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महाअष्टमी के अवसर पर जानें क्या अखंडवासिनी मंदिर की कहानी, जहां हर मनोकामना होती है पूरी

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पटना Live डेस्क। पटना में यूं तो मां भगवती की आराधना के लिए कई केंद्र हैं, जिनका अपना अलग महत्‍व भी है। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे मंदिर के बारे में, जहां एक खास अखंड ज्‍योत बीते 108 वर्षों से जल रही है। और यह मंदिर 150 साल पुराना है।

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हम बात कर रहे हैं पटना में गोलघर के पास स्थित जागृत अखंडवासिनी मंदिर की, जहां नवरात्र की पूजा बेहद खास मानी जाती है। वो इसलिए कि यहां बीते 108 वर्षों से कामाख्या की अखंड ज्योत जल रही है। जागृत अखंडवासिनी मंदिर की यह ज्योत मामूली नहीं माता की ज्योत है। इसे असम के कामाख्या से यहां लाया गया है। वही कामाख्या शक्तिपीठ, जो  51 शक्तिपीठों में से एक है और सबसे पुराना शक्तिपीठ है। अगर आप पटना में हैं और तो इस मंदिर का दर्शन जरूर करें। मान्‍यता है कि ऐसा करने से आपको एक ऐसी पॉजिटिव एनर्जी मिलती है, जो शत्रुओं की बुरी नजर से आपकी रक्षा करती है।

वैसे इस मंदिर की स्‍थापना 150 साल पहले अंग्रेजों के आतंक से बचने के लिए ही की गई थी। वह भी गोलघर के बगल में। तभी से इस मंदिर का नाम मनोकामना मंदिर भी पड़ा। यहां भक्त मां को खड़ी हल्दी और फूल चढ़ाते हैं। जिनकी भी मन्नत पूरी होती है, वो अपनी सुविधानुसार घी और तेल का दीया जलाते हैं। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहां जल रहा अखंड दीपक है। नवरात्र के मौके पर भी घी या तेल के नौ दीपक जलाने की परंपरा है।

जागृत अखंडवासिनी मंदिर पटना का शायद पहला मंदिर होगा, जहां तीन पीढ़ियों से एक ही परिवार के लोग माता की सेवा में लगे हैं। मौजूदा व्यवस्थापक व पुजारी विशाल तिवारी ने की मानें तो सन 1914 में उनके बाबा आमी स्थान निवासी आयुर्वेदाचार्य डॉ। विश्वनाथ तिवारी ने इस अखंड दीप को कामाख्या से लाकर यहां स्थापित किया था। तब से दो अखंड दीप मंदिर में लगातार जल रहे हैं। एक में घी और दूसरे में सरसो के तेल का प्रयोग होता है। 1914 में झोपड़ीनुमा यह मंदिर आज पटना के प्रमुख शक्ति उपासना स्थलों में एक है।

श्री श्री अखंडवासिनी मंदिर में मां काली की प्रतिमा के साथ माता की बंगलामुखी प्रतिमा स्थापित है। नवरात्र में यहां सात हल्दी, नौ लाल फूल व सिंदूर चढ़ाने की परंपरा है। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। नवरात्र में सप्तमी, अष्टमी और नवमी हजारों श्रद्धालु दर्शन व पूजन को आते हैं। हर दिन त्रिकाल आरती भी होती है।

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