बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

Fact Finding- IPS का दागदार दामन फिर भी मिला प्रमोशन,11 साल पहले DIG थे तब 76,अब IG तो 23 जवान शहीद

1992 बैच के आंध्र प्रदेश कैडर के IPS नलिन प्रभात के खिलाफ इन्क्वायरी हुई थी,इसके बावजूद प्रमोशन और बड़ी जिम्मेदारी,2008 में गैलेन्टरी अवॉर्ड मिलने पर उठे थे सवाल 6 अप्रैल 2010 दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में 76 जवानों की शहादत के वक्त DIG थे।

2,106

पटना Live डेस्क। 3 अप्रैल 2021 दिन शनिवार को पुनः एक बार छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए कायराना नक्सली हमले में 23 जवानों की शहादत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया हैं। नक्सलियों का यह तांडव अब भी जारी है।छत्तीसगढ़ के बस्तर डिवीजन के बीजापुर जिले में नक्सली हमले के बाद CRPF के IG नक्सल ऑपरेशन आईपीएस नलिन प्रभात चर्चा का विषय बन गए है।दरअसल, ये वही 1992 बैच के आंध्रप्रदेश कैडर के IPS अधिकारी है जो छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में करीब 11 साल पहले CRPF के 76 जवानो की शहादत के वक्त उस समय CRPF के DIG नलिन प्रभात थे।नलिन ने ही आदेश देकर 72 घंटे के एरिया सैनिटाइजेशन के लिए चिंतलनार कैंप के 150 जवानों निकलने कहा था। उक्त घटना को देश मे अबतक नक्सली हमले की तारीख़ों का सबसे बड़ा हमला माना जाता है।उक्त घटना के बाद आईपीएस नलिन प्रभात “कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी” में दोषी पाए गए थे।

IPS नलिन के दामन पर है दागदार

यह तथ्य है कि 6 अप्रैल 2010 में दंतेवाड़ा के ताड़मेटला के उक्त भयानक नक्सली हमले के बाद सीआरपीएफ ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी बैठाई और गृह मंत्रालय ने मामले की जाँच के लिए ई. राममोहन कमेटी गठित की। जाँच कमेटी की रिपोर्ट में बताया गया था कि नक्सलियों के पास सीआरपीएफ का वायरलेस मौजूद था, जिससे उनके पास जवानों के मूवमेंट की पूरी खबर थी। जाँच कमेटी की रिपोर्ट में प्रभात एवं अन्य अधिकारियों को ‘कमांड एण्ड कंट्रोल’ के फेल होने और ‘स्टैन्डर्ड ऑपरेशन प्रोसिजर’ के उल्लंघन का दोषी पाया गया था। सीआरपीएफ की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी और राममोहन कमेटी की जांच में CRPF के तत्कालीन IG रमेश चंद्रा, DIG नलिन प्रभात, 62 बटालियन के कमांडर एके बिष्ट और इंस्पेक्टर संजीव बांगड़े दोषी पाए गए। इन चारो पर पर्याप्त सुरक्षा के बिना फोर्स को एरिया सैनिटाइजेशन के लिए भेजने, क्षेत्र के जानकार कमांडेंट और डिप्टी कमांडेंट को साथ नहीं भेजने जैसे गंभीर आरोप लगे। इनकी घातक लापरवाही की वजह से ही नक्सलियों के अबतक के सबसे बड़े हमले में दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में 76 जवान बलिदान हो गए थे।

ताड़मेटला का नक्सली हमला

6 अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला में चिंतलनार कैंप के 150 जवानों को DIG नलिन प्रभात ने ही आदेश देकर 72 घंटे के एरिया सैनिटाइजेशन के लिए निकलने कहा था। जब तीसरे दिन यह टुकड़ी वापस लौट रही थी, तो रास्ते में एंबुश लगाकर बैठे नक्सलियों ने पहले विस्फोट से एक पुलिया उड़ाई और फिर ताबड़तोड़ फायरिंग कर 76 जवानों को मौत के घाट उतार दिया।।ऐसा अनुमान था कि लगभग 1000 नक्सलियों ने जवानों को घेरा था। यह भारत में नक्सल समस्या के इतिहास का सबसे बड़ा हमला माना जाता है।

इस बार क्या हुआ

शनिवार को हुई मुठभेड़ के बाद भी भी मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा कि नक्सलियों ने अपनी मूवमेंट की जानकारी जान-बूझकर अधिकारियों के पास पहुँचाई थी। ताड़मेटला हमले के बाद इन्क्वायरी में प्रभात ने कहा था कि जिस डिप्टी कमांडेंट को साथ भेजा गया था, वह अपना कार्य ठीक से नहीं कर पाया। लेकिन अब वे खुद ही नक्सल ऑपरेशन के आईजी हैं। ऐसे में इंटेलिजेंस की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर थी।

नलिन प्रभात आंध्र प्रदेश कैडर के 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी है। इनको बहादुरी खातिर राष्ट्रपति का गैलेन्टरी अवॉर्ड भी मिल चुका है। यह अवॉर्ड नलिन को जम्मू कश्मीर में 2008 के दौरान एक  मुठभेड़ में 4 आतंकियों को गिराने के लिए दिया गया था। लेकिन, दिलचस्प तथ्य यह है कि उस वक्त भी उनके पिछले रिकॉर्डों का हवाला देते हुए उन्हें यह अवॉर्ड देने पर गंभीर सवाल उठाए गए थे।

अब 3 अप्रैल शनिवार ठीक ऐसे ही एनकाउंटर में 23 जवान शहीद हुए हैं, तो नलिन प्रभात IG नक्सल ऑपरेशन बन चुके हैं। उस समय नलिन प्रभात को ताड़मेटला कांड में जिम्मेदार मानकर इन्क्वायरी भी की गई थी। अब सवाल यह है कि पिछली नाकामी के बावजूद नलिन प्रभात को यहां बड़ी जिम्मेदारी क्यों दी गई?गलत ऑपरेशन, सर्चिंग पर फोर्स को भेजने की जिम्मेदारी किसकी है?

इस हमले के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। हमले के बावजूद असम में चुनाव प्रचार में व्यस्त रहने को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की आलोचना हो रही है। साथ ही नलिन प्रभात की दक्षता और उन पर मेहरबानी को लेकर भी सवाल किए जा रहे हैं। इंटेजिलेंस फेल्योर के भी आरोप लग रहे हैं। यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या सूचना तंत्र विफल रहा जिसके कारण नक्सलियों के मूवमेंट की सही जानकारी नहीं मिल पाई अथवा नक्सलियों द्वारा सुनियोजित तरीके से जानकारी देकर जवानों को फँसाया गया है।इन सवालों के ठोस जवाब तो जाँच के बाद ही मिलेंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल आईपीएस नलिन प्रभात पर मेहरबानियों को लेकर उठ रहे है और उठते रहेंगे ?

 

Comments are closed.