बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

बिहार में शराब न मिला तो स्नेक बाइट से पूरा करने लगा नशा, बेहोश होने पर खुली पोल

304

फरोज आलम, संवाददाता

पटना Live डेस्क। बिहार में पूर्ण शराबबन्दी लागू होने के बाद से नशेड़ियों द्वारा नशे ख़ातिर एक से एक उपाय किये गए किसी ने फिनायल पी लिया तो किसी ने साबून निगल लिया लेकिन बिहार के समस्तीपुर जिले के वारिसनगर प्रखंड के सारी गांव निवासी राणा तपेश्वर सिंह ने तो ऐसी हरकत कर दी है जो चर्चा का न केवल विषय बन गया है बल्कि लोगो के होश फाख्ता हो गए है। हुआ ये की शराब के नशे के आदी एक किसान को जब शराब मिली बंद हो गई तो उसने नशे की अपनी खुराक के लिए कोबरा ही पाल लिया और जब उसे नशे की जरूरत महसूस होती तो वह कोबरा से डसवा कर मस्त हो जाता था।


जी हां,यह कहानी किसी फिल्म या  टीवी सीरियल की नहीं है। बल्कि,जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर खेतीबारी से जीवन-यापन करने वाले वारिसनगर प्रखंड के सारी गांव निवासी राणा पतेश्वर सिंहकी है.राणा को कोबरे के विष का ओवरडोज होने पर परिवार वालों ने उसे इलाज के लिए तीन दिन पहले सदर अस्पताल में भर्ती कराया। वहां डॉक्टरों ने उसे स्नेक बाइट की 18 वायल सूई दी,तब जाकर उसकी जान बच सकी।

                      राणा की नशे ख़ातिर कोबरा से डंसवाने  की करतूत आग की तरह इलाके में फैल गई फिर क्या था। इलाके के लोगबाग उनके घर पहुचने लगे और उनसे मिलने को उतावले हो गए। इलाके के अच्छे खेतिहर राणा के पिता राजेश्वर प्रसाद सिंह जमींदार कहलाते हैं। राजेश्वर प्रसाद सिंह बताते हैं कि परिवार के लोगों को राणा द्वारा कोबरा से डसवाने की जानकारी नहीं थी। 6 अगस्त को वह बेहोश हुए तो लोगों को इस बात की जानकारी मिली।

35 साल से पी रहा था शराब

मामले के बाबत तपेश्वर कहते हैं कि मैं पिछले 35 साल से लगातार शराब पी रहा था। शराबबंदी के बाद नशे की तलब पूरी करने में परेशानी होने लगी। कोई और रास्ता न दिखा तो कोबरा से डसवाने लगा। कोबरा के जहर से नशा का अनुभव होता है।एक बार डसवाने से पूरी बोतल शराब का नशा चढ़ता था और इससे मुंह से गंध भी नहीं आती थी।

कोबराझोपड़ी में छिपाता था

तपेश्वर ने बताया कि घर वालों को कोबरा के जहर वाली बात पता न चले इसके लिए सांप को मैं झोपड़ी में छिपाता था। मैंने सांप को प्लास्टिक के एक डब्बे में सांप को रखा था और उसमें सुराख कर दिया था ताकि सांप को सांस लेने के लिए हवा मिलती रहे। जब मुझे नशे की तलब होती मैं सबकी नजर से बचकर झोपड़ी में चला जाता था। डब्बे का ढक्कन खोलकर मैं सांप की ओर दाएं हाथ के अंगूठे को बढ़ाता था। कोबरा इसी अंगूठे पर डसता था। शरीर में जहर जाते ही मेरी बेचैनी कम हो जाती थी।

जीवन खतरे में डालने का नही अफसोस 

24 घंटे पहले हॉस्पिटल से घर लौटे तपेश्वर ने कहा कि अब अच्छा फील हो रहा है। अभी हॉस्पिटल में मिली दवाए खा रहा हूं। उम्मीद है जल्द ही ठीक हो जाऊंगा।

Comments are closed.