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Super Exclusive – बाहुबली अनंत सिंह है लोकतंत्र में विरले जनप्रतिनिधि “संत” क्यो ? ये कहने का हमारे पास पुख़्ता तर्क हमें ज़मीनी हकीकतों ने दिया है ?जानिए

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पटना Live डेस्क। बिहार की सियासत के सबसे बड़े बाहुबलियों और दबंगो में शुमार लदमा निवासी अनन्त सिंह उर्फ छोटे सरकार कम से कम सूबे में किसी परिचय के मोहताज नही है। सत्ता पक्ष से जुड़े हो या विरोध में हो चर्चा में बने रहते है। बात वर्त्तमान दौर की करे तो लोकतंत्र के महापर्व आमचुनाव की तारीखों के घोषणा पहले ही अनन्त का मुंगेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने के ऐलान ने “सियासत को सहमा” दिया। लेकिन बाहुबली विधायक अनन्त सिंह का एक अन्य रूप भी है जो उन्हें सियासी भीड़ से लग करता है। भले उनपर कानूनी धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज है। जनश्रुतियों के दौरान तमाम आरोप प्रत्यारोप लगते रहे है। विरोधियों को नेस्तनाबूत करने खातिर षडयंत्रो और खुरेजी साज़िशे रचने का संगीन आरोप चस्पा किया जाता हो पर क्षेत्र की जनता उन्हें काम करने वाला विधायक मनाती है।

दरअसल, मोकामा के निर्दलीय विधायक अनंत के मुंगेर से लोकसभा चुनावी महासंग्राम में उतरने का बहुत शोर है। शोर होना भी चाहिए क्योंकि अगर यह महज चुनाव लड़ने का ऐलान मात्र होता तो शायद इतना शोर न होता। लेकिन यह शोर तो सूबे के सत्ता शीर्ष पर काबिज को खुलेआम वाया करीबी ललकार ने की वजह से है। अनन्त द्वारा मुंगेर में सत्तापक्ष से जुड़े हैवीवेट जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को खुल्लम खुल्ला चुनौती देने से सियासी गलियारों में इसे अप्रत्यक्षरूप से सीधे सीधे सीएम नीतीश कुमार को ललकारने सरीखा बताया जा रहा है। इसके पीछे तमाम तर्क भी दिए जा रहे है। 2015 के विधानसभा चुनाव में अनन्त सिंह द्वारा सत्तातंत्र के विरुद्ध जेल में कैद होने के बावजूद बड़ी जीत दर्ज करने को आधार बनाकर कर तमाम समीकरण बनाये और बिगाड़े जा रहे है। आइये जानते है मुंगेर लोकसभा का सच

मुंगेर लोकसभा क्षेत्र

मुंगेर लोकसभा क्षेत्र 3 जिलों के 2-2 विधानसभा क्षेत्रों
से मिलाकर बनाया गया है। पटना जिले के 2 विधानसभा क्षेत्र बाढ़ विधानसभा क्षेत्र जो अनंत की जन्मभूमि है तो दूसरा मोकामा विधानसभा उनकी सियासी कर्मभूमि है। वही लखीसराय जिले के 2 विधानसभा क्षेत्र लखीसराय और सूर्यगढ़ा तथा मुंगेर जिले के मुंगेर और जमालपुर को समाहित कर बनाया गया है।

चुनाव में यहाँ का सामाजिक समीकरण काफी मायने रखता है। मुंगेर लोकसभा में ब्रह्मर्षि और धानुक-कर्मी मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर है। लेकिन सियासी समीकरणों पर सूक्ष्म नज़र रखने वालों का दावा है दो पहलुओं को उजागर करता है कई ब्रह्मर्षियों की सख्या ज्यादा होने का दावा करते है तो कई धानुक-कुर्मी की संख्या का। लेकिन इसके इतर भी सामाजिक समूह है जो अपनी जोरदार और असरदार उपस्थिति दर्ज कराते है जैसे यादव,राजपूत, मुसलमान, अतिपिछड़ा-पिछड़ा इत्यादि।

