बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

Exposed – सावधान रहें! सतर्क रहें ! सोशल मीडिया सियासी दलों  के लिए ‘लगातार बजने वाला भोंपू’ बन गया है।’ 

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#चुनाव आयोग द्वारा सोशल मीडिया पर होने वाले चुनाव प्रचार को भी चुनावी खर्च में शामिल किया गया 

#एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हर एक व्यक्ति का कर्तव्य बनता है कि इस प्लेटफार्म का न दुरुपयोग करे न होने दे।

#लगातार बजने वाले ‘भोंपू’ की आवाज तभी सुनें, जब उसमें सच की महक ईमानदारी की खनक हो

#फर्जी और भ्रामक खबरो को इग्नोर तो कतई ना करे तत्काल उसको सोशल साइट्स के रिपोर्ट ऑप्शन का प्रयोग करे।

पटना Live डेस्क। लोकतंत्र के महापर्व यानी लोकसभा चुनाव 2019 खातिर सोशल मीडिया का दुरुपयोग अभी से ही अपने चरम पर पहुच गया है। बिना सिर पैर की खबरे, कयासों को खबर की शक्ल में प्रस्तुत करने की अंधी दौड़ का आलम यह है कि महज 5 मिनट के अंदर अपनी ही खबर का तिया पांच करते हुए पूरी बेशर्मी से “प्रवचन” देती शक्लो से आमदर्शक को घिन्न आने लगी है।

वही, बात अगर बिहार के संदर्भ में करे तो यहाँ हालात पल पल भयावह होते जा रहे है। कुछ तथाकथित नंबर एक नंबर 2 और पता नही क्या क्या यूट्यूब चैनलों ने तो सारी हदें ही लांघ दी है। होड़ लगी है कि कौन कितना बेशर्म होकर झूठी खबरे प्रसारित कर सकता है। इसी मुहिम के तहत कई सोशल मीडिया साइट्स पर धड़ल्ले से झूठी खबरें और अफवाहें फैलाई जा रही हैं।

भयावह हालात 

हद तो देखिए इन वेब पोर्टल्स और यूट्यूब चैनलों के स्वनाम धन्य प्रयलंकारी बकैती करते पराक्रमी योद्धाओं के मुख से टपकने वाले शब्दों को सुनिए और इनके हिंदी लिखने की महानता का अवलोकन कर लीजिए सारे भ्रम दूर हो जाएंगे। जो हिंदी के सामान्य शब्दो को भी सही नही (लिख) टाइप कर सकता वो सियासी एजेंडे समझाता दिखाई देता है।

ये वही “सुपारी पत्रकार” है जो वेब पोर्टल की आड़ में दुकानदारी कर रहे है। “ठेका” लेकर “सोशल मीडिया” को उक्त आदमी खातिर भोंपू की तरह इस्तेमाल कर रहे है। लोकतंत्र के लिहाज से यह अच्छा संकेत नहीं है। हाल ही में फेक न्यूज, दुर्भावना से भरे मैसेज और ट्रोलिंग की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर #यूट्यूब, #फेसबुक और #ट्विटर को जन जागरूकता अभियान चलाना पड़ रहा है।

एक उदाहरण देखिए

फेक न्यूज से  चुनाव आयोग भी परेशान हो गया था। हाल में सोशल मीडिया पर ऐसी खबर वायरल हुई, जिसमें लोकसभा चुनाव के डेट लीक होने का दावा किया गया। चुनाव आयोग ने ऐसी खबरों को निराधार बताते हुए दिल्ली पुलिस से श‍िकायत की।

दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल हुआ। अब बीते पांच साल में भारत में इंटरनेट डाटा काफी सस्ता हो गया है। यह हुआ है स्मार्टफोन के यूजर्स की संख्या बढ़ने से। ऐसी स्थति में डाटा के दुरुपयोग की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। इसकी अगली कड़ी है चुनाव में वोटर्स को बरगलाने की ताबड़तोड़ कोशिशें भ्रामक जानकारियां को जानबूझकर साझा किया जा रहा है।

