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Super Exclusive-जिंदा शख्स के कफ़न का भी पैसा निगल लेते है दलाल! हुजूर फिर भी कहते है बिहार में हैं सुशासन सरकार

बेतिया में जिंदा शख्स का कफन अनुदान निगल गए तो मधेपुरा में कुदरत का निज़ाम पलटते हुए एक शख्स को 4 महीने में ही 2 बार मार कर राशि गबन कर लिया

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पटना Live डेस्क।आप सोच रहे होंगे..जिंदा शख़्स और कफ़न .. भला ये क्या बात हुई ? आप अगर ये सोचते भी है तो भी बेकसूर है, क्योकि आप ऐसी त्रासदी से दूर है महफूज़ है। दरअसल सूबे में गरीबी व ग़ुरबत का ये आलम है कि मृतक को कफन-दफ़न व अंतिम संस्कार भी उसको उसके धर्म के रीति रिवाजों के तहत नसीब नही हो पाता है।

                    ख़ैर,राज्य सरकार की वर्ष 2007 में शुरू हुई कबीर अंत्येष्टि योजना एक सरहानीय और सामाजिक सरोकार के नज़रिए से बेहद अच्छी पहल है। इंसानियत का तकाजा भी यही कहता है कि इंसान को उसके आस्था के अनुसार कफ़न दफ़न और संस्कार का हक़ है।

कबीर अंत्येष्टि योजना या राशि की बंदरबाट

किसी भी मत और संप्रदाय के गरीबी रेखा से नीचे के शख्स की मृत्यु पर उसके शव का अनादर या बेहुरमती न हो इसके ख़ातिर बिहार सरकार द्वारा वर्ष कबीर अंत्येष्टि योजना 2007-08 से लागू है। इस योजना के तहत बीपीएल (Below Poverty Line) (हिंदी में इसका मतलब है-गरीबी रेखा से नीचे) परिवार के किसी भी उम्र के सदस्य की मृत्यु की स्थिति में अंत्येष्टि क्रिया के लिए आश्रित या निकटस्थ संबंधी को अनुदान के तौर पर 3000 रुपये नकद राशि का भुगतान किया जाता है।

पंचायत व नगर परिषद के वार्ड के लिए सात मृतकों के आश्रितों को अनुदान राशि भुगतान के लिए 21 हजार नकद रखने का निर्देश है। जबकि नगर पंचायत के वार्ड के लिए पांच मृतकों के आश्रितों को अनुदान राशि भुगतान के लिए 15 हजार नकद रखने का निर्देश है।

लेकिन,सूबे का दुर्भाग्य तो देखिए दरअसल काफी लंबे दौर से हुक्मरान (नेता-अफसर) और आवाम के बीच कौन कितना ज्यादा करप्ट है कि रेस जारी है।इस रेस के खिलाड़ियों की गिद्ध नज़र कफ़न पर भी लग गई और नतीजा है-बेतिया के आशिक बैठा-जो विगत 10 सालो से अपने शरीर पर अपनी लाश ढोये जा रहे है।

मुर्दा बनाया फिर कफ़न का पैसा निगल गए

इस बुजुर्ग का नाम आशिक बैठा है।उम्र 65 साल है।यह आप को जिंदा दिखाई दे रहे है पर ठहरिये सरकारी कागजों में 10 वर्ष पहले इनकी मौत हो चूकी है। पिछले 10 वर्षों से खुद को जिंदा साबित करने की कवायद में आशिक बैठा तमाम कोशिशे कर चुके है। खुद को अबतक जिंदा(खबर लिखें जाने तक) तो साबित नही कर पाए है पर अनजाने में इन्होंने कफ़न चोर गिद्धों के खेल को उजागर कर दिया है।

दरअसल,आशिक बैठा बेहद गरीब है और सरकार के नियम के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे के नागरिक है।अतः बीपीएल ख़ातिर सरकार की विभिन्न योजनाओं ख़ातिर जब आशिक बैठा ब्लॉक से लेकर अन्य सरकारी दफ्तरों में दरयाफ्त कर रहे थे तो इनको जानकारी मिली कि इनको जन्नतनशीं (स्वर्गवासी) हुए तो वर्षो गुजर चुके है।

