पटना Live डेस्क। कहते है इंसान इस धरा पर खाली हाथ आता है और खाली हाथ चला जाता है। पर विरले ही होते है जो छोड़ जाते है अपने सद्कर्मो की याद और अपने परिजनों,शुभचिंतकों,गांव-टोला,नगर मोहल्ला में एक जुगनू सा सदैव चमकने वाला यादगार पल।इसी पंक्तियों की सटीक और उम्दा मिसाल है स्वर्गीय श्री सुखदेव सिंह और स्वर्गीय श्रीमती शारदा देवी।नालंदा की ज़रखेज माटी के लाल थे स्वर्गीय सुखदेव सिंह जी। एक भरेपूरे परिवार के पालनहार और जीवट व्यक्तित्व के उदाहरण स्वर्गिय सिंह ने अपने बच्चों को शिक्षा और संस्कार की वो सीख दी। जिसकी बदौलत सिंह दम्पति के सुपुत्र ने अपने ईमानदारी और जड़ो से जुड़े समर्पण भरे अथक प्रयास के जरिये बिहार की राजधानी पटना को भवन निर्माण क्षेत्र की बेहद कामयाब सस्थान की आधारशिला रखी। सरलता और सौम्यता,समय की पहचान और शिखर पर पहुचने की अदम्य लालसा में श्री नरेन्द्र कुमार के नेतृत्व में सस्थान सफलता के नए आयाम लिख रही है।
वक्त बदला मयार बदला पर समय के थपेड़ों के बीच भी सिंह दम्पति का गांव और समाज के प्रति लगाव और सच्चा स्नेह खत्म नही हुआ बल्कि अविरल धारा की तरह निरंतर बहता ही रहा है। लेकिन इस फानी दुनिया मे अपने तय कर्त्तव्यों को पूरी शिद्दत से निभाकर दोनों पुण्य आत्माओं ने एक ही तारीख को महज 2 साल के अंतराल पर संसार को अलविदा कह दिया। पर अपने सुकर्मों और सुविचारों की लौ जला गए है। परिपाटी अब भी जिंदा है घर मे नई पीढ़ी ने दादा जी के आदर्शों और नैतिक मूल्यों को आत्मसात कर लिया है। तभी तो पोते सागर ने दादा दादी की पुण्यतिथि पर नमन करते हुए भी भूखों को भोजन कराकर उन्हें याद किया।
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