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सुशील मोदी ने 114 दिनों में ध्वस्त किया महागठबंधन,बनवायी एनडीए की सरकार

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पटना Live डेस्क. बिहार में जेडीयू,राजद और कांग्रेस का महागठबंधन टूटा, मानो बीजेपी को सबकुछ मिल गया. कई महीनों से नीतीश कुमार को अपने पाले में लाने की बीजपी की चाहत पूरी हो गई. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये सबी बड़ी आसानी से हुआ. दरअसल बीजेपी ने एक रणनीति के तहत पिछले छह महीनों से नीतीश को अपने पाले में लाने की मुहिम शुरु की थी. जाहिर है बीजेपी भविष्य की राजनीति को लेकर ज्यादा सशंकित थी उसे साल 2019 का लोकसभा चुनाव दिख रहा था, जहां नीतीश कुमार विपक्ष का बड़ा चेहरा बनकर उभर रहे थे. बीजेपी ये बखूबी जान रही थी कि अगर नीतीश कुमार इस विपक्षी एकता से अलग नहीं हुए तो उससे पार्टी का साल 2019 का लोकसभा चुनाव का अभियान फीका पड़ सकता है. कम से कम बिहार में तो इसका असर पड़ेगा ही. सो बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने एक सधी हुई रणनीति के तहत महागठबंधन की कमजोर कड़ी लालू प्रसाद को निशाना बनाना शुरु किया. इसकी जिम्मेदारी दी गई बिहार बीजेपी के बड़े नेता सुशील कुमार मोदी को. सुशील मोदी पहले की सरकार में नीतीश कुमार के साथ काम कर चुके हैं और उन्हें लालू प्रसाद की कमजोरियों के बारे में सारी बातों की जानकारी थी. सो पिछले चार महीनों से सुशील मोदी ने लालू और उनके परिवार को घेरने के लिए उनके काले कारनामों की लिस्ट खंगालनी शुरु कर दी. पिछले 114 दिनों से लालू प्रसाद और उनके परिवार की बेनामी संपत्तियों की जानकारी जुटानी शुरु हो गई. सुशील मोदी का दावा है कि इसमें उऩ्हें महागठबंधन के साझीदार पार्टी ने ही मदद की और लालू प्रसाद की संपत्तियों के बारे में जानकारी दी. खैर, सुशील मोदी की ये कोशिश रंग लाई और उऩ्होंने एक-एक कर लालू प्रसाद,तेजस्वी यादव,राबड़ी देवी और उनकी बेटियों की बेनामी संपत्तियों के बारे में खुलासा करना शुरु किया. सुशील मोदी ने पिछले चार अप्रैल को  महागठबंधन सरकार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के भ्रष्टाचार उजागर करने का अभियान शुरु किया जिसका परिणाम 26 जुलाई को देखने को मिला. भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लालू और उनके परिवार के खिलाफ सीबीआई की छापेमारी औऱ तेजस्वी के खिलाफ मुकदमे ने बीजेपी को नई संजीवनी दी और बीजेपी ने नीतीश कुमार पर तेजस्वी को डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त करने को लेकर दबाव बढ़ाना शुरु किया. आखिरकार बीस दिनों की खींचतान के बाद नीतीश कुमार ने अपनी छवि से समझौता न करते हुए खुद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया. बीजेपी मानो इसी इंताजर में ही थी कि कब नीतीश इस्तीफा देते हैं. इस्तीफे की खबर सुनते ही बीजेपी ने आनन-फानन में पार्ट की बैठक बुलाई और महज कुछ घंटों में ही नीतीश कुमार को एनडीए विधायक दल का नेता चुने जाने की घोषणा कर दी. सबकुछ इनता जल्दी हुआ कि राजद और कांग्रेस भी अचंभे में पड़ गई. लेकिन ये सब तो बीजेपी की सोची-समझी रणनीति के तहत ही हुआ था और आखिर सुशील मोदी का मकसद भी तो यही था.

सुशील मोदी की रणनीति कारगर साबित हुई और राज्य में महागठबंधन सरकार गिर गई. सुशील मोदी ने नीतीश कुमार के साथ नई सरकार में डिप्टी सीएम का पद संभाला. दरअसल सुशील मोदी ने लालू प्रसाद के बाद अब उनके दोनों पुत्रों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के सियासी भविष्य पर ग्रहण लगा दिया है. उन्होंने अकूत और अवैध जायदाद के मामले में लालू कुनबे की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. सुशील मोदी ने ठोस सबूतों के साथ लालू परिवार की ऐसी घेराबंदी की कि सीबीआई को हरकत में आना पड़ा. भ्रष्टाचार को धारदार मुद्दा बनाकर बीजेपी लालू और उनके सियासी उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव को अक्सर कटघड़े में खड़ा करती रही है. समय के साथ कुछ दूसरे लोग भी पोल खोल की इस मुहिम में शामिल हुए, लेकिन सुशील मोदी पिछले डेढ़ दशक से लालू के खिलाफ अनवरत झंडा उठाए हुए हैं.जिस चारा घोटाले के चलते लालू के राजनीतिक सफर पर विराम लगा,उसे अदालत तक पहुंचाने वालों में दूसरे लोगों के साथ सुशील मोदी की भी प्रत्यक्ष भागीदारी रही. सुशील मोदी पिछले चार महीनों के दौरान पटना से दिल्ली तक लालू प्रसाद के खिलाफ मामला उठाते रहे. बिहार में अपने दोनों बेटों को राजनीतिक शिखर पर पहुंचाकर लालू प्रसाद दूसरी जुगत में थे. लेकिन सुशील मोदी के ताजा वार ने लालू प्रसाद और उनकी भावी योजनाओं पर पूरी तरह से विराम लगा दिया है और लालू परिवार दोबारा से उसी राजनीतिक अंधियारे में चला गया है जहां वो साल 2015 से पहले था.

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