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पूर्व सांसद आनंद मोहन जेल के अंदर अनशन पर बैठे, जेल आईजी को लिखी चिट्ठी

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पटना Live डेस्क। पूर्व सांसद आनंद मोहन सहरसा मंडल कारा में बंद हैं। जेल में कई प्रकार की दिक्कते आ रही है। मंडल कारा सहरसा की मूलभूत समस्याओं को लेकर आनंद मोहन अनशन पर बैठ गए हैं। साथ ही उन्होंने जेल के अंदर हो रही समस्याओं को लेकर जेल आईजी को लेटर लिखा है। पत्र में लिखा गया है कि कोरोना संकट के कारण पिछले (मार्च 2020) डेढ़ साल से हम बंदियों की मुलाकात और आवश्यक वस्तुओं की आवाजाही पर पूर्णतः रोक है। ‘ई’ मुलाकात और दूरभाष पर भी नियमित बातचीत की व्यवस्था नहीं है।जबकि कोरॉना संकट के नाम पर खाने-पीने और जरूरी सामानों के अंदर आने पर रोक है, तो ऐसे में हम बंदियों को कारा हस्तक के अनुसार निर्धारित ‘डाइट’ में किसी प्रकार की अनियमितता कहीं से भी उचित नहीं है ।
आगे पत्र में लिखा है कि भीषण गर्मी और क्षमता से अधिक बंदियों के बावजूद वार्डों में पर्याप्त पंखे नहीं हैं, जो हैं वे खराब पड़े हैं। बंदीगण अपने निजी खर्च पर पंखों की मरमत्ति को मजबूर हैं। कई साल से नए पंखों की खरीद नहीं हुई है । यहां तक कि अन्य वर्षो की तरह हाथ पंखे और मिट्टी के घड़ों की आपूर्ति भी नहीं की गई। संपूर्ण जेल में दशकों पुराने बिजली वायरिंग की स्थिति जर्जर है। ‘शार्ट सर्किट’ के कारण कभी किन्हीं बड़े हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता।
क्षमता से बहुत कम शौचालय हैं, जो हैं, उसकी स्थिति भी अत्यंत खराब हैं। सभी पाखाना टंकी फटे और भरे पड़े हैं। बह रहे मल टंकियों से जेल की स्थिति अत्यंत दुर्गंधपूर्ण और नारकीय है। बीमारियों की संभावनाएं हैं।अशक्त बंदियों के लिए कमोड वाले लेट्रिन की व्यवस्था हो।विगत वर्षों कई – कई अनशनों और आश्वासनों के बावजूद इस जेल में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं की गई। जबकि प्रदेश के अन्य जेलों में इसके लिए ‘एक्वा गार्ड’ लगाए जा चुके हैं। भीषण गर्मी में सामान्य चापाकल भी खराब पड़े हैं। जेल में कोई स्थाई चापाकल मिस्त्री नहीं है ।जबकि पूर्व से ऐसी व्यवस्था थी।
आनंद मोहन पत्र में लिखा है कि समुचित दवा और चिकित्सा का घोर अभाव है । आंखों के इलाज के अभाव में बंदी बौकू सादा और विनोद यादव लगभग अंधे हो चुके हैं। वहीं महिला बंदी प्रभा देवी की गठिया के प्रकोप से हालत बदतर है। ये सभी दूसरों के सहारे दैनिक नित्य क्रिया संपन्न करते हैं , परंतु इस ओर प्रशासन का समुचित ध्यान नहीं है। खून- पेशाब की जांच और एक्स-रे का कारा के अंदर कोई व्यवस्था नहीं है।पाकशाला की स्थिति भी जर्जर है। टूटे छत से धूल, गंदगी और वर्षा का पानी पाकशाला में प्रवेश करता है। क्षमता से अधिक बंदियों के बावजूद खाना पकाने का बर्तन, थाली,गिलास, साबुन, कपड़े , दातुन आदि की भारी कमी है। अन्य जेलों की तरह यहां भी आधुनिक पाकशाला का निर्माण सुनिश्चत किया जाए । आगे उन्होंने कहा कि काम करने वाले बंदियों को पारिश्रमिक राशि नहीं दी गई और कैदियों को मिलने वाले परिहार से भी क़ैदी वर्षों वंचित हैं। खेलकूद, मनोरंजन की कोई व्यवस्था नहीं है। ‘जिम’ के भी सामान खराब पड़े हैं।
जेल की जर्जर स्थिति को लेकर आनंद मोहन ने कहा कि वर्षों से वार्डों में खिड़कियों के पल्ले नहीं हैं। परिणाम स्वरूप आंधी ,बारिश ,गर्मी में लू , जाड़े में ओस-पाले से बंदियों को भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।वैश्विक महामारी ‘कोविड-19’ के मद्देनजर सहरसा, मधेपुरा ,सुपौल जिलों के लिए जिस बीरपुर उपकरा को अस्थाई तौर पर ‘कोरेंटाइन जेल’ बनाया गया है, वह पूरी तरह ‘यातना गृह’ में तब्दील हो चुका है। वहां जाते ही बंदियों की बेरहमी से पिटाई,पैसे,कपड़े,जूते, घड़ी,अंगूठी छीन लेना, शारीरिक और मानसिक यातनाएं देकर उनके घरों तक से वसूली करना, जानवर से भी बदतर खाद्य-सामग्रियों की आपूर्ति, पैसे लेकर समय पूर्व संबंधित जेलों में बंदियों की वापसी, वहां आम बात है। कई-कई शिकायतों के बावजूद वहां के हालात में अब तक कोई परिवर्तन नहीं है।समय अवधि की समाप्ति बाद भी पुराने बंदियों को कोरोना का दूसरा डोज और नए आए बंदियों को महीनों बाद भी पहला डोज नहीं मिला है।

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