मुंगेर लोकसभा का गणित

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या 27,17,527 है, जिसमें से 78 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है और 21 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं। मुंगेर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं। 1952, 1957, 1962, 1971 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की लेकिन 1977 के चुनावों में जनता पार्टी ने उसके विजय रथ को रोक दिया था और श्री कृष्ण सिंह यहां से एमपी बने थे। साल 1980 और 1984 में यहां फिर से कांग्रेस का ही राज रहा था। 1989 के चुनाव में यहां जनता दल जीती थी तो वहीं 1991 में यहां सीपीआई का खाता खुला और ब्रह्मानंद मंडल यहां से सांसद बने।

साल 1996 के चुनावों में एक बार फिर से सांसद की सीट ब्रह्मानंद मंडल को नसीब हुई लेकिन इस बार उन्होंने समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। साल 1998 के चुनावों में यहां राजद का शासन रहा लेकिन इसके एक साल बाद हुए चुनाव में ये सीट फिर से ब्रह्मानंदन मंडल के पास चली गई लेकिन इस बार उन्होंने जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीता था। साल 2004 के चुनाव में एक बार फिर से यहां राजद जीती लेकिन साल 2009 के चुनाव में जेडीयू ने उससे अपनी हार का बदला ले लिया और राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह यहां से एमपी चुने गए लेकिन साल 2014 के चुनाव में यहां बाजी पलट गई और लोजपा ने यहां जीत के साथ खाता खोला और वीणा देवी यहां से सांसद चुनी गईं।

बाढ़ मोकामा चौक चौराहा

बाढ़ और मोकामा की बात करे तो चौक चौराहों पर भी छोटे सरकार के मुंगेर से चुनावी संग्राम में उतरने को लेकर चर्चों का बाजार सरगर्म है। लोगो के दावे के अनुसार बाढ़ और मोकामा में अनन्त सिंह को अपेक्षा के अनुरूप सफ़लता मिल सकती है क्योंकि अनन्त सिंह भले ही बाहुबली हो या काननू की धाराओं में निषिद्ध लेकिन इसके उलट भी उनकी एक अन्य छवि है जो उन्हें लोकतंत्र के विरले जनप्रतिनिधि के तौर पर पहचान दिलाती है।

अनंत जनप्रतिनिधि के तौर पर है संत

मोकामा के निर्दलीय विधायक अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार की बहुबली छवि के बावजूद उनमें कुछ बेहद अनोखी और सियासी जमात मे विरले मिलने वाली खूबियां है जो लोकतंत्र में उन्हें संत बनाती है।

                             अनन्त सिंह उर्फ छोटे सरकार मोकामा के तीसरी बार विधायक निर्वाचित हुए है। पर आज तक उनपर विधायक फंड में घपला घोटाला या कमीशनखोरी का आरोप नही लगा है।साथ ही विधायक पर विकासकार्यों में भी किसी प्रकार की कमीशनखोरी का आरोप नही है। साथ ही उनके फण्ड से कराए गए विकास कार्यों में “क्वालिटी” स्पष्ट दिखाई देता है।कार्यो में गुणवत्ता साफ झलकता है। गली कूचों तक मे सरकारी योजनों और कार्य दिखाई देता है।चोरी- डकैती, फसल लूट और छेड़खानी बलात्कार जैसी घटनाओं का न होना भी उनके प्रभाव को सफल बनाता है। रंजिशन हत्या जैसे अपराध यदा कदा होते रहते है। क्षेत्र में गवई आपसी भिड़ंत को खुद पहल कर निपटा देते है।
टाल क्षेत्र भी अमूमन शांत ही रहता है। इलाक़े में फसल लूट की वारदात गुजरे जमाने की बात हो गई है। यानी लब्बोलुआब यह कि बतौर एक लोकतांत्रिक जनप्रतिनिधि अनन्त सिंह के व्यक्तिगत जीवन को हटा दे तो दाग नही दिखाई देता है। बिना किसी लागलपेट के क्षेत्र की जनता भले ही उनका विरोध व्यक्तिगत कारणों से करे पर विकास के मुद्दे पर उनपर सवाल उठाने से कतराती नज़र आती है। वही समर्थक तो दावा करते है कि विधायक जी जनता के बीच रहते है और हर परिस्थिति में भलाई का प्रयास करते है।

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