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Election 2019 (पोल खोल)- मिथिलांचल के दबंग विधायक जी का ऐलान 6 करोड़ में खरीद लिया है दिल्ली पहुचने ख़ातिर अपनी ही पार्टी का टिकट ससम्मान, बूझो तो जाने?

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पटना Live डेस्क। देश मे लोकतंत्र के महापर्व यानी लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही पूरा मुल्क सियासी बसंत के झोंके महसूस करने लगा है। वही, इस सियासी बसंत में बिहार में भी मोटीतोंद और भारी भरकम जेब के जरिये सियासी अखाड़े में उतरने को आकुल व्याकुल चेहरों पर लाली दिखाई देने लगी है। दरअसल देश के तमाम सियासी दलों पर पैसे लेकर लोकसभा या विधानसभा चुनाव मे दल की उम्मीदवारी देने के गम्भीर आरोप बार बार और लगातार चस्पा किए गए है। देश मे चुनावो के दौरान अमूमन सियासी दलों पर यह दोषारोपण एक परंपरा का रूप ले चुकी है कि धनबल और बाहुबल के दम पर उनके यहां टिकट वितरण होता है।इसीलिए पार्टी खातिर समर्पित और ईमानदार लोगों को चुनावी जंग में पीछे धकेल  दिया जाता है। ऐसे सनसनीखेज बयान टिकट न मिलने से खफा वर्षो तक दल खातिर खून पसीना बहाकर समर्पित रहने वाले सियासी कारकुन (कार्यकर्ता) देते रहे। कई तो दावा तक करते है धनबन, बाहुबल के आगे ईमानदारी से दल के लिए काम करने वालो की अक्सर टिकट की रेस में जबरिया रेस से बाहर धकेल दिया जाता है या चूसने को वायदों का लॉलीपॉप थमा दिया जाता है।

ख़ैर, आग लगेगी तो धुंआ उठेगा ही है। बात बिहार के वर्त्तमान दौर की करते है। सूबे में लोकसभा चुनाव के टिकट को लेकर एक बार फिर लगभग सभी सियासी दलों में सिर फुटौव्वल के हालात नुमाया हो रहे है। सूबे के विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ने खातिर पार्टी दफ्तरों में लंबी लाइन है। सभी खूद को संभावित उम्मीदवार मानकर अपने दल से टिकट पाने को जितोड़ मेहनत कर रहे है। कोई दिल्ली तो कोई पटना में तमाम सियासी संपर्कों की मदद से उम्मीदवारी खातिर भीड़ा है। लेकिन इसी बीच रांची रिम्स से संचालित होने वाले गठबन्धन के सबसे बड़े दल से वर्षो वर्ष से जुड़े एक ज़मीनी नेता ने एक राज़फ़ाश करते हुए “टिकट बिक रहा है =बोलो खरीदोगे” के कयासों को हक़ीक़त का अमलीजामा पहना दिया है।

मिथिलांचल के सबसे बड़े झंझावात वाले संसदीय सीट से उम्मीदवारी की चाहत में पटना में डेरा डालकर कर लालटेन की रौशनी में भी अपनी उम्मीदवारी पक्की कराने की जुगत में भिड़े इस ज़मीनी नेता का हर लफ्ज़ स्पष्ट करता है कि वर्त्तमान दौर में केवल धनबल की सियासत में अहमियत है। तभी तो हर बार और लगातार गुलाब जैसे रंग वाले नोटो की महिमा आम कार्यकर्ता पर भारी पड़ती है और वो ताकता रह जाता है। वही नोटों की गठरी के बलपर वो “गुलाब”  विधानसभा से लोकसभा पहुचने खातिर उम्मीदवारी पा जाता है।बिहार के मिथिलांचल से एक खबर बेहद तेजी से राजधानी के सियासी गलियारों में और खादी ब्रिगेड के बतकहियों में पसर रही है। बात है भी आग की तरह फैलाने वाली तो पुरजोर ढंग से मिथिलांचल से पसरती हुई पटना पहुच गई है। दरअसल, चुनाव के बसंती माहौल में फूलों का राजा गुलाब तमाम झंझावतों को दरकिनार कर अपनी बादशाहत बरकरार रखने का ऐलान कर चुका है। दावा भी ऐसा की अन्य फूल खिलने से पहले कुम्हलाए प्रतीत हो रहे है। दिन के उजाले की बात कौन करे लालटेन के प्रकाश में भी गुलाब ने 6 क्यारियों के बल पर अपनी लालीमा को बरकरार रखने का खुल्ला ऐलान कर दिया है।

                     वही, अन्य सियासी फूलों का तो दम फूलता नज़र आ रहा है। तो वही दूसरी तरफ गुलाब की बादशाहत के खिलाफ कुछ बागी किस्म के अन्य फूलों के नेताओं ने तो कहना भी शुरू कर दिया है कि माली भी पैसे की महिमा के आगे गुलाब को ही तवज्जों दे रहा है। यानी 6 क्यारियों के आगे अन्य फूल भी कुम्हला ही गये प्रतीत हो रहे है और गुलाब ताल ठोकर कर 6 क्यारियों के दमपर बादशाहत का ढ़िढोरा पीट रहा है।

नोट — पोल खोल एक कोशिश सियासत में “सच” को जिंदा रखने की। सहयोग अपेक्षित है। 

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