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‘आधी मुस्लिम आबादी’ को सुप्रीम कोर्ट ने दिया पूरा हक,संसद से कानून बनने तक ट्रिपल तलाक पर लगाई रोक

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पटना Live डेस्क. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर अपना फैसला सुना दिया है. इस मामले की सुनवाई कर रहे पांच जजों की पीठ ने 3-2 से तलाक के खिलाफ फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल तीन तलाक पर छह महीने की रोक लगा दी है और केंद्र से इसपर कानून बनाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया है कि अगर केंद्र सरकार छह महीने में कानून नहीं बना पाती है तो तीन तलाक पर रोक जारी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट में 3 जज इसे असंवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे,जबकि 2 जज इसके पक्ष में नहीं थे. इस केस की सुनवाई का नेतृत्व जस्टिस जेएस खेहर ने किया, जिन्होंने इस केस में 18 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया था. इस केस की सुनवाई 11 मई को शुरु हुई थी. इससे पहले ही सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि यह एक विचार करने का मुद्दा है कि मुसलमानों में ट्रिपल तलाक जानबूझकर किया जाने वाला मौलिक अधिकार का अभ्यास है, न कि बहुविवाह बनाए जाने वाले अभ्यास का. आज हुई सुनवाई जेएस खेहर समेत जस्टिस कुरिएन जोसेफ, आरएफ नरीमन, यूयू ललित और एस अब्दुल नज़ीर ने की.

दरअसल, शायरा बानो ने तीन तलाक के खिलाफ कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी. इस पर शायरा का तर्क था कि तीन तलाक न तो इस्लाम का हिस्सा है और न ही आस्था. उन्होंने कहा कि उनकी आस्था ये है कि तीन तलाक मेरे और ईश्वर के बीच में पाप है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कहता है कि ये बुरा है, पाप है और अवांछनीय है.

यह मुद्दा 16 अक्टूबर, 2015 में शुरु हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच द्वारा सीजेआई से कहा गया था कि एक बेंच को सेट किया जाए जो कि यह जांच कर सके कि तलाक के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के बीच भेदभाव किया जा रहा है. बेंच ने यह बात उस समय कही थी जब वे हिंदू उत्तराधिकार से जुड़े एक केस की सुनवाई कर रहा था. इसके बाद 5 फरवरी, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा था कि वे उन याचिकाओं में अपना सहयोग करें जिनमें ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं को चुनौती दी गई है. इसके बाद इस मामले पर कई सुनवाई हुईं जिनमें ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों को लेकर कोर्ट ने भी गंभीरता दिखाई.  केंद्र सरकार ने भी ट्रिपल तलाक कड़ा विरोध करते हुए कोर्ट से कहा कि ऐसी प्रथाओं को पर एक बार जमीनी स्तर पर विचार करने की आवश्यकता है. 16 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन मुद्दों की सुनवाई के लिए पांच जजों की बेंच का गठन किया था.

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