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Super Exclusive – पटना पुलिस की कार्यशैली पर बड़ा सवाल, हालात कर रहे कहावत चरितार्थ – लिखा न पढ़ी खाकी जो कहे लिखे वही सही?

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पटना Live डेस्क। बिहार सरकार  के मुखिया नीतीश कुमार लगातार अपने संबोधनों और सार्वजनिक तक़रीरों में कहते है कि सूबे में कानून का राज़ है। शासन न किसी को फ़साता है न बचाता है कानून समत्त कार्रवाई करता है। लेकिन ज़मीनी हकीकत क्या है और क्यो है इसको लेकर हर आमो खास की अपनी अपनी परिभाषाएं है। ख़ैर, बात करते है खाकी के काम करने के तरीक़े पर उठते सवालों पर, उठ रहे सवाल कही सुदूर जिले के पुलिस के बाबत नही है बल्कि सुशासन के नाक के नीचे यानी पटना पुलिस से जुड़ा हुआ है। पटना पुलिस की कार्यशैली पर यह लोकोक्ति बिल्कुल मुफ़ीद बैठती है कि लिखा न पढ़ी आईओ (इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर) जो लिखे पढ़े वही सही। लेकिन सच तो सच है आखिर कब तक छुपता ?

दरअसल,पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकता के रहने वाले एक करोड़पति बिजनेस मैन घराने को बेटी नेहा अग्रवाल की शादी पटना के एक बड़े बिजनेसमैन से 07 नवम्बर 2014 को सम्पन्न हुई। लेकिन दुल्हन के हाथों की मेहदी भी नही सुखी तबतक पति देव का असली चेहरा खुल कर सामने आ गया। तब शुरू हुई शादी के बाद लगातार मारपीट की कई घटनाएं हुई। नेहा शुरुआत में लाज़लज़्ज़ा सामाजिक प्रतिष्ठा के तहत प्रताड़ना सहती रही पर रोज़ रोज़ बढ़ती हिंसात्मक गतिविधियों और मारपीट से उसका सब्र टूट गया और फिर कई बार कभी बुद्धा कॉलोनी थाना तो कभी एस के पूरी थाने में बीतते समय के साथ दर्ज किए गए।

मान मनव्वल और अब नही की दुहाई देकर तमाम प्रयास जब विफल हो गए और नेहा के साथ पति का हिंसात्मक और क्रूरतापूर्ण व्यवहार जब सभी सीमाओं को पारकर गया तो अंततः नेहा अग्रवाल अपने पति सुमित अग्रवाल के खिलाफ दहेज एवम घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत 8 दिसम्बर 2015 में मामला दर्ज करा दिया। वही, पति सुमित अग्रवाल के तरफ से डाइवोर्स ख़ातिर मुकदमा दायर किया गया।

इधर,पीड़िता नेहा द्वारा किये गए 498A के मुकदमे में सुमित अग्रवाल की गिरफ्तारी हुई और वो जेल से बेल पर बाहर निकल आया। वही,पीड़िता अपने पिता के घर यानी कोलकाता मायके लौट जाती है। लेकिन असली खेल तो तब शुरू हुआ जब पैसे और रसूख के बल पर पटना पुलिस भी साज़िशफेरियों में शामिल होकर ताबड़तोड पीड़िता और उसकी 60 वर्षीय माँ के खिलाफ मुकदमा दर मुकदमा दर्ज करने लगती है।

यानी पटना पुलिस कानून के बैट से नो बॉल पर धुआंधार बैटिंग करते हुए एक के बाद एक लगातार केस कलकत्ता रहने वाली नेहा और उसकी 60 वर्षीय मां पर दर्ज होनेे  लगते है।

नम्बर एक -25 हजार की चोरी

खैर,अब बात करते है पहले पहल श्रीकृष्ण पूरी थाना में दामाद सुमित अग्रवाल द्वारा अपनी 60 वर्षीय सास पर लिखित आवेदन देकर आरोप लगाया गया कि जब उदयन हॉस्पिटल में उनका ईलाज चल रहा था तो उनकी पत्नी की माँ उन्हें देखने आई। लेकिन उन्होंने इसी बीच 25000 हजार रुपये चुरा लिए और लेकर निकल गई। यहाँ गौर करने वाली बात यह है आरोपी महिला जो स्वयं कोलकाता में करोडों की मालकिन है और एक बेहद सफल कारोबारी की पत्नी है। खैर,कानून अंधा होता है यह हम सबने सुना,पढ़ा और लिखा हुआ देखा है।

वही, सुमित अग्रवाल के आवेदन पर एस के पूरी थाना द्वारा काण्ड संख्या 441/ 2015 दर्ज कर लिया गया। दर्ज मामले के अनुसंधान की जिम्मेदारी 2009 बैच की दारोगा अनुप्रिया को दी गई। यानी केस की आईओ (इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर) बनी अनुप्रिया ने बेहद गंभीरता से अनुसंधान की जिम्मेदारी निभानी शुरू करते हुए मोर्चा सम्भाल लिया।

सब इंस्पेक्टर अनुप्रिया द्वारा 60 साल की वृद्ध और उनकी बेटी पर तसदुत्त का दौर शुरू हो गया। यानी दौरे जब्र के तहत पहले तो एसआई अनुप्रिया गांधी मैदान क्षेत्र में बुजुर्ग महिला एवं उसकी बेटी नेहा को पकड़ लेती है। बकौल पीड़िता माँ बेटी के महिला दरोगा ने पहले तो जमकर उन्हें गालियां दी और तमाम ऐसे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल किये जो सभ्य समाज मे वर्जित है, तदुरान्त जमकर पीटा भी और जबरिया हमे गाड़ी में बिठा लिया।

