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पुत्र मोह में लड़ाई हारे लालू!

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पटना Live  डेस्क. कभी राजनीति के किंगमेकर रहे लालू आज फिर से वहीं खड़े हैं. जिस सत्ता को पाने की खातिर उन्होंने सारी तिकड़में लगाईं दोनों बेटों को राजनीति का पाठ पढ़ाने के लिए अपने दल के वरिष्ठ नेताओं को भी पीछे कर दिया आज वही लालू एक बार फिर हाशिए पर खड़े हैं. सत्ता चली गई और जाहिर है समय के साथ-साथ रुतबा भी जाएगा. ये राजनीति नब्बे के दशक वाली राजनीति नहीं है जहां लालू की आवाज पर बिहार की सत्ता तय होती थी. ये वर्तमान दौर की राजनीति है जिसका उदाहरण वो सत्ता गंवाने के बाद महसूस कर चुके होंगे. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए जिस लालू ने महागठबंधन बनाया था आज वो छिन्न-भिन्न हो चुका है. नीतीश कुमार दोबारा से बीजेपी के पाले में चले गए हैं और लालू प्रसाद एक बार फिर राजनीतिक रुप से तन्हा.लालू 20 महीने भी सत्ता संभालकर नही रख पाए. पुत्र मोह में लालू यह राजनीतिक लड़ाई हार बैठे. 80 विधायक होने के बाद भी लालू जहां साल 2015 से पहले थे वहीं पहुंच गए.

महागठबंधन सरकार बनने के बाद लालू ने छोटे बेटे तेजस्वी को डिप्टी सीएम तो बड़े बेटे तेज प्रताप को स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी दिलवायी थी. अपने दोनों बेटों को राजनीति का माहिर खिलाड़ी बनाने के दौरान लालू ने किसी की नहीं सुनी. लालू के उपर परिवारवाद का आरोप लगा लेकिन उन्होंने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया. जब तेजस्वी पर आरोप लगे तो लालू ने दमदार तरीके से उनका बचाव किया और इस्तीफे की बात को साफ खारिज कर दिया. पुत्र मोह में अंधे लालू ने महागठबंधन के मुखिया के संकेतों को भी समझने की कोशिश नहीं की और आखिरकार उनको इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. भाजपा के तथ्यपरक हमले को भी लालू ने राजनीतिक साजिश कहकर नजरअंदाज किया.

सीबीआई छापेमारी तक को लालू प्रसाद ने गंभीरता से लेने की कोशिश नहीं की. बड़ी बेटी मीसा भारती भी बेनामी संपत्ति के मामले में बुरी तरह उलझी हैं. परिवार मोह में लालू ने बच्चों को यह तक नहीं सिखाया कि संपत्ति की सीमा होती है और राजनीतिक जीवन जीने वाले लोगों को इसका खासा ध्यान रखना चाहिए. इसी मोह के चलते इन दिनों लालू का पूरा परिवार बुरी तरह घिरा हुआ है.

लालू का परिवार प्रेम

लालू प्रसाद का परिवार से प्रेम कोई पहली बार सामने नहीं आया है. चारा घोटाले में 1997 में जेल जाने के पहले भी उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को बिहार की सत्ता सौंप दी थी. लालू प्रसाद जनता दल में रहते हुए 1990 और 1995 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. इसी दौरान चारा घोटाला में फंसने के बाद वह जेल चले गए.

जमानत पर बाहर निकले तो जनता दल से अलग होकर उन्होंने 5 जून 1997 को राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया और अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा बन गए. तब से लेकर 2005 तक वह बिहार की सत्ता पर काबिज रहे. 2005 के विधानसभा चुनाव में पहली बार लालू को बेदखल होना पड़ा. इसके पहले वह केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री बनाए गए थे.

कांग्रेस से लालू का रिश्ता 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले तक बेहतर रहा, लेकिन चुनाव के दौरान सीट बंटवारे को लेकर दोनों के संबंध खराब हो गए. यहीं से लालू के बुरे दिन शुरू हो गए, जो मनमोहन सरकार के बेदखल होने तक जारी रहा.

नवंबर 2015 में बिहार में महागठबंधन सरकार की सत्ता में आते ही लालू की पुरानी हनक लौट आई. 22 विधायकों वाली पार्टी की संख्या 80 तक पहुंच गई. इसके बावजूद पुत्रमोह में लालू ऐसे फंसे कि सत्ता हाथ से चली गई.

 

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