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राजद-जदयू में फूट का मामला अब सुलह सफाई के दौर से निकला आगे,सोनिया गांधी की कोशिश भी महागठबंधन को नहीं बचा पाएगी?

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पटना Live डेस्क। सूबे की महागठबंधन सरकार पर महासंकट बढ़ता है।राजद द्वारा तेजस्वी के इस्तीफे पर स्पष्ट इनकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की “भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस” की नीति के बीच का तकरार सूबे के तीन दलों की सरकार के भविष्य पर नीत नए टकराव को जन्म दे रहा है। वही तीनो दलों के विधायक और मंत्रियों के बीच भी सरकार को लेकर अनिश्चितता की स्थित बन गई है। जदयू और राजद के बीच पल पल बदलते सियासी हालात को संभालने की कवायद में उस वक्त उम्मीदें बढ़ गई जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरफ से बिहार में महागठबंधन की दरार को पाटने की कोशिश शुरू हुई। सोनिया ने फोन पर महागठबंधन के दो ध्रुव नीतीश कुमार और लालू यादव से बात कर दोनों के बीच सुलह की कोशिश की। दोनों नेताओं से बातचीत के दौरान सोनिया ने गठबंधन को हर कीमत बचाने की गुहार लगाई। इस कॉंग्रेस अध्यक्ष द्वारा सुलह कराने की कवायद की पुष्टी जदयू के महासचिव के सी त्यागी ने भी की।लेकिन,पूरी कवायद और अनुरोध बेअसर दिख रहा है।

                     रांची से पटना लौटे राजद सुप्रीमो लालू यादव ने सोनिया गांधी की कवायद यानी महागठबंधन को कायम रखने की कोशिश को दरकिनार करते हुए मीडिया से बातचीत में स्पष्ट कर दिया कि उनकी कोई बातचीत सोनिया गाँधी से नहीं हुई है। पहले यह कहा जा रहा था कि शुक्रवार को सोनिया गाँधी ने सुलह-सपाटे के लिए लालू प्रसाद और नीतीश कुमार से कई दफे बातचीत की है। उधर, सोनिया गांधी की तरफ से नीतीश और लालू को एक करने की कोशिश हो रही थी तो दूसरी तरफ दोनों दलों के नेताओं द्वारा एक बार फिर से एक दसरे के बाबत सवाल उठाते हुए नीत नए सियासी हमले करते हुए सुलह सफाई हालात को उलझाने की कोशिश की जाने लगी।

                     दोनों तरफ से जारी बयानबाजी में उस वक्त नई तुर्शी आ गई जब जदयू प्रवक्ता नीरज शेखर पूछा कि लालू परिवार की अकूत संपत्ति का श्रोत क्या है?इसका खुलासा किया जाए। नीरज शेखर ने कहा कि हम नैतिक बल के बब्बर शेर हैं,करप्शन से समझौता नहीं कर सकते। जदयू की तरफ से आए इस आधिकारिक बयान का मतलब साफ लग रहा है कि किसी भी सूरत में बात बनने वाली नहीं है।हालात इशारा कर रहे है कि अपनी “भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस” की नीति के तहत जदयू किसी भी तरह से तेजस्वी यादव को बख्शने के मूड में नहीं है। लिहाजा अब यह बिल्कुल साफ हो चुका है कि “भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस” की नीति पर चलते हुए जदयू  तेजस्वी के इस्तीफे से कम पर राजी होगा। यानी महागठबंधन तभी बचेगा जब राजद तेजस्वी के इस्तीफे पर राजी होगी। वही दूसरी तरफ राजद ने स्पष्ट कर दिया है इस्तीफे का सवाल ही नही उठता है। मतलब साफ है अब महागठबंधन के बने रहने की गुंजाइश न के बराबर है। सनद रहे कि जदयू राजद के उस दलील के बाद से काफ़ी आक्रामक हो गया है, जब से राजद ने अपने 80 विधायको और दल के जनाधार का दम्भ भरते हुए बयानबाजी करने लगा।उल्लेखनीय है कि गुरुवार को राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने राजद के विधायकों और जनाधार का उल्लेख करते हुए दल की ताकत का अहसास कराते हुए बयानबाजी की थी। लेकिन,जदयू पर दबाव बनाने की उनकी रणनीति का दांव उल्टा पड़ गया और जदयू ने बेहद आक्रामकता के साथ राजद सुप्रीमो पर ही बयानबाजियों का दौर शुरू करते हुए सीधे लालू और उनके परिवार पर ही हमला कर दिया। शुरुआत करते हुए नीरज शेखर ने लालू की संपत्ति पर सवाल उठाए तो दल के अन्य प्रवक्ता तो अब राजद को उसकी हैसियत ही बताने की कोशिश के तहत बयानबाजी में लग गए है।


