पटना Live डेस्क। मुल्क में17वीं लोकसभा के गठन के लिए मतदान की प्रक्रिया चल रही है। कुल 7 चरणों में होने वाली मतदान प्रक्रिया के 5 चरण पूरे हो चुके हैं।जबकि छठे चरण में 12 मई को मतदान होना है। वही सातवें और आख़री चरण का मतदान 19 मई को निर्धारित है। हालांकि, चुनाव के दौरान किसी भी तरह की गड़बड़ न हो, इसके लिए चुनाव आयोग ने कड़े प्रबंध किए हैं, फिर भी इस तरह कई जगह हिंसा देखने को मिली है। इस चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की से छेड़छाड़ को लेकर भी तमाम आरोप लगते रहे हैं।
इसके अलावा अब एक नए तरह का मामला सामने आया है। दरअसल मुंबई के आरटीआई एक्टिविस्ट मनोरंजन रॉय ने करीब 13 महीने पहले 27 मार्च 2018 को बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने ईवीएम की खरीद, स्टोरेज और डिलीवरी में शामिल प्रक्रियाओं के बारे में जानना चाहा था। इसके लिए हाईकोर्ट से मांग की गई थी कि डाटा उपलब्ध कराने के लिए वह संबंधित संस्थाओं को आदेश दे। इसी क्रम में मिले डाटा में यह जानकारी सामने आई है कि ईवीएम सप्लाई करने वाली कंपनियों ने जो मशीनें चुनाव आयोग को भेजने के लिए तैयार की उनमें से 19 लाख ईवीएम चुनाव आयोग के पास नहीं पहुंची हैं। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है।
आरटीआई से हुआ खुलासा
दरअसल, सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी में ईवीएम सप्लाई करने वाली दो कंपनियों और चुनाव आयोग के आंकड़ों में बड़ी असमानता सामने आई है। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक कंपनियों ने जितनी मशीनों की आपूर्ति की है और चुनाव आयोग को जितनी मशीनें मिली हैं उनमें करीब 19 लाख का अंतर है।
यह आरटीआई मुंबई के एम रॉय ने लगाई थी। इसके जवाब में जो जानकारी उन्हें मिली उसमें ईवीएम की खरीद-फरोख्त में बेहद बड़ी असमानता देखने को मिला है।इससे पता चलता है कि यह एक बड़ी गुत्थी है, जो उलझती जा रही है।
असल में चुनाव आयोग (EC) दो सार्वजनिक क्षेत्र के ईवीएम आपूर्तिकर्ताओं इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL), हैदराबाद और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), बेंगलुरु से ईवीएम खरीदता है। हालांकि दोनों कंपनियों और ईसी द्वारा RTI में दिए गए आंकड़े में बड़ा अंतर सामने आया है।
रॉय के मुताबिक 1989-1990 से 2014-2015 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो चुनाव आयोग का कहना है कि उन्हें बीईएल से 10 लाख 5 हजार 662 EVM प्राप्त हुए. वहीं बीईएल का कहना है कि उसने 19 लाख 69 हजार 932 मशीनों की आपूर्ति की। दोनों के आंकड़ों में 9 लाख 64 हजार 270 का अंतर है। दूसरी ओर ठीक यही स्थिति ECIL के साथ भी रही, जिसने 1989 से 1990 और 2016 से 2017 के बीच 19 लाख 44 हजार 593 ईवीएम की आपूर्ति की। लेकिन चुनाव आयोग ने कहा कि उन्हें केवल 10 लाख 14 हजार 644 मशीनें ही प्राप्त हुईं। यहां 9 लाख 29 हजार 949 का अंतर रहा।
भुगतान में भी बहुत बड़ी गड़बड़ियाँ
ईवीएम को लेकर किए गए भुगतान में भी गड़बड़ियाँ सामने आईं। 2006-07 से 2016-17 तक यानी 10 साल की अवधि में चुनाव आयोग और बीईएल के बीच चुनाव आयोग की ओर से ईवीएम पर किया गया कुल ख़र्च 5,36,01,75,485 रुपये बताया गया है, जबकि बीईएल की ओर से आरटीआई के जवाब में 20 सितंबर, 2017 को दिए गए उत्तर में कहा गया है कि उसने 6,52,56,44,000 का भुगतान प्राप्त किया है। इससे यह पता चलता है कि बीईएल को 116.15 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया गया।
चुनाव आयोग ने ईसीआईएल की ओर से ईवीएम को प्राप्त करने पर किए गए ख़र्च के सवाल का जवाब नहीं दिया। दिलचस्प बात यह है कि ईसीआईएल ने कहा कि उसने 2006-07 और 2013-14 के बीच किसी भी राज्य को एक भी ईवीएम की आपूर्ति नहीं की है। फिर भी, ईसीआईएल की ओर से दिए गए एक जवाब से पता चलता है कि मार्च और अक्टूबर के बीच उसे ईवीएम की आपूर्ति के लिए चुनाव आयोग के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार की ओर से 50.64 करोड़ रुपये मिले।
मार्च 2018 में जनहित याचिका दायर करने से पहले रॉय ने जो इतनी मैराथन आरटीआई कसरत की थी, उसमें उन्होंने चुनाव आयोग से राज्यवार ईवीएम की यूनिट आईडी संख्या (बैलट यूनिट (बीयू) सहित), नियंत्रण इकाई (सी.यू) और वीवीपैट के बारे में जानकारी माँगी थी। साथ ही परिवहन की चालान कॉपी और ट्रांसपोर्टर के नाम और किस माध्यम से विभिन्न राज्यों को आपूर्ति की जाती है, इस बारे में जानकारी माँगी थी। चुनाव आयोग की ओर से जो जवाब दिया गया उसमें वर्ष-वार बजट प्रावधान और ख़र्च के बारे में जानकारी दे दी गई, बजाय इसके कि जो जानकारी माँगी गई थी। रॉय ने जो जनहित याचिका दायर की थी, उसमें उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियों से चुनाव आयोग को मिलीं ईवीएम के आंकड़ों में भारी गड़बड़ियों को जाँचने की माँग की थी।
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