आंकड़ों को समझे हालत का लगाए अंदाज़ा

अब जरा आंकड़ों पर नजर डाल लें। उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम और पीडब्ल्यूसी के एक अध्ययन के अनुसार, देश में डाटा का उपभोग वर्ष 2017 में 7,16,710.30 करोड़ एमबी रहा, जो 72.60 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़कर 2022 तक 1,09,65,879.30 करोड़ एमबी पर पहुंच जाएगा।

डेटा पर ज्यादा हो रहा है खर्च 

अध्ययन में यह भी कहा गया कि डाटा की कीमत पहले की तुलना में सबसे निचले स्तर पर आ जाने तथा देश में स्मार्टफोन की संख्या बढ़ते जाने से यह माना जा सकता है कि वीडियो ऑन डिमांड का बाजार सबसे अधिक लाभान्वित होने वाला है। देश में डाटा का उपभोग स्पष्ट तौर पर बढ़ रहा है। वर्ष 2013 तक औसत भारतीय उपभोक्ता मोबाइल डाटा से अधिक वॉयस सेवाओं पर खर्च करता था। अब यह स्थिति बदल गई है और भारतीय उपभोक्ता डेटा पर अधिक खर्च कर रहे हैं।

नोकिया मोबाइल ब्राडबैंड इंडेक्स 2018 के अनुसार, करीब 65 से 75 प्रतिशत डाटा वीडियो सेवाओं पर खर्च किया जाता है। जाहिर है, चुनाव में इसी का फायदा उठाने की कोशिश की जाएगी। क्योंकि वीडियो के जरिए बात कहने का असर और प्रसार अधिक होता है।

चुनाव खर्च में सोशल मीडिया का भी खर्च जुड़ेगा

चुनाव आयोग द्वारा सोशल मीडिया पर होने वाले चुनाव प्रचार को भी चुनावी खर्च में शामिल किया गया है। यह एक जरूरी कदम है, पर इसके दुरुपयोग को कैसे रोका जाएगा, यह बड़ा सवाल है। दरअसल तमाम ऐसे सोशल मीडिया से जुड़े वेब पोर्टल है जो बाकायदा “ठेका” ले कर व्यक्ति विशेष को लगातार सुर्खियों में रखने खातिर खबरो की शक्ल में PR कर रहे है।

गूगल, फेसबुक, ट्वीटर और यूट्यूब

इस दिशा में फेसबुक और ट्विटर के प्रयास स्वागतयोग्य हैं। फेसबुक, ट्विटर के साथ-साथ गूगल और यू-ट्यूब ने भी लिखित में यह आश्वासन दिया है कि उनके प्लेटफार्म पर प्रसारित किसी भी राजनीतिक विज्ञापन का सत्यापन किया जाएगा। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी कहा है कि सोशल मीडिया पर जाने वाले चुनाव संबंधी हर राजनीतिक विज्ञापन का सत्यापन चुनाव आयोग से कराना जरूरी होगा।

सावधान और सतर्क रहें

दरअसल, एक जिम्मेदार न्यूज़ पोर्टल होने के नाते पटना Live अपने पाठकों से निवेदन करता है कि सियासी व्यग्य से आगे बढ़कर सोशल मीडिया का इस्तेमाल जब सामाजिक दूरियों को बढ़ाने के लिए एक हथियार की तरह होने लगे तो इसके नुकसान चुनाव परिणामों के बाद भी होतेे हैं और होंगे। वक्त आ गया है कि हमें चंद पल ठहरकर सोचने की जरूरत है। इन्फॉर्मेशन वार के इस दौर में सोशल मीडिया को हथियार के मानिंद इस्तेमाल करने वालो के प्रयास को कुंद करने और सावधान रहने की जरूरत है। क्योकि सावधानी हटेंगी तो नुकसान हमरा आपका और इस मुल्क का होगा, हमारी अगली पीढ़ी को होगा।

ये तमाम कवायदें स्वस्थ और पारदर्शी व्यवस्था को अमल में लाने के लिए हैं। यह होना भी चाहिए। लेकिन, एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक के चलते हर एक व्यक्ति का कर्तव्य बनता है कि इस प्लेटफार्म का न दुरुपयोग करे न होने दे। ‘लगातार बजने वाले भोंपू’ की आवाज में जब सच की महक और ईमानदारी की खनक हो तभी उसको तवज्जो दें।

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