वही दूसरी तरफ जदयू प्रवक्ता अजय आलोक ने स्पष्ट कहा कि जेडीयू को सत्ता का मोह नहीं है। जदयू सत्ता के लिए कभी शासन में नहीं रहा। 80 विधायकों के लेकर मुगालते में ना रहें।178 विधायक महागठबंधन के हैं। साथ ही उन्होंने राजद को वर्ष 2010 के चुनाव में उसकी हैसियत की याद दिलाते हुए कहा कि जब अकेले चुनाव मैदान में उतरी को महज 23 सीटें ही मिली थीं। फिर जदयू ये दिखाना चाह रही है कि नीतीश कुमार के चेहरे को ही आगे कर महागठबंधन ने चुनाव लड़ा था,तो महागठबंधन की जीत का श्रेय नीतीश कुमार के चेहरे को ही जाता है।उनकी साफ-सुथरी छवि के ही दम पर महागठबंधन को इतनी बड़ी जीत मिली जिसमें आरजेडी के भी 80 विधायक शामिल हैं।
वही दूसरी तरफ़ अपने अब तक के सियासी सफर में लालू यादव यादव इस वक्त स्वयं और  परिवार पर आए इस महासंकट से इस कदर डर गए हैं कि वो किसी भी सूरत में सरकार बचाना चाहते हैं।लेकिन,अगर सोनिया गांधी की पहल और दबाव में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का इस्तीफा हो भी जाए तो राजद सूत्रों के मुताबिक तेजस्वी यादव को इस्तीफे के लिए बाध्य किया जाता है तो उस हालात में राजद कोटे के सभी मंत्री नीतीश सरकार से इस्तीफा दे देंगे पर सरकार को बाहर से समर्थन जारी रहेगा। तब सवाल उठता है कि लालू सत्ता से बाहर रहकर किस हद तक और कब तक नीतीश कुमार को समर्थन देते रहेंगे, ये कह पाना बेहद मुश्किल है। लालू की सियासत को करीब से समझने वाले मानते हैं कि लालू इतने उदार नहीं हो सकते कि लंबे दौर तक खुद सत्ता से बाहर रहकर नीतीश को बाहर से समर्थन देते रहें।

                  इधर,सोनिया गांधी की पहल के बाद बाबत लालू के बयान के बाद महागठबन्धन के भविष्य को लेकर संशय के बादल और घने हो गए है। हालांकि,सोनिया गांधी की तरफ से पहल के बाद माना जा रहा था कि तेजस्वी यादव का इस्तीफा जल्द ही होगा। लेकिन, लालू के इस बयान ने सारी कवायदों पर विराम लगाने जैसा माहौल बना दिया है। वही लालू ने अपने बयान में साथ ही लालू ने कहा कि बार-बार हमें इस मामले पर सफाई देना भी नहीं है।मीडिया कई तरीके से भ्रम फैला रहा है,जिसकी हम परवाह नहीं करते हैं। बिहार की जनता सच जानती है। जनता हमारे साथ है। राजद की पूर्ण सहमति भी तेजस्वी यादव के इस्तीफे नहीं देने के पक्ष में है। बिहार में महागठबंधन अटूट है। हमें कोई खतरा नहीं दिखता, जिसे दिख रहा हो,वो जाने।हम 27 अगस्त की महारैली ‘भाजपा भगाओ,देश बचाओ’ की तैयारी में लगे हैं।यह रैली पूरे देश को संदेशा देगी। षड़यंत्रकारी ताकतों को जवाब देगी। देश विपक्ष की एकता को देखेगा और हमें अभी कुछ नहीं बोलना।


पर हालात कुछ और ही इशारे कर रहे है। लगता है जैसे अभी भी केवल तेजस्वी के इस्तीफे मात्र से लालू-नीतीश के बीच की दूरी कम होती नहीं दिख रही है। दोनों पार्टियों की कलह इस बात का संकेत दे रही है कि इस्तीफा दे देने भर से बात नहीं बनने वाली। अब दोनों दलों के नेताम के बीच का मामला महज़ “भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस” के नीति से बहुत आगे बढ़ चुका है। लालू यादव के पूर्व में दिए “विष का प्याला” के बयान का भी यहा अपनी परिभाषा को परिभाषित करता प्रतीत हो रहा है।वैसे,सियासत और क्रिकेट में आखरी पल और बॉल तक उम्मीदे कायम रहती है।

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