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एक पुलिस स्टेशन ऐसा भी है, जहां 18 साल से कोई थानेदार अपनी कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नही जुटा पाया, आखिर क्यो? पढ़े

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पटना Live डेस्क। दुनिया को भले ही चांद पर पहुचे दशक बीत गए, हालात ये है कि मानव जल्द ही मंगल ग्रह पर बस्तियां बसाने की तैयारी कर रहा है। इस दौर में भी जब विज्ञान की तरक्की अपने चरम पर है।लेकिन भारत मे अब भी अंधविश्वास और धार्मिक मान्यताओं के आगे सारी वैज्ञानिकता फुस्स होकर घुटने टेक देती है। आप सोच रहे होंगे आखिर हम ये तमाम दलीलें क्यो दे रहे है। आइए हम बताते है आखिर इन दलीलों का कारण क्या है।

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मोक्षदायनी गंगा के तट पर बसे एक बेहद पुराने शहर में एक थाना ऐसा भी है कि जहा थानेदार की कुर्सी पर स्वयं थानेदार भी आज तक बैठने की हिमाकत नहीं जुटा पाया है। हद तो ये की थानेदार की बात छोड़िये बनारस जिले में पदास्थित पुलिस विभाग का अच्छे से अच्छा अधिकारी और आईपीएस अधिकारी भी इस कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नही जुटा सका और वर्त्तमान में भी विश्वेश्वरगंज स्थित कोतवाली पुलिस स्टेशन के प्रभारी राजेश सिंह का कहना है कि ये परंपरा पिछले एक दशक से भी ज्यादा सालों से चली आ रही है। यहां कोई भी थानेदार तैनात रहा वो अपनी कुर्सी पर नहीं बैठा। कोतवाल की कुर्सी पर हमेशा शहर के कोतवाल बाबा काल भैरव विराजते हैं।
स्थानीय आम लोगों का मानना है कि आने-जाने वालों पर बाबा खुद नजर बनाए रखने के कारण भैरव बाबा को यहा का कोतवाल भी कहा जाता है। बाबा की इतनी मान्यता है कि पुलिस भी बाबा की पूजा करने से पहले कोई काम शुरु नही करती है।


तभी तो इस थाने में थानेदार की कुर्सी पर बाबा काल भैरव अपना आसन पिछले 18 सालों से जमाए हुए हैं। वही थानाध्यक्ष या प्रभारी अफसर बगल में कुर्सी लगाकर बैठते हैं। हालात और मान्यताओं का चरम ये है कि आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्षो वर्ष बीत गए पर इस स्टेशन के निरीक्षण में कोई आईपीएस नही आया है।

इस अलिखित नियम और अनोखी परंपरा का पालम कितनी शिद्दत से थानेदारों द्वारा किया जाता है इस बाबत पिछले 18 सालों से तैनात एक कॉन्स्टेबल का कहना है कि मैंने अभी तक किसी भी थानेदार को अपनी कुर्सी पर बैठते नहीं तो नही देखा है। इन वर्षों में जो भी थानेदार यहा आये सभी बगल में कुर्सी लगाकर ही बैठा है। हालांकि, इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की ये कोई नहीं जानता है। बस लोगों का ऐसा मानना है कि यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है।

काशी नगरी का लेखा-जोखा बाबा के पास

माना जाता है कि  बाबा विश्वनाथ ने पूरी काशी नगरी का लेखा-जोखा का जिम्मा काल भैरव बाबा को सौंप रखा है। यहां तक कि बाबा की इजाजत के बिना कोई भी व्यक्ति शहर में प्रवेश नहीं कर सकता है।
माना जाता है कि साल 1715 में बाजीराव पेशवा द्वारा मंदिर का पुनःर्निर्माण हुआ था।यहां आने वाला हर बड़ा प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी सबसे पहले बाबा के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेता है। बता दें कि काल भैरव मंदिर में हर दिन 4 बार आरती होती है। जिसमें रात के समय होने वाली आरती सबसे प्रमुख होती हैं। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। खास बात यह है कि आरती के समय पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती। बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है। साथ ही एक अखंड दीप बाबा के पास हमेशा जलता रहता है।

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