पटना Live डेस्क. पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में बड़ी-बड़ी रैलियां हुई हैं..उसी तरह रविवार को भी राजद की एक और रैली हुई..साल 1990 के दशक में भी राजद की तरफ से ही बड़ी रैलियों का आयोजन इसी गांधी मैदान में किया गया था… राजद की रविवार की रैली भी उसी कड़ी में महज एक रैली थी..मतलब है कि ऐसा कुछ अलग से नहीं लगा जिसे गांधी मैदान का इतिहास अपने दामन में समेटना चाहे…लेकिन इस रैली में दो बातें काफी महत्वपूर्ण हुईं..पहली बात, लालू प्रसाद की तरफ से भीड़ जुटाकर अपने दोनों बेटों को राजनीति में स्थापित करने का परोक्ष तौर पर औपचारिक एलान…और दूसरी, लालू प्रसाद का मार्गदर्शक की भूमिका में नई पहचान…अब सवाल यह था कि दोनों बेटों को तो लालू प्रसाद ने हजारों की भीड़ के सामने औपचारिक तौर पर अपना उत्तराधिकारी बनाने का परोक्ष रुप से एलान कर दिया..लेकिन ऐतिहासिक गांधी मैदान में जमा भीड़, और खुद गांधी मैदान इस बात की तस्दीक करना चाहता था कि पहली बार इतने लोगों के सामने लालू प्रसाद के दोनों उत्तराधिकारी किस तरह से जनता की उम्मीदों पर खरा हो पाते हैं…दो साल पहले अचानक से तेजस्वी यादव नई महागठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम बना दिए गए..पद मिलने के बाद बिना किसी विवादों के उनका मंत्रालय कामकाज करता रहा…लेकिन अभी महीना भर पहले महागठबंधन सरकार के गिरते ही अचानक लालू प्रसाद के दोनों बेटे संघर्ष की राह पर उतर आए..अपनी विरासत को बचाने लालू प्रसाद के दोनों बेटों ने संघर्ष का रास्ता चुना..जनादेश अपमान यात्रा निकालकर जिलों की यात्रा की और अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की..कई जगहों पर उन्हें भरपूर समर्थन भी मिला..एक तरह से देखा जाए तो खासकर तेजस्वी में लालू प्रसाद की विरासत को बचाने का माद्दा दिखाई देता है..वो लालू प्रसाद के परंपरागत समर्थकों को सम्मोहित करते हुए दिखाई देते हैं…भविष्य की उम्मीद जगाते हैं..इसी भरोसे को लेकर गांधी मैदान में उऩका भाषण शुरु में ही करवाया गया…जब भाषण देने खड़े हुए तेजस्वी तो खूब तालियां बजीं.. लोगों को लगा कि तेजस्वी अपनी तेज के मुताबिक भाषण देंगे और कुछ नया कहेंगे..लेकिन तेजस्वी ने जैसे ही लिखा हुआ भाषण पढ़ना शुरु किया..जमा लोगों में, खासकर युवाओं में निराशा जगने लगी…लोग उनमें नया लालू ढूंढने की कोशिश में थे..लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी…लिखे हुए भाषण को पढ़कर तेजस्वी न तो लय बना पाए और न ही मौजूद लोगों पर कोई छाप छोड़ सके…अपने भाषण के ज्यादे हिस्से में वो वही पुरानी बातों को दोहराते रहे…भाषण का अधिकतर समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर केंद्रित रखकर वो सिर्फ अपनी झुंझलाहट को ही बयां करते रहे..अभी वो महज 28 साल के हैं…हो सकता है समय के साथ-साथ वो ज्यादा परिपक्व बन जाएं…वहीं लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप का अपना अंदाज है…उन्हें भी कई बड़े नेताओं से पहले माइक थमाकर लालू प्रसाद ने बेटों को राजनीति में स्थापित करने का खुला उदाहरण दिया..लेकिन तेजप्रताप ने भी निराश ही किया..कुछ नया कहने को नहीं..बस वही लालू का ठेठ अंदाज.. ऐसा लग रहा था कि शायद किसी ने यह कह दिया हो कि दोनों की भविष्य की राजनीति लालू की कॉपी करके ही आगे बढ़ेगी…तेजप्रताप क्या बोले..किसी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया..और न ही कुछ लोगों को समझ आया..हां तेजप्रताप ने शंखनाद कर जरुर लंबे भाषणों से उब चुके समर्थकों के चेहरे पर ताजगी लाने का काम किया…मंच पर पूरा लालू का कुनबा था..तमाम विपक्षी दलों के छोटे-बड़े नेता मंच पर मौजूद थे..अलग-अलग राज्यों के नेताओं के भाषण भीड़ को बोर ही करते रहे…सब खुद को नरेंद्र मोदी द्वार सताए जाने की व्यथा का बखान करते रहे…जिसमें राजद के युवा समर्थकों की कोई खास रुचि नहीं दिखी…ऐसे में सबको लालू प्रसाद की बारी का इंतजार रहा…जो स्वाभाविक रुप से सबसे बाद में आए…अगर तमाम दूसरे नेताओं के भाषणों को देखा जाए तो सही मायने में सबसे सधा भाषण लालू प्रसाद ने ही दिया..उन्होंने वो सबकुछ कहा जो उऩके समर्थक सुनना चाह रहे थे..लेकिन यह वो लालू नहीं थे जो 30 अगस्त साल 2015 की महागठबंधन की रैली में गरजे थे..उस मंच पर नीतीश कुमार..सोनिया गांधी..और राहुल गांधी भी थे..लेकिन रविवार को दूसरे कारणों से ये सारे दिग्गज इस मंच पर नहीं थे..खैर लालू प्रसाद के भाषण ने समर्थकों के इंतजार को राहत पहुंचायी..लेकिन इस रैली को देखकर और सुनकर यह साफ लगा कि सितारे ही शो का शानदार और यादगार बनाते हैं,कोई और नहीं…
Related Posts
Comments are closed.