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अधिवक्ता अंशुल के तर्कों का असर,हाइकोर्ट ने बीसीइसीइ की गैर जिम्मेदाराना हरकत खातिर लगाया 50 लाख का जुर्माना

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पटना Live डेस्क। एक ओर लगातार दूसरे साल भी 12वी की परीक्षा में टॉपर्स घोटाले की गूंज ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था की चूले हिला कर रख दी। वही दूसरी तरफ बिहार कंबाइंड एंट्रेंस कंपीटिटिव एग्जामिनेशन बोर्ड यानी बीसीइसीइ के कर्ताधर्ताओं की अनोखी व अजीबो गरीब हरकतों ने बड़ी जतन और लगन से एमबीबीएस परीक्षा के शामिल होकर सफलता प्राप्त करने वाले 3 छात्रों के भविष्य पर ही सवालिया निशान लगा दिया। ये तो शुक्र है कि उच्च न्यायालय में उनका पक्ष रखने वाले वकील अंशुल ने बेहद सटीक और तार्किकतापूर्ण तर्कों के सहारे एमबीबीएस कोर्स में नामांकन के इच्छुक तीनो अभ्यर्थियों को बीसीइसीइ से बतौर ज़ुर्माना 50 लाख रुपये का देने का आदेश दिया है।

उल्लेखनीय है कि तीनो याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता अंशुल ने बताया कि यह मामला पूरी तरह से लापरवाही से जुड़ा है। बोर्ड ने इन तीनों को स्पेशल काउंसेलिंग में भाग लेने तो नहीं दिया,पर इनसे कम अंक पानेवालों को एमबीबीएस की सीटें आवंटित कर दीं। जो सरासर किसी भी तरीके से न्याय संगत नही कहा जा सकता है। इस मामले को बेहद तार्किकता पूर्ण जिरह और अकाट्य सबूतों की बिना पर अदालत में बहस के दौरान अंशुल ने कहा कि दूसरी काउंसेलिंग में अभिलाषा गौरव,अभिश्री और दीप्ति प्रेयसी को एमबीबीएस में नामांकन नहीं मिल पाया, बल्कि बीडीएस में सीटें मिलीं। चुकी मामला तीनो के भविष्य से जुड़ा है था। मन मसोसकर दुखी मन से अभिलाषा और अभिश्री ने बीडीएस में नामांकन ले लिया।
तदुपरांत जब बोर्ड द्वारा आयोजित तीसरी स्पेशल काउंसेलिंग में तीनों ने भाग लिया, तो बोर्ड ने उनसे ओरिजिनल सर्टिफिकेट की मांग की,जो वे लेकर नहीं गये थे। इस वजह से बोर्ड ने उन्हें स्पेशल काउंसेलिंग में भाग नहीं लेने दिया। वो भी इस तथ्य को जानते हुए की अभिलाषा गौरव और अभिश्री ने बीडीएस कोर्स में एडमिशन के दौरान अपने सर्टिफिकेट जमा कर दिये थे। गौर करने वाली बात यह है कि याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अंशुल ने कोर्ट को इस सच से भी अवगत कराया कि बोर्ड ने इन तीनों याचिकाकर्ताओं को स्पेशल काउंसेलिंग में भाग लेने तो नहीं ही दिया, पर इनसे कम अंक पानेवालों को एमबीबीएस की सीटें आवंटित कर दीं। माननीय न्यायालय द्वारा अंशुल के तर्कों की बिना पर बोर्ड के अध्यक्ष को तलब किया और तीनों छात्रों के भविष्य खातिर उनके दाखिले के बाबत संभवनाए तलाशने की बात दरयाफ़्त की। पर चुकी पिछले वर्ष के आधार पर इस साल एमबीबीएस कोर्स में दाखिला होना संभव नही है।
यह स्पष्ट होने पर अंशुल द्वारा नीट परीक्षा के बाबत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए तमाम तर्कों और पेश सुबूतों की बिना पर जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह की एकलपीठ ने दो अभ्यर्थियों अभिलाषा गौरव व अभिश्री को 20-20 लाख रुपये और एक अन्य अभ्यर्थी दीप्ति प्रेयसी को 10 लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में देने का आदेश दिया है।

साथ ही अपने फैसले में जस्टिस श्री सिंह ने उल्लेखित किया कि बीसीइसीइ ने इन तीनो  याचिकाकर्ताओं के भविष्य की परवाह नहीं करते हुए उन्हें एमबीबीएस कोर्स में एडमिशन के लिए उचित अवसर नहीं दिया।इस क्रम में उनके संविधान में दिये मूल अधिकार का हनन हुआ। इस पर जस्टिस सिंह ने यह तय किया कि चूंकि अभिलाषा गौरव और अभिश्री ने बीडीएस में एडमिशन के समय अपने सर्टिफिकेट जमा कर दिये थे,इसलिए उन्हें बोर्ड 20-20 लाख रुपये मुआवजा दे और दीप्ति प्रेयसी को 10 लाख रुपये दे।

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