बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

लोकसभा 2019 : हाल ही में भाजपा छोड़ने वाले नेताजी पूर्णिया से कांग्रेस का टिकट पाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार

247

आम चुनावों में टिकट के लिए अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाना कोई नई बात नहीं है। हमारे लोकतंत्र में यह खेल वर्षों से चला आ रहा है लेकिन अगर टिकट पाने की लालसा में आप लोकतंत्र की मर्यादा और सिद्धांतों को ताक पर रखकर किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहें वैसी स्तिथि से न ही आप समाज का भला कर पाएंगे न ही उस दल का जिसके लिए आप आलाकमानों की चरणवंदना कर टिकट हासिल करने में लगे है।

बिहार की राजनीति में बेहद ही महत्वपूर्ण माने जाने वाले पूर्णिया लोकसभा सीट पर इस बार कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। महागठबंधन में पूर्णिया सीट कांग्रेस के खाते में लगभग जाती दिख रही है। आपको याद होगा मीडिया के सामने एक पूर्व सांसद सिद्धांतो की दुहाई देते हुए भाजपा के कूचे से बाहर निकले थे । पूर्णिया की राजनीति पर नज़र रखने वाले सियासी पंडितो ने तो तब यह भी कहा था कि पूर्व सांसद महोदय ने बड़ी चालाकी वैसे समय में अपनी पार्टी छोड़ी है जब यह तय है कि एनडीए की और से पूर्णिया लोकसभा सीट पर जदयू ही चुनाव लड़ेगा।

जानकार तो यह भी बताते है पूर्व सांसद साहब ने पहले ही हांथ वालों (Congress) से डील कर भगवा पार्टी (BJP) का साथ छोड़ा है। हालाँकि सबसे दिलचस्प बात यह है कि अभी तक नेताजी ने कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता तक नहीं ली है बावजूद इसके उनके समर्थक पूरे पूर्णिया में नेताजी को कांग्रेस का लोकसभा प्रत्याशी घोषित कर चुके है।कांग्रेस से जुड़े सूत्र बताते हैं जब से लोकसभा चुनावों की रणभेरी बजी है तब से पूर्व सांसद साहब बिहार कांग्रेस के आला नेताओं के आवभगत में दिन-रात लगे हैं। चर्चा तो यह भी है कि अगर आवभगत से बात नहीं बनी तो लोकतंत्र की सीढ़ी चढ़ने के लिए अर्थतंत्र का भी नेता जी सहारा ले सकते हैं।

‘माय’ समीकरण का गणित

पूर्णिया की 60 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की और 38 प्रतिशत मुस्लिमों की है, यहां यादव वोट भी बहुतायत में है,यादव और अल्पंख्यक मतों की गोलबंदी पर ही हार-जीत का फैसला निर्भर है, हालांकि, अतिपिछड़ी जातियां भी एक ताकत के तौर पर यहां स्थापित हैं जो किसी की भी पार्टी के गणित को फेल कर सकती है।

ओबीसी या मुस्लिम उम्मीदवार के जीतने की सम्भावना अधिक

2014 लोकसभा से अलग बदले सियासी समीकरण में एनडीए या महागठबंधन के लिए कोई मुस्लिम या ओबीसी उम्मीदवार मुस्लिम- यादव और अतिपिछड़े वोटरों को लामबंद करने में सक्षम हो सकता हैं। पिछला लोकसभा चुनाव जदयू और भाजपा ने अलग-अलग लड़ा था इसका सीधा फायदा पिछड़ी जाती से आने वाले जदयू प्रत्याशी संतोष कुशवाहा को मिला था। इस बार जदयू और भाजपा साथ लड़ रहे हैं। पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम-यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। वैसे में खासकर एनडीए को मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लेने के लिए खासी मसक्कत करनी पड़ सकती है वहीँ अगर कांग्रेस की और से कोई पिछड़ा या मुस्लिम चुनाव लड़ता है तो उसके जीतने की सम्भावना अधिक रहेगी।

Comments are closed.