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दशहरा के बाद आर-पार के मूड में अशोक चौधरी,सीएम नीतीश से बेहतर ट्यूनिंग क्या खिलाएग गुल? सबको इंतजार….

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पटना Live डेस्क.  प्रदेश कांग्रेस अध्य्क्ष पद से हटते ही अशोक चौधरी ने आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है…कह रहे हैं कि दशहरा बाद कोई बड़ा फैसला लेंगे…दर्द है कि पार्टी ने जिस तरीके से पद से हटाया वो सम्मान के खिलाफ है…तो ऐसे में अब कयास लगाए जा रहे हैं कि आखिर अशोक चौधरी दशहरा के बाद बड़ा फैसला आखिर क्या लेंगे..दरअसल इसी बयान से राजनीति भी शुरु हो जाती है..अब जरा राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डालें…कहा जाता है कि अशोक चौधरी के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अच्छे संबंध हैं….अशोक चौधरी को नीतीश कुमार की राजनीति भी पसंद है…जब महागठबंधन सरकार के दौरान तेजस्वी संकट आया था तो उस दौरान अशोक चौधरी ने अपने निजी संबंधों के बल पर ही नीतीश को मनाया था…और अलग से तेजस्वी से मुलाकात का कार्यक्रम फिक्स कराया था…इस दौरान वो खुद नीतीश कुमार और तेजस्वी के साथ भी रहे थे..मतलब है कि उस समय की महागठबंधन सरकार को बचाने की अशोक चौधरी ने भरपूर कोशिश की थी…ये अशोक चौधरी से निजी संबंधों का ही रिजल्ट था कि डेडलॉक वाली हालत में भी उऩ्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तेजस्वी से मिलने के लिए राजी किया था…दरअसल महागठबंधन सरकार के दौरान ही अशोक चौधरी से सीएम की बनी ट्यूनिंग के आधार पर ही यह आरोप लगाए गए कि अशोक चौधरी नीतीश कुमरा के इशारे पर राज्य में कांग्रेस में फूट करना चाहते हैं..कहा तो यहां तक गया कि चौधरी ने कई विधायकों को समर्थन के नाम पर हस्ताक्षर भी करा लिए हैं…यह हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है…और यह भी हो सकता है कि नीतीश कुमार इस लिहाज से भी अशोक चौधरी से सॉफ्ट कॉर्नर रखते हों…बात चाहे जो भी हो..लेकिन जेडीयू भी यह जानती है कि आगामी चुनावों में अशोक चौधरी एक बड़े दलित चेहरे के तौर पर उभर सकते हैं…फिलहाल जेडीयू में दलित चेहरे का अभाव है…राज्य में दलितों के नाम पर राजनीति करने वाले रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी दोनों बीजेपी के साझीदार हैं…इसलिए अशोक चौधरी को अपने पाले में लाना जेडीयू के लिए फायदेमंद हो सकता है…अशोक चौधरी की एक राजनीतिक विरासत रही है जिसे नीतीश कुमार बखूबी जानते हैं..अशोक चौधरी के पिता महावीर प्रसाद जाने माने राजनेता रह चुके हैं..जिनकी पकड़ वोटरों में खूब थी…दूसरी तरफ अशोक चौधरी को लालू प्रसाद का विरोधी माना जाता है..कहा तो यह भी जाता है कि अशोक चौधरी ने खुले तौर पर कांग्रेस का राजद के साथ गठबंधन का विरोध किया था…हालांकि आलाकमान ने अशोक चौधरी की बातों को ना मानकर राजद से अपना गठबंधन जारी रखा…असल में प्रदेश में अशोक चौधरी की राजनीति भी यही है..कि राजद के साथ कांग्रेस के गठबंधन का विरोध करो और जो विधायक राजद से गठबंधन का विरोधी है उसे अपने पाले में करो….हालांकि चौधरी अपने मकसद में कहां तक कामयाब हो पाते हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा…बहरहाल, फिलहाल सबकी नजरें दशहरा बाद अशोक चौधरी के फैसला पर टिकी हैं… सवाल कई हैं.. क्‍या पार्टी में उनका समर्थक गुट टूटकर अलग हो जाएगा? बात केवल संख्‍या बल की है.. कहा जा रहा है कि अशोक चौधरी गुट के पास दलबदल कानून के मानकों के तहत उतने विधायक नहीं कि वे अलग हो सकें.. ऐसे में एक रास्‍ता यह है कि विधानसभा में स्पीकर उनको अलग गुट का दर्जा दें.. और मामला कानूनी पचड़ों में उलझा रहे… हालांकि, अशोक चौधरी ने ऐसे किसी कयास से इन्‍कार किया है…

 

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