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Super Exclusive – क्या भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों को संरक्षण देने का काम करते है उपमुख्यमंत्री बिहार? एक पड़ताल जो करेगा सच का पर्दाफाश

बिहार वन सेवा के एक अधिकारी अवधेश ओझा जो प्रमोशन पाकर के अभी DFO नवादा वन प्रमंडल के पद पर कार्यरत है। डीएफओ के ऊपर पूर्व से एवम वर्त्तमान में कई तरह के बेहद संगीन आरोप है। जिसकी पूर्ण जानकारी महकमे व विभाग के मंत्री को मालूम है। न केवल मालूम है बल्कि कई स्तरों पर चुप है डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी। जिस भ्रष्टाचार की बात कर खुद को पाक साफ बताते रहे है सुशील मोदी कही न कही अब उसपर भी प्रश्न चिन्ह लगना शुरू हो गया है।

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पटना Live डेस्क। सूबे में सुशासन की सरकार है। मुख्यमंत्री कहते नही अघाते की राज्य में कानून का शासन है। साथ ही साथ सूबे में भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेन्स की नीति सुशासन सरकार की प्राथमिकताओं में शुमार है। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त किस कदर स्याह है इसकी ताकीद समय समय पर उजागर होने वाले मामले से होता रहता है। निगरानी विभाग और विशेष निगरानी की इकाइयों ने इसी क्रम में छोटे मोटे सरकारी कर्मचारियों को घूसखोरी में दबोचने के तो बहुत ही मामले उजागर किए पर बड़े ओहदों पर मौजूद नौकरशाहों के उजागर होने वाले मामलों में शासन की आश्चर्यजनक खामोशियों लगातार सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करने लगे है। इसी तरह के एक मामले का खुलासा पटना Live करने जा रहा है। उल्लेखनीय है कि यह मामला न केवल निगरानी विभाग के फाइलों के ढेर में धूल फांक रहा है बल्कि विभाग के मंत्री की जानकारी में भी न केवल है बल्कि बाकायदा तथ्यात्मक तरीक़े से एक RTI कार्यकर्ता के जरिए भी उजागर किया गया है। ख़ैर,

मामला बिहार वन सेवा के एक अधिकारी अवधेश ओझा जो प्रमोशन पाकर के वर्त्तमान में DFO नवादा वन प्रमंडल के पद पर कार्यरत है।उनके ऊपर पूर्व से एवम वर्त्तमान में कई तरह के बेहद संगीन आरोप है। जिसकी पूर्ण जानकारी महकमे व विभाग के मंत्री को भी मालूम है। भ्रष्टाचार और विवादों से चोली दामन का रिश्ता रखने वाले अधिकारी की विभागीय कार्रवाई की फाइल पर महकमा कुंडली मारे बैठा है।

बिहार वन सेवा के अधिकारी अवधेश ओझा जो राजद की सरकार में लगातार हंसिये पर थे अचानक ही राजग की सरकार आते ही मेंन स्ट्रीम पर आ गए और विभाग के मंत्री से लेकर उनके आसपास की अधिकारियों की फौज के इतने करीब हो गए कि न तो कोई शिकायत करने की हिम्मत करता न ही किसी की शिकायत सुनी जाती। नाम के साथ लगने वाले टाइटल का भी बहुत फायदा मिला।

नवादा वन प्रमंडल में जो कि आईएफएस(IFS) का पद स्वीकृत है। वहां प्रभार मिला और फिर जंगल की लकड़ी अभरक और हरियाली की लूट का खेल शुरू हो गया। शिकायते तो कई आई मगर ऊपर वाला सब की रक्षा करता है ऐसा धार्मिक किताबो में लिखा है। जाहिर सी बात है कि नवादा जैसे जंगल की जिम्मेवारी उसी को मिलती जो विभागीय स्तर पर काबिल अफसर समझा जाये क्योंकि काबिलियत का सरकारी पैमाना भी उनको तय करना था जिनके जिम्मे लालू यादव के 15 साल का भ्रष्टाचार मुद्दा था क्योंकि इस सरकार में तो शुरू से रामराज्य था। नवादा वन प्रमंडल के अंतर्गत होने वाले कौआकोल के खेल की भनक हर स्तर पर सबको थी या यूँ कहिए की मौन सहमति सभी की थी। लूट की गंगोन्त्री में सभी डुबकी लगाने को आतुर व व्याकुल थे।