ख़ैर, बीपीएल योजनों को छोड़ अब आशिक बैठा को यह साबित करना था कि वो जिंदा है। इस कवायद में जब सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए जिलाधिकारी के दफ्तर तक दरयाफ्त कर रहे थे,को यह जानकारी मिली कि वो न केवल ये मर चुके है बल्कि दलाल रूपी गिद्धों ने बकायदा सरकार की कबीर अंत्येष्टि योजना तहत उसके नाम पर कफ़न-दफ़न ख़ातिर 3 हजार रुपये निर्गत करा इंसानी शक्ल वाले गिद्ध निगल चुके है।

4 महीने के अंदर एक ही शख्स 2 बार मरा

बेतिया के आशिक बैठा तो जिंदा होकर भी कागजों में मर चुके है,लेकिन मधेपुरा में तो गिद्धों ने तो सरकारी राशि गबन ख़ातिर कुदरत के निज़ाम को ही झुठला दिया। जानकारी के अनुसार जिले के लालपुर सरोपट्टी पंचायत के वार्ड नंबर 9 के सियाराम कामत की मौत 12 नवंबर 2017 को हुई थी।उस समय परिजनों को अंत्येष्टि के लिए कोई राशि नहीं दी गई। खैर, परिजनों ने इधर उधर से जुगाड़ कर अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन अंत्येष्टि ख़ातिर सरकारी अनुदान की निकासी हुई।

पहली बार यानी सियाराम कामत की मौत 12 नवंबर 2017 की तारीख पर पत्नी कारी देवी के हस्ताक्षर से राशि की निकासी कर ली गई। यानी पहली बार तो वास्तविक मौत की तिथि पर ही राशि की निकासी की गई। फिर,पुन: 31 मार्च 2018 को फिर से सियाराम कामत की कागजों पर मौत हुई। इस बार बेटा हरि कामत के निशान से रुपयों की निकासी हो गई।

लेकिन हद तो देखिए सियाराम कामत 4 माह में 2 बार मरे दोनों ही बार कबीर अंत्येष्टि योजना से राशि की फर्जी निकासी हुई पहली बार परिवार को  न तो राशि मिली न ही कोई जानकारी। हद तो देखिए दोनों ही बार फर्जी निशान से रुपयों की निकासी कर गिद्धों ने कफन के पैसे की बंदरबांट कर ली।

यह दोनों खुलासे सरकारी अनुदान राशि की लूट की महज बानगी भर है, अंदाज़ा लगाइए बिहार जैसे गरीब राज्य में जहां गरीबी से आज़िज़ आकर गाँवो से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र या यूं कहें कि देश के कोने कोने में पलायन होता है। सरकारी योजनों के बंदरबाट में माहिर और घपले घोटाले के माफिया ने 2007 से समाज कल्याण विभाग,बिहार सरकार की इस योजना में कितना बड़ा खेल खेला होगा, जबकि 01 सितंबर 2014 से कबीर अंत्येष्टि योजना के तहत अनुदान राशि डेढ़ हजार रुपये से बढ़ाकर तीन हजार रुपये कर दी गई है।

हर शाख पर है गिद्ध बैठा

सूबे के मुखिया नीतीश कुमार हर मौके पर यह दावा करते नही अघाते है कि सूबे में सुशासन है। सूबे में कानून का राज़,पारदर्शी सरकार और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेन्स की नीति के तहत सरकार का शासन है। लेकिन सूबे में सरकारी तंत्र की अकर्मण्यता रिश्वतखोरी बढ़ता अपराध सुशासन के दावों की पोल खोल रहा है।

सरकारी योजनों की गुणवत्ता,कमीशनखोरी,घपले-घोटाले और सरकारी राशि का गबन ऐसे मुद्दे है जो सरकार की छवि खराब कर रहे है। वही “कफन” की अनुदान राशि के गबन के मामले के खुलासे नीतीश सरकार की छवि पर बड़ा आघात साबित हो सकता है अगरचे उपरोक्त मामले तो महज बानगी भर है। पूरे सुबे में अगर प्रोफेशनल टीम द्वारा इसकी जांच कराई जाए तो “कफ़न” राशि घोटाले का एक बहुत बड़ा  खुलासा साबित होगा।

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