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BiG NEWS – बिहार में भ्रष्टाचार की सफाई का जिसको मिला है काम उसके ही दामन पर एक बड़े घोटाले का दाग, क्यो नही हुई जांच?

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विशेष सतर्कता इकाई के आईजी रत्न संजय कटियार पर उसी मुजफ्फरपुर में ही लगे है घोटाले के दाग

पटना Live डेस्क। बिहार में सुशासन की सरकार है। कानून को अपना काम करने की घोषित पूर्ण आज़ादी है इस बात की मुनादी है। तो दूसरी तरफ बाल विवाह और दहेज, शराब और भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलेरेन्स की नीति का हिंदी,उर्दू और कही कही अंग्रेजी में खूब बड़ा बड़ा बैनर और पोस्टर लगा है।वही दूसरी तरफ  नीतीश कुमार की सरकार पर आईएएस और आईपीएस यानी नौकरशाही की सरकार होने का आरोप विपक्ष लगातार रहता है। तो दूसरी तरफ सूबे में नौकरशाही पर जमकर लूट खसोट के आरोप अवाम और विपक्षी दल खूब लगाते है। खैर,विपक्ष का काम आरोप लगाना है। बात सरकार के प्रयासों की करते है। सरकार ने निगरानी विभाग के तहत भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की मुहिम चला रखी है। इसी विभाग के तहत बिहार की विशेष सतर्कता इकाई (एसयूवी) का भी गठन किया गया है। इसका काम सूबे बड़े प्रशासनिक अधिकारियों पर नज़र रखना, अपने ओहदे के इस्तेमाल के जरीये  नाजायज कमाई का पता लगाकर कानूनी कार्रवाई करना है। जो एक बेहद सराहनीय पहल है। लेकिन इसके उलट एक बेहद गड़बड़झाला वाला एक सच ये भी है।

दरसअल, सोमवार को बिहार की विशेष सतर्कता इकाई (एसयूवी) की एक टीम ने आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में बिहार में मुजफ्फरपुर के एसएसपी विवेक कुमार के आवास सहित विभिन्न ठिकानों पर सोमवार को छापे मारे। जो लगातार चौथे दिन भी जारी है। आय से 300 प्रतिशत अधिक संपत्ति होने की जानकारी पर छापेमारी की गई। बिहार में पहली बार किसी सर्विंग आईपीएस अधिकारी पर छापा मारा गया है। अबतक IPS विवेक कुमार ने की जमकर कमाई, 80 बैंक खातो के जरिये किया करोड़ो के ट्रांजेक्शन और बनाई 33.31 करोड़ की संपत्ति का पता चला है। जबकि यह आंकड़ा अभी और बढ़ने की संभावना है।

स्पेशल विजिलेंस के आइजी रत्न संजय ने किया नेतृत्व 

स्पेशल विजिलेंस के आइजी रत्न संजय के नेतृत्व में एसएसपी आवास में दबिश दिया। दो वाहनों में अधिकारी व एक बड़े वाहन में जवान पहुंचे हैं। उनके साथ ही दो एसपी स्तर के अधिकारी भी टीम में शामिल हैं।एसएसपी पर शराब माफियाओं से मिलीभगत के आरोप पर यह कार्रवाई चल रही। एसएसपी विवेक कुमार पर लगातार थाना बेचने का भी आरोप लगता रहा है।जांच के क्रम में पता चला है कि विवेक कुमार के नाम से 33.31 करोड़ की चल सम्पति है जबकि उनके खातों से 1.21 करोड़ का ऐसे ट्रांसजेक्शन का पता चला है जिसे “काइट फ्लाइंग ट्रांसजेक्शन ” कहा जाता है।अगर अब तक कि कुल सम्पति देखे तो 4 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का पता चल चुका है।

                     उल्लेखनीय ही मुजफ्फरपुर आईजी विजिलेंस के लिए बेहद जाना पहचाना शहर है। बतौर एसपी रत्न संजय यहाँ पदास्थित रह चुके है और यही पर निगरानी के जांच के इनपर गबन के छीटे पड़े है।

क्या है मामला

वर्तमान दौर में बिहार के सबसे चर्चित जिलो में शुमार
मुजफ्फरपुर में बिहार कैडर के 2007 बैच के आईपीएस अधिकारी और अब निलंबित में बतौर एसएसपी विवेक कुमार पर प्रिवेंशन ऑफ करप्शन कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज कर देश भर में उनके कई ठिकानों पर छापेमारी की गई। न केवल उनके पैतृक आवास बल्कि उनके ससुराल में भी स्पेशल विजिलेंस टीम ने रेड की और अब भी जारी है। लेकिन ये वही मुजफ्फरपुर है जहाँ करोड़ो के एक घपले आईपीएस रत्न संजय पर छीटे पड़े।

दरसअल, मुजफ्फरपु पुलिस ऑफिस में हुए करोड़ों रुपये के घोटाले का मास्टर माइंड भले ही लेखापाल सुशील चौधरी रहा हो,लेकिन विपत्रों पर हस्ताक्षर करने वाले आधा दर्जन डीएसपी और एक एसपी भी लपेटे में आ गए। निगरानी अदालत ने लेखापाल के अलावा वरीय अधिकारियों की भूमिका की भी जांच करने की बात कही है। निगरानी विभाग के अपर पुलिस अधीक्षक अश्विनी कुमार ने एसपी निगरानी और अन्वेषण ब्यूरो को रिपोर्ट भेजी। उसमें कई खुलासे किए गए।


