते हैं और उनके बच्चे उनसे मिलने जेल में भी आते हैं।लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता। हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं है।

12 दिसंबर, 2013- अभी अस्पताल से आया हूं।सब कुछ चेक कर लिया। कानून मंत्री से भी मिला क्योंकि मुझे वहां डिप्टी जेलर ने बुलाया था। मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं चिड़ियाघर का कोई जानवर हूं। जिसे देखने लोग आते हैं।

18 दिसंबर, 2013- 19 जनवरी को हमारी शादी की सालगिरह है। शादी को 25 साल पूरे हो जाएंगे। किसने सोचा था कि 25वीं सालगिरह यहां मनेगी। न आरू है, न घर है,न क्लिनिक,न पैसा।बस जेल में उस जुर्म की सज़ा काट रहे हैं जो हमने किया ही नहीं।

19 दिसंबर, 2013- बस यही सोचता रहता हूं कि अगर उस दिन वह हादसा नहीं हुआ होता तो आज हम किस तरह जी रहे होते।आरू की बहुत याद आती है। पता नहीं कहां होगी और हमारी इस हालत को देखकर उस पर क्या बीत रही होगी।खुद को हम बेक़सूर भी साबित नहीं कर पा रहे।कोई भी कुछ भी साबित नहीं कर पाया। वह लोग बस हमारे जवाब से संतुष्ट नहीं थे।

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