बिहार में विभिन्न पदों पर विभिन्न जिलों में रहते हुए अकूत सम्पति अर्जित हुई । परिणाम यह हुआ कि आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा विशेष निगरानी इकाई ने दर्ज किया कांड संख्या – 01/2017

जांच शुरू हुआ मगर जांच चले भी कैसे । सुशासन की सरकार का दम्भ इकलौती पार्टी कैसे भर सकती जब साथ मे मायावी जमात हो । जांच के नाम पर खानापूर्ति हुई और फिर हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी पूछताछ पर रोक लगा दी। आजतक न तो विजिलेंस की तरफ से सुनवाई के लिए पैरवी हुई न ही चार्जशीट फ़ाइल हुई । विभागीय कार्यवाही हुई या नही कोई खबर नही एक बार फिर नाम मे लगे टाइटल का फायदा हुआ क्योंकि टाइटल मायने रखता है।

पुरानतन पर ज़ोरदार कहावत है कमाऊ पूत की हर जगह कद्र होती है। मौजूदा दौर मे यह कहावत पहले से ज्यादा काबिल-ए-एहतराम व वज़नदार वजूद कायम कर चुका है। वैसे भी हजार लाख करोड़ में शून्य का ही तो फासला है। वैसे सब को पता है करोड़ में 7 ज़ीरो होते है। खैर यह खेल भी निराला होता है क्योंकि पिछले 15 साल में जनता को उलझा कर रखा जाता है ताकि अगले 15 साल का सवाल गायब हो सके।

कौआकोल में बिहार वन सेवा के अधिकारी रेंजर  बाणेश्वर पाठक नवादा वन प्रमंडल से रिटायर होते है 30.11.2019 को लेकिन चार्ज किसी और को नही दिया जाता है क्योंकि सब पोल खुल जाती मामला बिगड़ता तो डीएफओ ओझा से लेकर ऊपर के कई अधिकारियों का सच सामने आ जाता।

पहली बार नियम को दरकिनार करते हुए अहम ब्रह्म की सोच के साथ रेंजर स्तर के अधिकारी की नियुक्ति संविदा के आधार पर होती है। उसी जिले में उसी पद पर होती है। और ज़रा गौर फरमाइए स्वयं से स्वयं का पदभार ग्रहण किया जाता है क्योंकि चुनावी साल में खर्चे बहुत होने तय है और होंगे भी।लगातार खेल चालू रहता है शिकायते मिलती है कोई करवाई नही होती RTI का आवेदन दिया जाता है कोई जवाब नही दिया जाता विभाग के मंत्री से शिकायत होती है पर करवाई नही होती है।

भ्रष्टाचार घपले-घोटाले और सरकारी राशि को हड़पने के बेहद गंभीर आरोप लगते है। आरोप लगाने वालों पर एक के बाद एक मुकदमे दर्ज कराए जाते है। मातहत अधिकारियों द्वारा आवाज उठाने पर बर्बाद करने की धमकी दी जाती है। इस सब की शिकायत सम्बंधित मंत्री जी को की जाती है मगर फिर भी चुप क्योंकि जाको राखे साईंया मार सके न कोय …

नवादा कौआकोल के ग्रामीण द्वारा जब RTI के माध्यम से इस सांस्थानिक लूट पर जब सवाल उठाया जाता है तो पहले मोल भाव होती है फिर फर्जी केस दर्ज कराए जाते है फिर बात जब मंत्री जी तक पहुंचती है तो मंत्री जी बेचैन हो उठते है फोन करते है और कहते है कि आप मिल मत जाइयेगा। सब कुछ होता है बस करवाई नही होती क्योंकि टाइटल लगने का फायदा एक बार फिर मिलता है ….

(अगली क़िस्त में मंत्री जी की जानकारी में DFO नवादा द्वारा की विभागीय लूट की नई कहानी और मंत्री महोदय की बेचैनी )

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