बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

Fact Finding-अमेरिकी अभियान से जन्मा “तालिबान” बना “भस्मासुर” जानिए अब किनके हाथ में इसकी लगाम

महज 22 दिनों में ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है।राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ गए हैं और हथियारबंद लड़ाकों को राष्ट्रपति भवन में टहलते देखा जा सकता है।अमेरिकी नीतियों से मुल्‍ला उमर को तालिबान को सबसे खूंखार लड़ाकों का संगठन बनने में मदद की, मुल्ला उमर की मौत के बाद अब किसके हाथ में ताल‍िबान की बागडोर? शीर्ष पदों पर बैठे हैं ये शीर्ष तालिबानी

1,554

पटना Live डेस्क। तालिबान लड़ाकों ने महज 22 दिनों में ही अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ गए हैं। हथियारबंद लड़ाकों ने राष्ट्रपति भवन में टहलते देखा जा सकता है।इसी साल 23 जून को, यानी सिर्फ 22 दिन पहले संयुक्तराष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि अफगानिस्तान के 370 जिलों में से 50 पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत डेबरा ल्योन्स की यह चेतावनी एक हैरतअंगेज खबर की तरह आई थी।लेकिन यह चेतवानी वाली खबर सच साबित हों चुकी।इस चेतावनी के एक हफ्ते के भीतर और पहली चेतावनी के सिर्फ 22 दिन बाद तालिबान ने काबुल में प्रवेश करते हुए अफगानिस्तान की सत्ता कब्जा ली है।

रविवार को तालिबान ने राजधानी काबुल में प्रवेश किया और देश के राष्ट्रपति अशरफ गनी विदेश भाग गए। उन्होंने कहा कि वह खून-खराबा टालना चाहते हैं। तालिबान के एक प्रवक्ता ने कहा कि युद्ध खत्म हो गया है और अफगान लोगों को जल्द पता चलेगा कि नई सरकार कैसी होगी।

अमेरिका ने जन्म दिया तालिबान को

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद से तालिबान के आतंकी कोहराम मचाए हुए हैं।2011 से ही तालिबान अमेरिका समर्थित अफगान सरकार से लगातार जंग लड़ रहा है।अफगानिस्तान में तालिबान का उदय भी अमेरिका के प्रभाव से कारण ही हुआ था। वक्त बदला और अब वही तालिबान अमेरिका के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। 1980 के दशक में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में फौज उतारी थी, तब अमेरिका ने ही स्थानीय मुजाहिदीनों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। नतीजन, सोवियत संघ लंबे संघर्ष के बाद अपनी हार मानकर चला अफगानिस्तान से रुख़सत होना पड़ा। लेकिन पीछे एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान का जन्म हो गया।

कैसे हुआ था तालिबान का जन्म

अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी के बाद अलग अलग जातीय समूह में बंटे ये संगठन आपस में ही लड़ाई करने लगे। इस दौरान 1994 में इन्हीं के बीच से एक बेहद जंगजू इस्लाम का परचम लहराने खातिर किसी भी हद तक जाने को तैयार पाकिस्तानी मदरसों से पढ़े सैकड़ों हजारों युवाओं का एक हथियारबंद गुट उठा और उसने 1996 तक अफगानिस्तान के अधिकांश भूभाग पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद से उसने पूरे देश में शरिया या इस्लामी कानून को लागू कर दिया। इसे ही तालिबान के नाम से जाना जाता है। इसमें अलग-अलग जातीय समूह के लड़ाके शामिल हैं,जिनमें सबसे ज्यादा संख्या पश्तूनों की है। अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों की सेना के उतरने के बाद भी इसका खात्मा नहीं किया जा सका।

तालिबान का प्रमुख उद्देश्य

तालिबान का प्रमुख उद्देश्य अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात की स्थापना करना है। 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया के तहत शासन भी चलाया। जिसमें महिलाओं के स्कूली शिक्षा पर पाबंदी, हिजाब पहनने, पुरुषों को दाढ़ी रखने, नमाज पढ़ने जैसे अनिवार्य कानून भी लागू किए गए थे।

