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नीतीश कुमार के खिलाफ जनसंवाद यात्रा से कुछ खास हासिल नहीं कर पाए शरद,अपनों ने भी छोड़ा साथ

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पटना Live डेस्क. जनसंवाद यात्रा कर अपनी राजनीतिक जमीन तालशने निकले शरद यादव दिल्ली लौट चुके हैं. भारी बारिश के बीच कुल आठ जगहों पर अपने समर्थन का तापमान नापने निकले शरद यादव इस यात्रा में ज्यादा कुछ हासित नहीं कर सके. या यूं कह लें कि शरद की यह जनसंवाद यात्रा समर्थकों से जनसंवाद कायम नहीं कर सकी. खुद को असली जदयू बता रहे शरद को यह भरोसा था कि पार्टी समर्थकों और राजद समर्थकों के साथ भीड़ जुटाकर वो नीतीश कुमार पर दबाव डाल पाएंगे लेकिन यात्रा के दौरान ऐसा कुछ लगता नहीं दिखा. जेडीयू समर्थकों ने जहां उनसे दूरी ही बनाए रखी वहीं राजद समर्थकों ने जरुर उनका हौसला बढ़ाया. शरद की इस यात्रा दरअसल नीतीश कुमार पर दबाव बनाने वाली यात्रा कह लें तो यह ज्यादा सही होगा. वो इस ख्वाब में थे कि राजद समर्थकों के साथ मिलकर वो अपनी बिरादरी की बहुतायत वाले इलाकों में घूमकर भीड़ जुटाएंगे और मुख्यमंत्री पर दबाव डाल पाएंगे. जरा उनकी यात्रा के इलाकों पर नजर डालिए. जनसंवाद यात्रा के लिए उन्होंने उस इलाके को ही चुना जिस इलाके में यादव मतदाता की तादाद संख्याबल में अधिक थी. जाहिर है वो जान रहे थे कि जाति के नाम पर वो सहानुभूति जुटा लेंगे और अपने पक्ष को मजबूती से रख सकेंगे. नहीं तो आखिर क्या वजह थी कि जनसंवाद यात्रा करने निकले शरद महज कुछ इलाकों तक ही सिमट गए. जगहृ-जगह उन्होंने कहा कि राज्य की ग्यारह करोड़ जनता नीतीश कुमार के फैसले को स्वीकार नहीं करेगी लेकिन उऩ्होंने जनसंवाद कायम भी किया तो इलाका चुनकर. हैरान करने वाली बात यह भी है कि उनके इलाके मधेपुरा में उनके निकटतम साथी नरेंद्र नारायण यादव ने भी उनसे दूरी बना ली और उनके साथ यात्रा में शरीक नहीं हुए. शरद जिन-जिन जगहों पर गए वहां न तो बहुतायत तादाद में उऩके समर्थक उऩके समर्थन में निकले और न ही कोई जेडीयू का नेता. हां रमई राम और अर्जुन राय जरुर उनके समर्थन में उऩकी यात्रा के दौरान साथ रहे लेकिन दूसरा कोई भी बड़ा नेता शरद के समर्थन में उनके साथ नहीं आया. यात्रा के दौरान समर्थक नेताओँ का साथ नहीं मिलने की पीड़ा शरद के बयानों से साफ जाहिर भी हुई. बिना नाम लिए उऩ्होंने उर्जा मंत्री विजेंद्र यादव और आलमनगर विधायक नरेंद्र नारायण यादव पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि खेत-खलिहान बेचकर जिन्हें जिताया,आज वो खिसक गए. जिन्हें चुनाव लड़ने से जिताने तक का काम किया,आज वो ही लालच के सागर में गोते लगा रहे हैं. कुछ आठ जिलों का दौरा कर परिणाम में शिफर पाए शरद इतने हतोत्साहित हो गए कि वो यात्रा से लौटकर सीधे एयरपोर्ट चले गए. इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शाम आठ बजे की फ्लाइट पकड़ने वाले शरद शाम चार बजे से एयरपोर्ट पर प्लेन का इंतजार करते रहे. अपनी यात्रा के दौरान शरद यादव ने कई बार तल्ख तो कई बार भावनात्मक बातें भी कीं. मतलब था कि एक बार फिर से जातिवाद की आवाज बुलंद करो और नीतीश कुमार को कटघड़े में खड़ा करो. लेकिन यात्रा से शरद यादव को ज्यादा कुछ हासिल होता नहीं दिख रहा.

अब शरद अपनी पकड़ तलाशने के लिए दिल्ली में साझा विरासत कॉन्फ्रेंस की तैयारियों में जुटे हैं इसका भी मकसद वही है. बिहार दौरे का मकसद स्थानीय स्तर पर अपनी स्वीकार्यता तय करनी थी जबकि दिल्ली में आयोजित इस कॉन्फ्रेंस का मकसद केंद्रीय स्तर पर अपनी स्वीकार्यता साबित करने की है. दावा किया जा रहा है कि इस सम्मेलन में 17 विपक्षी पार्टियों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, जहां एक बार फिर मात खाए विपक्षी एकता की बातें दोहारायी जाएंगी और एकजुट होने के दावे किए जाएंगे. अब राजनीतिक पंडितों की नजरें शरद के इस सम्मेलन पर लगी हैं कि आखिर इस मकसद में वो कितने सफल हो पाते हैं. शरद समर्थक और जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव पद से हटाए गए अरुण श्रीवास्तव की मानें तो इस सम्मेलन का मकसद समाजवादी विचारधारा से जुड़ें दलों के विलय का एकबार फिर प्रयास करना है. लेकिन इस तरह की कोशिश साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले भी हुई थी लेकिन उसका नतीजा क्या निकला यह सबके सामने है.

शरद यादव लगातार कोशिश में हैं कि किस तरह नीतीश कुमार को नीचा दिखाया जाए. शरद के करीबी सूत्र बताते हैं कि एक बार फिर शरद अपनी राजनीतिक नब्ज टटोलेंगे और और बिहार का दौरा करेंगे. शरद का यह दौरा 19 अगस्त के जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद से संभावित है. इस बीच जेडीयू ने शरद के समर्थन में आगे आने वाले लोगों की पहचान शुरु कर दी है साथ ही उनके खिलाफ कार्रवाई भी आरंभ कर दी है. शरद अब अपनी आगे की रणनीति में कहां तक सफल हो पाते हैं यह तो समय बताएगा लेकिन उऩकी बिहार यात्रा उऩके मकसदों को निश्चित ही पूरा नहीं कर पायी.

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