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सृजन घोटाला : CBI की चार्जशीट तैयार, IPS अमित जैन और पूर्व IAS अधिकारी के पी रमैया का नाम चार्जशीट में – सूत्र

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पटना Live डेस्क।। एक हजार करोड़ रुपए से अधिक के सृजन घोटाले से जुडी एक बड़ी खबर सामने आ रही है। सूत्रों के अनुसार घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने सृजन घोटाले की चार्जशीट तैयार कर ली है। चार्जशीट में आईपीएस अधिकारी अमित जैन और पूर्व आईएएस अधिकारी व सासाराम से JDU के टिकट पर चुनाव लड़ चुके के. पी. रमैया का नाम शामिल है। रमैया का नाम सामने आने के बाद सियासी इलाकों में हंगामा मचना तय है।

रमैया 2014 में वोलंटरी रिटायरमेंट लेकर वे JD-U में शामिल हुए थे। आँध्र प्रदेश के रहने वाले रमैया को बिहार के किसी समीकरण में फिट नहीं बैठने के बावजूद नितीश कुमार ने सासाराम से लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया था। हालाँकि रमैया चुनाव जीत नहीं पाए थे।

आईजी अमित, उनके रिश्तेदार भी घोटाले में शामिल 

भागलपुर के पूर्व डीआईजी व वर्तमान में पटना के आईजी (आधुनिकीकरण) अमित कुमार जैन और उनके एक रिश्तेदार के खाते में सृजन के खाते से लाखों रुपए डाले गए थे। आईजी जैन के अलावा भागलपुर के तत्कालीन जिला कल्याण पदाधिकारी अरुण कुमार की पत्नी इंदू गुप्ता, नाजिर महेश मंडल और पीरपैंती के बीडीओ चंद्रशेखर झा के बैंक खाते में भी लाखों रुपए आरटीजीएस के जरिए डाले गए। सूत्रों के मुताबिक घोटाले में साथ देने वाले अफसरों के निवेश पर सृजन दस फीसदी ब्याज देता था।

क्या है सृजन घोटाला

यह घोटाला एक एनजीओ, नेताओं, सरकारी विभागों और अधिकारियों के गठजोड़ की कहानी है। इसके तहत शहरी विकास के लिए भेजे गए पैसे को गैर-सरकारी संगठन के एकाउंट में पहुंचाया गया और वहां से बंदरबांट हुई। इस घोटाले के पीछे सृजन नामक एनजीओ की कहानी है। सृजन संस्था का पूरा नाम ‘सृजन महिला विकास सहयोग समिति’ है। मनोरमा देवी ने दो महिलाओं के साथ सृजन संस्था की शुरुआत की थी। वर्ष 1996 में सहकारिता विभाग में को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में संस्था को मान्यता भी मिल गयी। को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में सदस्य महिलाओं के पैसे जमा भी लिये जाते थे, जिस पर उन्हें ब्याज भी मिलता था। आपातकाल में महिलाओं को संस्था कर्ज भी देने लगी। खबरों के मुताबिक, 2007-2008 में सृजन को-ऑपरेटिव बैंक खुल गया। इसके बाद घोटाले का खेल शुरू हुआ। भागलपुर सरकारी खजाने का पैसा सृजन को-ऑपरेटिव बैंक के खाते में ट्रांसफर होता था, फिर इस पैसे को बाजार में लगाया जाता था। सृजन में स्वयं सहायता समूह के नाम पर कई फर्जी ग्रुप बने। उनके खाते खुले और इन खातों के माध्यम से नेताओं और अधिकारियों का कालाधन सफेद किया जाने लगा।

प्रभात खबर के मुताबिक, ‘सरकारी विभाग के बैंकर्स चेक या सामान्य चेक के पीछे ‘सृजन समिति’ की मुहर लगाते हुए मनोरमा देवी हस्ताक्षर कर देती थीं। इस तरह उस चेक का भुगतान सृजन के उसी बैंक में खुले खाते में हो जाते थे। जब भी कभी संबंधित विभाग को अपने खाते की विवरणी चाहिए होती थी, तो फर्जी प्रिंटर से प्रिंट करा कर विवरणी दे दी जाती थी। इस तरह विभागीय ऑडिट में भी अवैध निकासी पकड़ में नहीं आ पाती थी।’ मनोरमा देवी की मौत के बाद उनकी बहू प्रिया और बेटा अमित कुमार इस घोटाले के सूत्रधार बने। प्रिया झारखण्ड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनादि ब्रह्मा की बेटी हैं जो पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय के करीबी माने जाते हैं।

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