बिहार पुलिस की ट्रेनिग पर लगा बड़ा प्रश्नचिन्ह

तदुपरान्त, घटना वाले दिन यानी 24 जनवरी 2019 को
महिला एसआई द्वारा माँ बेटी को पीटने के बाद पीरबहोर थाना कांड संख्या 57/2019 केे तौर पर एक मामला भी दर्ज कराया जाता है। दर्ज मामले में महिला दारोगा का आरोप है एस के पूरी थाना काण्ड संख्या 441/ 2015 ख़ातिर वो पटना सिविल कोर्ट से वारेंट लेने पहुची थी, की अचानक इनदोनो मां बेटी पर नजर पड़ गई। मैं 4 महिला डॉल्फिन जवानों के साथ उन्हें पकड़ने लगी तो, 60 वर्षीय बुजुर्ग महिला और उनकी 34 साला बेटी ने न केवल उन्हें जमकर पीटा बल्कि डॉल्फिन यूनिट की 4 महिला सिपाहियों की उपस्थित में मार मारकर उनका चश्मा भी तोड़ डाला। फिर भी किसी तरह मैंने माँ बेटी को गिरफ्तार किया और बेउर जेल भेज दिया।

दारोगा अनुप्रिया द्वारा दर्ज पीरबहोर थाना कांड संख्या 57/2019 में हाई कोर्ट से बेल लेनी पड़ी है। 

ख़ैर, अब जरा सोचिए और मन मे उठ रहे महज 4 सवालों के जबाब ढूढने का खुद प्रयास करे

  • क्या यह महज संयोग है कि कोलकता की जिस महिला को गिरफ्तार करने के लिए वारंट लेने गए थे कोर्ट वो कोर्ट के बाहर ही मिल गई ?
  • जब उस केस में बिना वारंट के गिरफ्तारी हो सकती थी तो वारंट लेने क्यों गई और अगर बिना वारंट के गिरफ्तारी नही हो सकती थी तो उस महिला को पकड़ी क्यों ?
  • क्या एक 60 वर्षीय महिला और उसकी 34 वर्षीय बेटी बिहार पुलिस के ट्रेंड 4 महिला जवान और एक दरोगा को पिट सकती है ? वो भी बिना किसी हथियार के अगर हां तो बिहार पुलिस ख़ातिर यह स्थिति न केवल घोर चिंताजनक है बल्कि ट्रेनिंग पर बेहद बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है DGP साहब ।
दूसरा मुकदमा- गवाह की दलील पर जरा गौर करें

दूसरा मुकदमा सुमित अग्रवाल का ड्राइवर बुद्धा कॉलोनी थाना में नेहा एवं उसकी मां के ऊपर SC-ST कानून के तहत दर्ज कराता है। अपने लिखित आवेदन में ड्राइवर आरोप लगता है कि दोनों माँ बेटी ने उसे हरिजन कहकर उसे पांचवी मंजिल पर जमकर पीटा। बुद्धा कॉलोनी थाना में यह मामला कांड संख्या 220/16 तौर पर अंकित किया जाता है। इस दर्ज मामले में गवाह बनता है नीचे चाय की दुकान पर बैठा एक व्यक्ति है जो सड़क किनारे चाय की दुकान पर बैठे बैठे फिफ्थ फ्लोर की तमाम बाते सुन लेता है बल्कि मारपीट का भी चश्मदीद होता है।

कानून का हाफ़िज़ बना उम्मीदों का नव प्रभात

ख़ैर, कहते है न हर दौर में बुराई से लड़ने को एक सशक्त हस्ताक्षर जरूर होता है। ठीक इसी तरह कोलकाता की माँ बेटी को पटना में मनी पावर से पुलिस पावर हासिल कर तंगो तबाह करने के कुत्सित प्रयासों पर उस युवा निर्भीक और निडर अधिवक्ता प्रभात भारद्वाज की नज़र पड़ गई।

दरअसल कानूनी की पढ़ाई कर समाज के अंतिम पायदान पर खड़े निर्बल निसहाय को भी इंसाफ दिलाने के ज़ज़्बे के साथ वकालत करने वाले प्रभात ने बेहद कम समय मे ही निःसहाय आमआदमी को न्याय की चौखट पर इंसाफ दिलाने की मुहिम से वो प्रतिष्ठा अर्ज़ित करने की राह पकड़ ली है जो उन्हें काले कोर्ट की भीड़ में एक सशक्त हस्ताक्षर और उम्मीदों का रहबर बना दिया है। बेहद बारीकी से सूबे की हर छोटी बड़ी कानूनी जंग से वाकिफ़ होने के इनके प्रयास का ही फलाफ़ल रहा कि खाकी और कारोबारी के इस खेल पर हाईकोर्ट के युवा अधिवक्ता की नज़र पड़ी तो बेसाख़्ता उन्होंने नेहा अग्रवाल के परिवारवालो से सम्पर्क किया और उन्हें तकरीबन 4 महिने के अंदर सिविल कोर्ट से हाईकोर्ट तक का सफर तय कर सलाखों के पीछे कैद दोनो माँ बेटी को जमानत पर जेल से रिहाई दिलवाई।

यह महज एक बेल पर जेल से बाहर निकालने की प्रक्रिया भर नही है। बल्कि पीड़ितों के न्यायपालिका पर डगमगाते विश्वास को पुनः अक्षुण्ण करने का सफल प्रयास है। यह कानूनी लड़ाई का महज एक पढ़ाव ही नही उम्मीद के जुगनुओं को टहटह जगमगाने वाला उजियारा है।

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