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Happy Valentine’s Day 2022 – इश्क को इबादत में तब्दील करने वाला एक IPS ..हम दोनों के रिश्ते में त्याग तुम्हारा ज़्यादा ….

मैं तेरे संग ही बूढा होऊँ ये सपने देखा करता हूँ..तुम कहती हो मरती हो मुझ पर..मैं सच में तुम पे मरता हूँ... हम दोनों के रिश्ते में त्याग तुम्हारा ज़्यादा ...

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.पटना Live डेस्क। Happy Valentine’s Day ऑरिया ऑफ जैकोबस की किताब में वैलेंटाइन डे का जिक्र किया गया है यह दिन रोम के पादरी संत वैलेंटाइन को समर्पित है।आपने अबतक किताबों में कई तरह की प्रेम कहानियां पढ़ी होंगी या लोगों से सुनी होंगी। कहानियों में प्रेम के कई रंग को बयां किया गया है। कभी इसे आग का दरिया कहा गया है तो कभी इसे फूल जैसा नाजुक बताया गया है। कहानियों में कभी दो लोगों को तमाम मुश्किलों से लड़ते हुए प्रेम करते दिखाया गया है तो कहीं खुशी के पलों में प्रेम को फलता फूलता दिखाया गया। किताबी कहानियों से हटकर बिहार कैडर के एक आईपीएस ने अपने निर्मल निश्छल प्रेेम कहानी को बेहद भावप्रद शब्दवाली में उकेरा है।

पुलिस कप्तान के तौर पर अपनी भूमिका में अपना शत प्रतिशत देकर सूबे में ही नही अपितु देश भर में चर्चित व युवाओं वर्ग के रोल मॉडल आईपीएस कुमार आशीष ने अपनी प्रेयसी व जीवनसंगनी खातिर अपनी भावनाओं के अनन्त प्रवाह व हर पल के चित्रण को शब्दों के माध्यम से नया आयाम दिया है। वो लिखते है – हम दोनों के रिश्ते में …त्याग तुम्हारा ज़्यादा था…

उस दौर में जब दुनिया भर में इस्टेन्ट फ़ूड व हर साल छः महिने में इश्क नए साथी ढूढ लेता है चेहरे इस कदर बदलते है कि प्यार भी रोजगार लगने लगता है। ख़ैर, पूर्वी चंपारण के इस युवा आईपीएस के इश्क के आगाध और अविस्मरणीय भावनाओ को इन शब्दों से समझा जा सकता हैं …

अगले जनम मैं कृष्ण भी बन जाऊं..
तो तुम ही बनना मेरी मीरा, तुम ही बनना मेरी राधा
क्योंकि हम दोनों के इस रिश्ते में
त्याग तुम्हारा है मुझसे ज़्यादा..
तुम चली आयीं चार पांच कदम
मैं चल पाया बस इक आधा…

इश्क के प्रवाह और साथी के प्रति समर्पण की अदभुत व बेहद सराहनीय इस शब्दो के अतिरेक को पूरा पढ़िए यकीन जानिए … ये इश्क के इबादत होने का वर्त्तमान दौर का सबसे अनोखा शाब्दिक प्रवाह है। क्योंकि – हम दोनों के इस रिश्ते में त्याग तुम्हारा है मुझसे ज़्यादा..

इश्क के इबादत में तब्दील होने का प्रवाह

हम दोनों के रिश्ते में त्याग तुम्हारा ज़्यादा था
तुम चली आयीं चार पांच कदम मैं चल पाया बस इक आधा

मेरे जैसा तेरा बचपन मेरे जैसे तेरे सपने
जैसे मेरे गली मोहल्ले तेरे भी तो थे कई अपने
अपनी दुनिया से रंग चुरा के मेरी दुनिया रंगीन बना के
कैसे खुश रह लेती हो तुम अपने रिश्तों को कर के सादा
तुम चली आयीं चार पांच कदम मैं चल पाया बस इक आधा

जैसे मेरी पसंद नापसंद तेरी भी तो थी कई बातें
मुझे चलना था जेठ दुपहरी तुझे भाये सावन की रातें
पर बिना सोचे समझे मेरे कदम से कदम मिला लेती हो
अपनी रातें छोड़ मेरी दुपहरी अपना लेती हो
और तुम्हारी मर्ज़ी पूछू तो हंस कर बेहला देती हो
क्या सिन्दूर में लिपटे रिश्तों का होता है ऐसा अटल इरादा
तुम चली आयीं चार पांच कदम मैं चल पाया बस इक आधा

मैं तेरे संग ही बूढा होऊँ ये सपने देखा करता हूँ..
तुम कहती हो मरती हो मुझ पर मैं सच में तुम पे मरता हूँ..
गर्मियों कि शाम मुझे तेरी ऊँगली पकड़ तारे गिनना है
बारिश की सुबह बूँदें टटोलते तेरे ही साथ चाय पीना है
सर्दियों की दोपहर आँगन में तुझे ही अंगड़ाई लेते देखना है
हर मौसम की आंच में मुझे तेरे ही संग हाथ सेंकना है

अगले जनम मैं कृष्ण भी बन जाऊं..तो तुम ही बनना मेरी मीरा, तुम ही बनना मेरी राधा क्योंकि
हम दोनों के इस रिश्ते मेंत्याग तुम्हारा है मुझसे ज़्यादा..
तुम चली आयीं चार पांच कदम मैं चल पाया बस इक आधा

 

डॉ कुमार आशीष

पुलिस अधीक्षक, पूर्वी चंपारण

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