तालिबान और मुल्ला उमर

तालिबान की स्थापना मुल्ला उमर ने की थी। मुस्लिम धार्मिक नेता मुल्ला उमर 1979 में सोवियत संघ के हमले के बाद जिहादी बना था। तालिबान की स्थापना के बाद से मुल्ला उमर इस आतंकी संगठन का सरगना बन गया था। ये इतना बड़ा वांडेट आतंकी था कि अमेरिका ने इस एक आंख वाले व्यक्ति के सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा था। मुल्ला उमर का ठिकाना इतना गोपनीय था कि अफगानिस्तान का चप्पा-चप्पा छानने के बाद भी अमेरिका को इसका कोई सुराग नहीं मिला था। साल 2015 में मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला मोहम्मद याकूब ने अपने पिता की दो साल पहले मौत की पुष्टि की थी। मुल्ला उमर अल कायदा चीफ ओसामा बिन लादेन का भी काफी करीबी था। मुल्ला का जन्म 1960 में देश के दक्षिण में कंधार के खाकरेज ज‌िले के चाह-ए-हिम्मत नामक गांव में हुआ था। तालिबान अपने सर्वोच्च नेता को मुल्ला मोहम्मद उमर ‘मुजाहिद’ के नाम से संबोधित करता है। वह होतक जनजाति के तोम्जी कबीले से संबंधित थे।

हिबतुल्लाह अखुंदजादा

वर्तमान में तालिबान की कमान हिबतुल्लाह अखुंदजादा के पास है। इसे तालिबान के अत्यंत वफादार नेताओं के रूप में जाना जाता है। अखुंदजादा इस्लामी कानूनी का बड़ा विद्वान होने के साथ तालिबान का सर्वोच्च नेता है। तालिबान के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों पर अंतिम फैसला हिबतुल्लाह अखुंदजादा ही करता है। अखुंदजादा 2016 में तालिबान का सरगना बना था। उससे पहले तालिबान का चीफ अख्तर मंसूर नाम का आतंकी था।

                वर्ष 2016 में अफगान-पाकिस्तान सीमा के पास अमेरिकी ड्रोन हमले में अख्तर मंसूर की मौत हुई थी। 2016 में अचानक गायब होने से पहले वर्तमान समय मे तालिबान सुप्रीम कमाण्डर  हिबतुल्लाह अखुंदजादा दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान के एक कस्बे कुचलक में एक मस्जिद में पढ़ाया करता था। यहीं से वह तालिबान के संपर्क में आया और इस खूंखार आतंकी संगठन के शीर्ष पद पर पहुंचा। माना जाता है कि उसकी उम्र लगभग 60 वर्ष है और उसका ठिकाना अज्ञात है।

मुल्ला मोहम्मद याकूब

मुल्ला मोहम्मद याकूब तालिबान की स्थापना करने वाले मुल्ला उमर का बड़ा बेटा है। पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ा लिखा मुल्ला याकूब इस समय तालिबान के शक्तिशाली मिलिट्री कमीशन का सदर है।याकूब तालिबान के सैन्य अभियानों का भी चीफ है।उसके ही इशारे पर तालिबान के आतंकी हमले करते हैं। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों ने कहा है कि वह अफगानिस्तान के अंदर मौजूद है और अफगान सेना पर हमले का संचालन कर रहा है।

मुल्ला उमर का बेटा होने की वजह से तालिबान में इसे बड़ी इज्जत हासिल थी और इसे एक ऐसे चेहरे के तौर पर देखा जाता था। जिसमें तालिबानी जंजुओं को एक करने की ताकत थी,क्योंकि इसके पिता से तालिबानी लड़ाकों का जुड़ाव था।उत्तराधिकार के विभिन्न संघर्षों के दौरान उसे तालिबान का समग्र नेता घोषित किया गया था।