मुजफ्फरपुर पुलिस ऑफिस में हुए करोड़ों रुपये के घोटाले के ‘छींटे’ तत्कालीन एसपी रत्‍‌न संजय समेत कई पुलिस अधिकारियों के दामन पर भी पड़े। यही नहीं, इसमें कोषागार व बैंककर्मियों की संलिप्तता भी सामने आई। संदेह के घेरे में आए अधिकारी व कर्मचारियों पर विभागीय कार्रवाई की तलवार अब भी लटक रही है।वही इस जांच का जिम्मा संभालने वाली निगरानी विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्य अभियुक्त सुशील कुमार चौधरी ही अफसरों के बीच राशि बंटवारे का खुलासा कर सकता है। निगरानी कोर्ट के आदेश पर इसकी जांच निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के एसपी को सौंपी गई।

घोटाले का सच

पुलिस ऑफिस के 47 विपत्रों से 70 करोड़, 1 लाख 17 हजार 728 रुपये की निकासी हुई। राशि की निकासी तत्कालीन एसपी रत्न संजय एवं निकासी एवं व्ययन अधिकारी द्वारा की गई थी। कोषागार से राशि निकासी का खेल वित्तीय वर्ष 2007-08 से 2009-10 के बीच हुआ। उल्लेखनीय ही कि इन वित्तिय वर्षो में मुजफ्फरपुर के SP के तौर पर आईपीएस रत्न संजय पोस्टेड रहे। दरअसल रत्न संजय दिन -मंगलवार तारीख – 13 सितंबर वर्ष 2005 से लेकर 31मार्च 2007 दिन शनिवार तक मुजफ्फरपुर के SP के पद पर तैनात रहे।

क्या था खुलासा

कोषागार से 66 करोड़ 76 लाख, 60 हजार 84 रुपये की निकासी हुई। छानबीन में पता चला कि अंतिम विपत्र सितंबर 2010 में 3 करोड़ 24 लाख 57 हजार 644 रुपये की निकासी नहीं हो सकी। 3 साल की अवधि में 7 करोड़ रुपये का गबन हुआ क्योंकि वेतन मद के रूप में पुलिसकर्मियों को राशि बांटी गई थी। तत्कालीन एसपी 1998 बैच बिहार कैडर रत्न संजय के हस्ताक्षर से (विपत्र संख्या 151 / 07-08) 1 करोड़ 2 लाख 74 हजार 605 रुपये की निकासी हुई। वहीं एक अन्य निकासी एवं व्ययन अधिकारी सह पुलिस उपाधीक्षक मनीष कुमार ने लेखा पदाधिकारी का प्रभार लेने के चार दिन बाद 3 करोड़ 24 लाख 57 हजार 644 रुपये के विपत्र पर हस्ताक्षर किया। इसी बीच घोटाला उजागर होने की वजह से राशि की निकासी नहीं हो सकी। जांच पदाधिकारी ने निगरानी एसपी को सुपुर्द रिपोर्ट में कहा है कि गबन के उद्देश्य से राशि बढ़ाकर बनाए गए विपत्रों पर हस्ताक्षर करने, पारित करने, पोस्ट करने के कार्य में शामिल बैंक व विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई करने के लिए विभाग स्वतंत्र है।

फिर क्या हुआ ?

निगरानी ब्यूरो के मुताबिक मुजफ्फरपुर जिला के लेखापाल सुशील कुमार चौधरी द्वारा कोषागार विपत्र द्वारा 7 करोड़ से अधिक के सरकारी धन का गबन किया गया था।इसमें महिला सिपाही बेबी कुमारी और शकुंतला देवी भी सह अभियुक्त थीं। इस संबंध में 2010 में मामला दर्ज किया गया था। दोनों महिला सिपाहियों के बैंक खातों में गबन की राशि ट्रांसफर की गई थी। हालांकि बाद में लेखापाल के साथ ही निगरानी ब्यूरो ने इन दोनों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था।

तदुपरांत, जांच की प्रक्रिया के तहत समय बीतता गया और फिर जिले में सात करोड़ सरकारी राशि के गबन मामले में फिर अभियुक्त महिला सिपाही शकुंतला देवी की संपत्ति को जब्त कर लिया गया।फिर पटना उच्च न्यायालय की ओर से प अभियुक्त की अपील खारिज किए जाने के बाद निगरानी ब्यूरो ने यह कार्रवाई की गई। जानकारी के अनुसार 1.33 करोड़ की चल-अचल संपत्ति में कई भूखंड और मकान शामिल हैं। अचल संपत्ति का तत्कालीन मूल्य 47.76 लाख था। फिलहाल, इन संपत्तियों का बाजार भाव 3 करोड़ रुपए से अधिक है।

लेकिन निगरानी अदालत ने लेखापाल के अलावा वरीय अधिकारियों की भूमिका की भी जांच करने की बात कही पर कुछ नही हुआ है। फिर वक्त के साथ इस गबन पर धूल की मोटी परत चढ़ती गई और फिर जिनपे इस घपले के छीटे पड़े वही बतौर आईजी बन गए निगरानी विभाग के ..क्योकि ये जो मेरा बिहार है। 

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