बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

क्या है शरद यादव के मन में?

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पटना Live डेस्क. बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई में गठित एनडीए सरकार से शरद यादव खफा हैं. न कुछ बोल रहे हैं,न नीतीश कुमार को समर्थन दे रहे हैं और न ही नवगठित सरकार के समर्थन में कुछ बोल रहे हैं. अब शरद यादव क्यों खफा हैं यह तो शरद ही जाने? लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि वो जिस पार्टी में हैं उनके बारे में कुछ नहीं बोल रहे लेकिन लालू प्रसाद से उनकी बातचीत हुई और उन्होंने लालू प्रसाद को समर्थन देने की बात कही है.अगर यह बात सही है तो ये वाकई नीतीश कुमार के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है. जाहिर है वो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं ऐसे में उनका नीतीश कुमार की राय से अलग होकर किसी दूसरी पार्टी को समर्थन करना निश्चित ही जेडीयू के लिए और नीतीश कुमार के लिए मायने रखता है. शरद की नाराजगी के पीछे दो वजहें बतायी जा रही हैं. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ जाने से पहले उऩसे परामर्श नहीं किया और अकेले ही फैसला ले लिया. दरअसल शरद यादव बीजेपी से साल 2015 में नाता टूटने के बाद बीजेपी के प्रखर आलोचकों के तौर पर उभर कर सामने आए हैं. राष्ट्रीय मंचों पर बीजेपी की खिलाफत और संयुक्त विपक्षी मोर्चे के गठन में उनका अहम योगदान है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ उनकी राजनीतिक बॉंडिग भी इन दिनों जबर्दस्त रही है. सो शरद यादव खुद को इस स्थिति में असहज पाते हैं. दूसरे लालू यादव की मदद से ही वो फिलहाल राज्यसभा के सदस्य हैं सो उनके मन में लालू प्रसाद के लिए सहानुभूति हो सकती है. दूसरे कहा ये भी जा रहा है कि शरद यादव नीतीश कुमार की कार्यप्रणाली से खासे नाराज हैं. उनको इस बात का भी मलाल है कि नीतीश कुमार ने उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाकर खुद गद्दी संभाल ली थी. ऐसे में पिछले कई महीनों से दिल में जमा गुबार अब निकल कर बाहर आ रहा है. लेकिन जिस तरीके की नीति पर वो चल रहे हैं उससे जेडीयू का नुकसान हो सकता है. पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार विपक्ष की 18 पार्टियों से बातचीत नहीं कर रहे थे. ऐसे में जदयू की तरफ से शरद यह काम देख रहे थे. उन पार्टियों के साथ मीटिंग्स में शरद यादव लगातार कहते रहे कि जदयू की भी पहली लड़ाई बीजेपी और नरेंद्र मोदी से ही है. उन्हें यह भी लग रहा है कि पिछले कुछ दिनों से विपक्षी पार्टियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के बाद अब वो उऩ्हें क्या जवाब देंगे.

शरद यादव पिछले कुछ महीनों से संसद में भी चुपचाप ही दिखे. मीटिंग और किसी कार्यक्रम में नेताओं और लोगों से मिलते वक्त वह ज्यादा बातचीत नहीं कर रहे. जिस दिन नीतीश कुमार एनडीए में वापस आए उस दिन शरद यादव एक कार्यक्रम में थे. लेकिन वह वहां ज्यादा देर नहीं रुके.

इसके अगले दिन संसद में भी वह दूसरे दरवाजे से अंदर घुसे. माना जा रहा है कि उन्होंने ऐसा मीडिया वालों से बचने के लिए किया. शरद का यह बर्ताव अजीब इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि आमतौर पर वह मीडिया से खुलकर बात करते रहे हैं. लेकिन अब पिछले तीन दिनों से वह मीडिया के सामने नहीं आए हैं. बिहार में सरकार गठन के बाद केरल से पार्टी के राज्यसभा सांसद के साथ उऩ्होंने अपने आवास पर विक्षुब्धों की बैठक भी की जिसमें पार्टी के दूसरे नेता अली अनवर भी शामिल हुए. हालांकि शरद को मनाने की कोशिश भी शुरु हो चुकी है. कयास लगाए जा रहे हैं कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उन्हें फोन कर उन्हें मनाने की कोशिश की कहा यह भी जा रहा है कि नीतीश कुमार ने भी उन्हें फोन कर अपनी स्थिति बताई है. लेकिन फिलहाल वो चुप हैं. मीडिया से बच रहे हैं.

 

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