लेकिन इसने 2016 में हिबतुल्लाह अखुंदजादा को आगे करके तालिबान का सरगना घोषित कर दिया। माना जाता है कि याकूब अपने संगठन में तनाव को कम करना चाहता था क्योंकि उसके पास युद्ध के अनुभव की कमी थी और वह उम्र में भी कई नेताओं से बहुत छोटा था। उस समय याकूब की उम्र 30 साल के आसपास थी। हालांकि कुछ तालिबान पर नजर रखने वाले सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी नियुक्ति महज दिखावा है।

सिराजुद्दीन हक्कानी

सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान का डिप्टी लीडर है और उसी हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख है जो पिछले 20 सालों से अमेरिका और नाटो की सेनाओं पर अफगानिस्तान में फिदायीन हमले करता आया है। सिराजुद्दीन हक्कानी सोवियत के खिलाफ लड़ने वाले अहम कमांडरों में रहे बेहद खूंखार कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बडा बेटा है। सिराजुद्दीन हक्कानी अपने पिता के बनाए हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व भी करता है। हक्कानी समूह पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान की वित्तीय और सैन्य संपत्ति की देखरेख करता है। अमेरिका ने सिराजुद्दीन को मोस्ट वॉन्टेड घोषित कर रखा है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हक्कानी नेटवर्क ने ही अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी। हक्कानी नेटवर्क को अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

                साथ तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी किया था। इसके अलावा हक्कानी नेटवर्क ने भारतीय दूतावास पर आत्मघाती हमला भी किया था। माना जाता है कि सिराजुद्दीन हक्कानी का उम्र 40 से 50 के बीच में है, जो अज्ञात ठिकाने से अपने नेटवर्क को संचालित करता है।

मुल्ला अब्दुल गनी बरादर

तालिबान के सह-संस्थापकों में से एक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख है। 1990 के दशक में जब अफगानिस्तान गृह युद्ध की आग में जल रहा था तो बरादर ने एक आंख वाले मुल्ला उमर और अन्य लोगों के साथ मिलकर तालिबान को खड़ा किया। मुल्ला बरादर की जवानी कंधार में ही गुजरी थी जहां पर तालिबान पनपा है।1970 के दशक में जब सोवियत रूस (USSR) की फौजें अफगानिस्तान आईं तो लाखों अफगानियों की तरह मुल्ला बरादर की जिंदगी भी हमेशा के लिए बदल गई और उसने हथियार उठा लिया। माना जाता है कि मुल्ला बरादर और मुल्ला उमर साथ साथ मिलकर अफगानिस्तान में लड़े हैं।

रिपोर्ट के अनुसार 2001 में जब 9/11 के बाद अमेरिका और नाटो की सेनाओं ने अफगानिस्तान में तालिबान का खात्मा कर दिया तो मुल्ला बरादर तालिबानी आतंकियों के एक छोटे से समूह के साथ तत्कालीन अफगान नेता हामिद करजई के साथ समझौता करने गया था। लेकिन बात नहीं बनी।

पाकिस्तान में जेल में रहा 8 साल

मुल्ला बरादर को 2010 दक्षिणी पाकिस्तानी शहर कराची में सुरक्षाबलों ने पकड़ लिया था, लेकिन बाद में तालिबान के साथ डील होने के बाद आखिरकार 2018 में अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने उसे रिहा कर दिया।

इसके बाद मुल्ला बरादर कतर चला गया। यहां पर इसे तालिबान का राजनीतिक नेता नियुक्त किया गया।तालिबान ने यहां अपना दफ्तर बनाया और यहीं से मुल्ला बरादर अमेरिका और पाकिस्तान से राजनीतिक समझौते कर रहा था।इस समय वह तालिबान के शांति वार्ता दल का नेता है, जो कतर की राजधानी दोहा में एक राजनीतिक समझौते की कोशिश करने का दिखावा करता रहा।

Comments are closed.