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BiG News – यह दीपक चौरसिया पर हमला नही शाहीनबाग वालो तुम उस संविधान पर हमलावर हुए जिसकी दुहाई दे तुम 40 दिनों से विरोध कर रहे हो,सोचो ?

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  • मीडिया पर हमले क्यो ? संविधान की दुहाई देकर संविधान को ही लज्जित करना 
  • शाहीन बाग में रिपोर्टिंग करने पहुंचे दीपक चौरसिया पर भीड़ ने किया हमला कैमरामैन के साथ भी मारपीट

पटना Live डेस्क। लोकतंत्र में विरोध करना आवाम का अधिकार है, विरोध होना चाहिए लेकिन जिस तरह से शाहीन बाग में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के पहरुओं पर चुन चुन कर हमले किये जा रहे है। ये खुद ही शाहीन बाग की साज़िश का सच खोंल रहा है। आप विरोध करे आपका अधिकार है। पर हमला करेंगे ? तो आप खुद को सवालों के घेरे में ले आएंगे ?

ये ठीक ऐसा है जैसे आप सविधान की दुहाई देकर विरोध करने का अधिकार रखते है और आप कर भी रहे है। ठीक इसी तरह इस मुल्क का संविधान हर आमो-खास को स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वो किसी भी मुद्दे, आंदोलन और प्रदर्शन पर अपने विचार रखे। क्या यह गुनाह है कि तुम हमलावर हो रहे हो ?

मेरा आप से बस एक ही सवाल है ?

यह दीपक चौरसिया पर हमला नही शाहीनबाग वालो ये तुम उस संविधान पर हमलावर हुए जिसकी दुहाई दे तुम 40 दिनों से विरोध कर रहे हो, सोचो ?

घटनाक्रम – शाहीनबाग का संकट

दिल्ली के शाहीन बाग में करीब 40 दिनों से नागरिकता कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन चल रहा है। लेकिन भीड़ ने यहां गुरुवार को रिपोर्टिंग करने पहुंचे न्यूज नेशन के और देश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया पर हमला कर दिया। इतना ही नहीं दीपक चौरसिया के साथ मौजूद कैमरामैन के साथ भी मारपीट हुई।

खुद के साथ हुए दुर्व्यवहार और हिंसात्मक कार्रवाई पर दीपक के शब्द उनके दुख को व्यक्त करते है .. सुनिए उस वीडियो में उन आवजो को जो पहले तो उत्तेजित करने वाली है फिर छोड़ दे- छोड़ दे कहती है …

दीपक चौरसिया ने वीडियो ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने लिखा, सुन रहे हैं कि संविधान खतरे में है, सुन रहे हैं कि लड़ाई प्रजातंत्र को बचाने की है! जब मैं शाहीन बाग की उसी आवाज को देश को दिखाने पहुंचा तो वहां मॉब लिंचिंग से कम कुछ नहीं मिला।

क्या मीडिया पर हमला – सहिष्णुता है ? 

शाहीनबाग का संकट – मीडियाकर्मियों पर हमले का बढ़ते इतिहास के पीछे का सच भी लगातार नए सवाल खड़े कर रहा है। भारत के असहिष्णु (Intolerant India) होने की बात कह कर पूरा मुल्क सर पर उठा लेने वालों क्या तुम इन्टॉलरेंट हो ? 

महज चंद शब्दो (कथित विरोध वाले शब्द) को झेल नही पाते और खुद को बौद्धिक और न जाने क्या क्या उपाधि दे चुके है। पर क्या सच मे हो ?

यह किसी पत्रकार पर पहला हमला नही है। वो भी जाहिलो या आतंकियों द्वारा नही बल्कि देश के उन बौद्धिकता के स्वघोषित संस्थानों जेएनयू ,जामिया और तथाकथित प्रगतिशील विश्वविद्यालयों में हुआ है। आप लोगो की लगाई सिखाई आग अब देश के हर कोने तक फैल गई है। असर स्पष्ट है नागरिकता कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में मीडियाकर्मियों के साथ बदसलूकी की खबरें सुर्खियो में है।  जामिया में प्रदर्शन के दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों ने एबीपी न्यूज की महिला रिपोर्टर के साथ बदसलूकी की थी।

आप कहते है देश के संविधान की रक्षा करने ख़ातिर आप मुल्क बचाने ख़ातिर आखरत तक लड़ेंगे ? लड़िये ये आपका का हक है पर क्या दूसरे की संवैधानिक अधिकारों का गला घोंट कर लड़ेंगे? सोचिएगा

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